आज आपको कुछ ऐसी महिलाओं के बारे में बता रहे है, जिन्होंने न सिर्फ पुरूषों के वर्चस्व वाले पेशे में धाक जमाई है बल्कि सफलता के नये कीर्तिमान भी बनाये है।
फायर फाइटर
फायर फाइटर यानी आग बुझाने का काम करने वाला, जाहिर है इसे लोग पुरुषों का ही काम समझते हैं, लेकिन हर्षिनी कान्हेकर ने भारत की पहली महिला फायर फाइटर बनकर इस सोच को गलत साबित कर दिया। हर्षिनी ने 26 साल की उम्र में फायर और आपातकालीन सेवाओं के एक कोर्स में एडमिशन लिया, जिसे पास करने के बाद वह ऑयल एंड नैचुरल गैस कमिशन (ओएनजीसी) में फायर इंजीनियर बनीं। साल 2002 में फायर इंजीनियरिंग के कोर्स में दाखिला लेने वाली हर्षिनी पहली भारतीय महिला थी। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि मुझे नहीं लगता कि कोई नौकरी केवल पुरुषों के लिए है या सिर्फ महिलाओं के लिए है। यानी नौकरी का जेंडर से कोई लेना देना नहीं होता।
ट्रेन ड्राइवर
पहली लेफ्टिनेंट जनरल
ड्राइविंग का पेशा भी पुरुषों के लिए ही माना जाता है, ऐसे में सुरेखा यादव ने ट्रेन चलाकर न सिर्फ भारत, बल्कि पूरे एशिया में इतिहास रच दिया। सुरेखा यादव ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करके साल 1989 में रेलवे के असिस्टेंट ड्राइवर पद के लिए आवेदन किया। सुरेखा उस वक्त हैरान रह गई, जब परीक्षा हॉल में उन्होंने देखा कि उनके सिवा कोई और लड़की नहीं है, लेकिन इससे उनके हौसले कम नहीं हुए। परीक्षा और इंटरव्यू पास होने के बाद बन गई वह एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर। साल 2011 में अंतरर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर उन्हें एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर का खिताब मिला। सुरेखा सबसे खतरनाक माने जाने वाले पुणे के डेक्कन क्वीन से सीएसटी रूट पर भी ड्राइविंग कर चुकी हैं।
ऑटो ड्राइवर
सेना में जब भी महिलाओं की भूमिका की बात होती है, तो जनरल पुनीता अरोड़ा के ज़िक्र के बिना यह अधूरी है। पुनीता ही वह महिला है, जिन्होंने भारतीय महिलाओं को सेना में आने के लिए प्रेरित किया। जनरल अरोड़ा भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर पहुंचने वाली पहली महिला हैं, उन्हें राष्ट्रपति की तरफ से विशिष्ट सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया था। 37 सालों के करियर में उन्हें 15 मेडल मिल चुके हैं। पुनीता अरोड़ा भारतीय नौसेना की भी पहली महिला वाईस एडमिरल रह चुकी हैं।
ऑटो चलाने वाले भी अक्सर भईया ही होते हैं दीदी नहीं, लेकिन दिल्ली की सुनीता चौधरी सारी वर्जनाओं को तोड़ते हुए सड़क पर ऑटो दौड़ा रही हैं। 2017 में उनका नाम देश की 100 शीर्ष महिलाओं में शामिल हुआ था और राष्ट्रपति भवन में उन्हें सम्मानित भी किया गया। सुनीता दिल्ली की पहली महिला ऑटो ड्राइवर हैं, लेकिन उनके लिए यह सफर आसान नहीं था। बाल विवाह के बाद ससुराल की प्रताड़ना से तंग आकर उन्होंने पति का घर छोड़ दिया और फिर गुज़ारा करने के लिये उन्होंने ऑटो चलाने का ख़्याल आया। बड़ी मुश्किल से लाइसेंस बना और फिर ट्रेनिंग के बाद साल 2004 से सुनीता ऑटो चला रही हैं।
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