दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं, एक वह जो बस अपने साथ हुए अत्याचार का रोना रोते रहते हैं और दूसरे वह जो अपने साथ हुए अत्याचार से न सिर्फ लड़ते हैं, बल्कि खुद उठकर अपने जैसे और लोगों की मदद भी करते हैं। ऐसी ही कुछ महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने साथ हुए गंभीर अत्याचार के खिलाफ न सिर्फ आवाज़ उठाई, बल्कि आज वह समाज की भलाई के लिए काम कर रही हैं। कहा जाता है कि कोई एक घटना हमारी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल देती हैं, लेकिन इन 5 महिलाओं ने इतना अत्याचार झेला है कि कोई भी टूटकर बिखर जाता, मगर ये बिखरी नहीं, बल्कि खुद को पूरी ताकत से ऊपर उठाया और नए मंसूबों के साथ जीवन में आगे बढ़कर सबको प्रेरित किया।
लक्ष्मी अग्रवाल
ये नाम अब किसी के लिए नया नहीं रहा, एसिड अटैक सर्वाइवल लक्ष्मी के बारे में अब तकरीबन हर कोई जानता हैं। 15 साल की उम्र में ही उनपर एसिड अटैक हुआ था, क्योंकि उन्होंने अपने दोस्त के भाई से शादी से इनकार कर दिया था। इस घटना के बाद लक्ष्मी को कितनी शारीरिक और उससे अधिक मानसिक पीड़ा हुई होगी, इसको शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। एक वक्त पर तो वह आत्महत्या करना चाहती हैं, लेकिन पैरेंट्स की फिक्र ने उनके कदम पीछे खींचे लिए। 7 सर्जरी के बाद लक्ष्मी थोड़ी ठीक हुईं और उन्होंने अपना डिप्लोमा भी पूरा किया। अब लक्ष्मी के जीवन का एक ही मकसद है अपनी जैसी लड़कियों को मेडिकल हेल्प देना और उन्हें समाज से जोड़े रखना। इसी मकसद को पूरा करने के लिए उन्होंने छांव फाउंडेशन की स्थापना की।
मानसी प्रधान
मानसी प्रधान अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखिका और कवियत्री हैं। लेकिन अधिकांश लोगों को पता नहीं है कि उन्हें सब कुछ चांदी की थाली में सजाया हुआ नहीं मिला, बल्कि कड़े संघर्ष के बाद मिला है। बचपन के संघर्षों ने उन्हें एहसास कराया कि महिला सशक्तिकरण हमेशा से अनुत्तरित प्रश्न क्यों बना हुआ है। गरीब परिवार में जन्मी मानसी के लिए शिक्षा किसी सपने जैसा था। मगर उन्होंने हार नहीं मानीं और अपने स्कूल की पहली मैट्रिक पास छात्रा बनीं। उर्मी-ओ-उच्चवास, स्वागतिका और आकाश दीपा जैसी उनकी रचनाओं ने महिला सशक्तिकरम की आधारशिला रखी। उनका OYSS फाउंडेशनल उच्च शिक्षा के लिए लड़कियों को प्रेरित करता है और निर्भया समारोह, निर्भया वाहिनी नामक संस्था महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा पर नज़र रखती है।
मलाला युसफज़ाई
शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधा की मांग के लिए आवाज़ बुलंद करने पर पाकिस्तान की मलाला गोलियों का सामना करना पड़ा। गोली लगने के दस दिन बाद जब उनकी आंख खुली, तो वह इंग्लैंड के एक अस्पताल में थी। ठीक होने के बाद मलाला पहले से ज़्यादा मज़बूत बन गईं और अपनी आवाज़ को और बुलंद किया। उनका फाउंडेशन मलाला फंड क्वालिटी एज्यूकेशन के लिए लड़ता है। सामाजिक कार्यों के लिए मलाला को नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है।
सुनीता कृष्णन
रेप जैसे जघन्य अपराध का शिकार हो चुकी लड़कियों और महिलाओं को सुनीता साहस और सशक्तिकरण दे रही हैं ताकि वह ज़िंदगी में आगे बढ़ सकते हैं। सुनीता टीनेज में खुद गैंगरेप का शिकार हो चुकी हैं और अपने गुस्से और फ्रस्ट्रेशन को सुनीता ने ऐसी ही महिलाओं की ज़िंदगी संवारने में झोंक दिया। उन्होंने प्रज्वला फाउंडेशन की सह-स्थापना की जो रेड लाइट एरिया, सेक्स ट्रैफिकिंग रैकेट और रेप का शिकार महिलाओं की मदद करती है।
नादिया मुराद
सेक्स स्लेव रह चुकी नादिया यजीदी के मुराद गांव से हैं, जिन्हें अगस्त 2014 में आईएसआईएल ने सेक्स गुलाम बनाकर बेच दिया था। नादिया को कई बार खरीदा और बेचा गया, फिर आखिरकार उसी साल नवंबर महीने में वह किसी तरह भाग खड़ी हुई और एक मुस्लिम परिवार में शरण ली। अगले साल वह जर्मनी पहुंची जहां उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सामने मानव तस्करी पर अपनी बाद रखते हुए यजीदियों की स्थिति की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद उन्होंने हर मंच पर आईएस की कैद में रहने वाले बच्चों और महिलाओं के लिए आवाज़ उठाई। मानवाधिकार के लिए काम करने वाली नादिया को शांति का नोबेल पुरस्कार मिल चुका है।
आज के दौर में जब हर दिन हिंसा और मारपीट की खबरें रहती हैं, इनकी जैसी महिलाएं समाज को बेहतर बनाने की दिशा में प्रयासरत हैं।
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