कहा जाता है कि सीखने और पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती है। कर्नाटक के कोप्पल में रहने वाले एक स्वतंत्रता सेनानी शरणबासवराज बिसारहल्ली पर यह बात पूरी तरह से फिट बैठती है। शरणबासवराज बिसारहल्ली दूसरों के लिए मिसाल हैं, खासकर उन लोगों के लिए, जो किसी ना किसी वजह से अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं और आगे जाकर जब इसे पूरा तो करना चाहते हैं तो किसी न किसी कारण इसे पूरा नहीं कर पाते।
शरणबासवराज बिसारहल्ली भी किसी कारण अपनी पढ़ाई के सपने को नहीं पूरा कर पाए लेकिन 89 साल की उम्र में शरणबासवराज बिसारहल्ली ने अपने अधूरे सपने को पूरा करने की ठानी। उनका सपना अपनी पढ़ाई पूरी करने का था और इसके लिए उन्होंने न सिर्फ हिम्मत दिखाई बल्कि एक साल तक मेहनत करने के बाद सफल भी हुए।
सपना पीएचडी डिग्री पूरा करने का
स्वतंत्रता सेनानी रह चुके शरणबासवराज बिसारहल्ली डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की डिग्री पूरी करना चाहते थे। अपनी इस विश को पूरा करने के लिए उन्होंने हंपी विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा दी और उनका सेलेक्शन भी हो गया।
दूसरी बार में मिली सफलता
अपनी मेहनत के बारे में बिसारहल्ली ने बताया कि उन्होंने पिछले साल भी परीक्षा दी थी लेकिन फेल हो गए। असफलता मिलने के बाद भी उनके हौसलें कम नहीं हुए बल्कि पूरे जोश के साथ उन्होंने फिर से पढ़ाई की और इस साल वह सफल हो गए। बिसारहल्ली के पास धारवाड़ और हम्पी कन्नड़ विश्वविद्यालय से कानून और मास्टर डिग्री हैं।
लोगों के लिए हैं मिसाल
बिसारहल्ली धारवाड़ उन लोगों के लिए मिसाल हैं, जो किसी ना किसी वजह से अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं और डिग्री पूरी नहीं कर पाते हैं। बिसारहल्ली का कहना है कि उन्हें हमेशा से ही पढ़ने लिखने में काफी रूचि रही है और वो कन्नड़ साहित्य में किताबें लिखना चाहते हैं। बिसारहल्ली स्वतंत्रता सेनानी भी रह चुके हैं।
96 साल की कार्थ्यायनी अम्मा भी आईं थी चर्चा में
केरल के अलाप्पुझा जिले की रहनेवालीं 96 वर्षीय कार्थ्यायनी भी इस साल परीक्षा देकर चर्चा में आई थीं। 96 वर्षीय कार्थ्यायनी अम्मा ने जनवरी, 2018 में साक्षरता अभियान के तहत पढ़ाई शुरू की थी और वह अलाप्पुझा जिले की सबसे बुजुर्ग छात्रा हैं। अम्मा के इस हौसलें की देश भर में तारीफ हुई थी।
इमेजः द न्यूज मिनट
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