उल्हास नगर म्यूनिसपल कॉर्पोरेशन (यूएमसी) ने ध्वनि प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए एक बेहतरीन कदम उठाया है। नगर पालिका ने सिख समुदाय को दस हज़ार हेडफोन दिये हैं, जिनके इस्तेमाल से भक्त सत्संग सुन सकें। बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस कदम की तारीफ की है।
कोर्ट की डिविज़न बेंच के कमिशनर राजेंद्र निंबलकर का कहना है कि यदि 99 प्रतिशत अधिकारी नियमों का पालन नहीं कर रहे हो और कोई एक अधिकारी ऐसा करने लगे, तो उसकी सराहना की जानी चाहिये। इस बात पर आवाज़ फाउंडेशन की कंवेनर सुमैरा अब्दुलाली कहती हैं कि हमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान इस तरह की पहल की ज़रूरत है और ध्वनि प्रदूषण से होने वाले नुकसान के प्रति बढ़ती जागरूकता के साथ उम्मीद है कि इस पहल में अधिक से अधिक समुदाय हाथ मिलायेंगे, जो समाज के लिये बड़े पैमाने पर अद्भुत होंगे।
जानिए ध्वनि प्रदूषण के नुकसान
इसका सबसे बड़ा नुकसान तो यह है कि शोर में आप दूसरे की बात ही नहीं सुन सकते। दूसरे तक बात पहुंचाने के लिये आपको भी उतनी तेज़ी से चिल्लाना होगा।
– शोर भावनात्मक और व्यवहारिक तनाव की ओर जाता है। कोई भी तेज़ शोर में खुद को परेशान महसूस कर सकता है।
– शोर सुनने की शक्ति को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। अचानक तेज आवाज़ से ईयरड्रम को काफी नुकसान पहुंच सकता है।
– शोर से सिरदर्द, रक्तचाप, हार्ट फेलियर जैसे रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
– शोर से दिल की धड़कन बढ़ जाती हैं, रक्त वाहिकाएं सिकुड़ सकती हैं और आंखों की पुतली पतली हो सकती हैं।
– शोर उन रोगियों के लिए विशेष रूप से एक समस्या है, जिन्हें आराम की आवश्यकता है।
– शोर से लिवर, मस्तिष्क और हृदय को नुकसान हो सकता है।
आप छोटे-छोटे कदम उठाकर ध्वनि प्रदूषण में कमी ला सकते हैं।
– इस्तेमाल के बाद बिजली के उपकरण बंद कर दें।
– बिना बात के गाड़ी का हार्न न बजायें।
– हाईवे के पास ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगायें।
– पुराने ऑटोमोबाइल्स को बदल दें।
– अस्पताल, स्कूल और रिहाइशी इलाके जैसे ‘नो हार्न ज़ोन’ में हॉर्न या दूसरी चीज़ों का शोर न मचायें।
जिस तरह ध्वनि प्रदूषण को कम करने की मुहिम में भाग लेकर, अमृतवेला ट्रस्ट ने एक नया कदम उठाया है। उसी तरह आपको भी अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए इस दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए और ध्वनि प्रदूषण के बारे में जागरुकता फैलानी चाहिए।
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