“जलवायु का बदलना एक गंभीर समस्या है और इसे पूरी तरह से हल करने की ज़रुरत है। यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होनी चाहिए।“
बिल गेट्स का यह कथन बताता है कि बिना पर्यावरण के जनजीवन नामुमकिन है, इसलिए समय रहते इसे बचाना बेहद ज़रुरी है। इसी कोशिश में कुछ पर्यावरण प्रेमी दिनरात द काम कर रहे हैं, बल्कि दूसरों को भी लगातार प्रेरित कर रहे हैं।
चंडी प्रसाद भट्ट
उत्तराखंड के गोपेश्वर गांव में जन्मे चंडी प्रसाद भट्ट का बचपन पेड़ों और पहाड़ों के बीच ही गुज़रा, शायद यही वजह है कि उनका पहाड़ों और पेड़ों से गहरा रिश्ता है। वनों की कटाई रोकने के लिए उन्होंने साल 1973 में अपने गांव में दशोली ग्राम स्वराज संघ की स्थापना की थी। इस संस्था ने गांधी जी के प्रसिद्ध आंदोलन ‘चिपको आंदोलन’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस आंदोलन में चंडी प्रसाद ने गांधी विचारधारा को अपनाकर गांव की वन सम्पदा को बचाने के लिए महिलाओं को सुझाव दिया था कि वह पेड़ से लिपटकर खड़ी रही, ताकि ठेकेदार वनों को न काट सकें। पहाड़ों को वीरान होने से बचाने के लिए वनों की कटाई रोकना बहुत ज़रूरी था। चंडी प्रसाद का सारा जीवन पर्यावरण के लिए समर्पित रहा। उनके महत्वपूर्ण योगदान की वजह से उन्हें 2005 में पद्म भूषण, 1983 में पद्म श्री, 1982 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1991 में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
वंदना शिवा
भारत में ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत का श्रेय देहरादून की रहने वाली वंदना शिवा को जाता है। इन्होंने ही नेटिव सीड्स (मूल बीज) को बचाने और ऑर्गेनिक खेती को बढ़ाने के लिए साल 1987 में ‘नवधान्य’ संस्था बनाई थी। नवधान्य स्थानीय किसानों को विलुप्त हो रही फसलों और पौधों के बारे में समझाती। इतना ही किसानों को प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल करना भी सिखाया, जो पशुओं के मल-मूत्र, पेड़ों से गिरे पत्ते आदि से बन जाती है।
जादव मोलाई पायेंग
असम के जादव मोलई पेयांग ‘फॉरेस्ट मैन’ के नाम से जाने जाते हैं। जब वह 16 साल के थे, तभी से पर्यावरण की सुरक्षा के लिए काम करना शुरु किया था। साल 1979 में असम में भयंकर बाढ़ गांव के आसपास की हरियाली को भी अपने साथ ले गई थी। इस वजह से कई पशुओं और जानवरों से उनका आसरा छिन गया था। उन्हें तड़पता देख जादव के मन में गहरा असर पड़ा, तब उन्होंने ज़मीन को हरा-भरा बनाने की ठानी। जादव ने गांववालों की मदद से 50 बीज और 25 बांस के पौधे लेकर खाली ज़मीन पर बोए और उनकी देखरेख की। 36 सालों की अपनी कड़ी मेहनत से लगभग 1360 एकड़ जमीन पर जादव ने अकेले ही एक घना जंगल बना दिया। आज उस जंगल में हाथी, हिरण और बाघ जैसे कई वन्यजीवों का बसेरा है। इस योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है।
पूनम बीर कस्तूरी
बेंगलुरु की रहने वाली पूनम बीर कस्तूरी पेशे से इंडस्ट्रियल डिज़ाइनर है। वह पर्यावरण में बढ़ रहे कचरे को रोकने पर रिसर्च कर रह थी तब उन्हें पता चला कि घर से निकलने वाले रोज़ाना के कचरे से खाद बनाई जा सकती है। इसी को देखते हुए उन्होंने ‘डेली डंप’ की शुरुआत की। इसके ज़रिए वह शहरी लोगों को खाद बनाने की कला सिखाकर कचरे के बारे में उनकी मानसिकता बदलने लगी। अपने छोटे- छोटे प्रयोगों से वह पर्यावरण बचाने में पॉज़िटिव योगदान दे रही है।
वी. प्रदीप कृष्णन
एक समय था जब प्रदीप कृष्णन लोगों के मनोरंज़न के लिए फिल्में बनाते थे, लेकिन फिर पर्यावरण की सुरक्षा पर काम करना शुरु किया, तो फिल्में बनाने का काम छूट गया। 1955 के बाद से कृष्णन ने एक फोरेस्ट दोस्त की मदद से मध्य प्रदेश के पंचमढ़ी के जंगलों में पेड़ों का अध्ययन करना शुरू किया। उन्होंने वनस्पति विज्ञान की जानकारी ली और दिल्ली के पेड़ों की पहचान करना और तस्वीरें खींचना शुरू किया। शहर की हरी-भरी जगहों की खोज की और वहां के पेड़-पौधों के बारे में किताब लिखी। उनकी ‘ट्री ऑफ दिल्ली’ और ‘जंगल ट्री ऑफ सेंट्रल इंडिया’ दो ऐसी किताबें है, जिनसे प्रेरित होकर कई लोगों ने पेड़ों की कटाई रोकी।
असल ज़िंदगी में कई ऐसे हीरो है, जो प्रकृति को बचाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां स्वच्छ पर्यावरण का आनंद ले सके।
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