अपने घर और ऑफिस को संतुलित रखने के लिए आप क्या करते है? इस सवाल को जितने लोग पढ़ेंगे, उतने ही जवाब मिलेंगे क्योंकि घर और काम को बैलेंस रखने का सबका अपना नज़रिया और तरीका है। आजकल इतना सब पढ़ने के बाद लगता है कि घर और ऑफिस को संतुलित रखना भी एक कौशल है। वैसे देखा जाए तो ये उन लोगों के लिए सच भी लगता है, जिन्हें एक ही दिन की छुट्टी मिलती है। एक दिन में घर के काम और आराम दोनों करना मानो कला ही है।
लेकिन अगर आपको बताया जाए कि भारत
में चार दिन काम करने और तीन दिन आराम का प्रस्ताव रखा गया है। फिलहाल इस पर विचार
रहा है, शायद ये जल्द हो भी जाए, तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी। वैसे इसके फायदे
और नुकसान दोनों है, लेकिन पहले जान लेते हैं कि ये कानून क्या हो सकता है?
श्रम मंत्रालय की कोशिश है कि श्रम के सभी 44 सेंट्रल लेबर लॉज़ को चार बड़ी
कैटेगरी में बांट दिया जाए और साथ ही सभी चारों कोड एक साथ लागू हो जाएं।
क्या है श्रम के चार कोड
- कोड ऑन वेजिज़
- इंडस्ट्रियल रिलेशन्स
- ऑक्युपेश्नल सिक्योरिटी
- हेल्थ एंड वर्किंग कंडिशन्स एंड सोशल सिक्योरिटी कोड्स
क्या होगा 4 वर्किंग डेज़ लागू होने से
लेबर एंड इंप्लॉएमेंट सेक्रेटरी अपूर्व चंद्रा की माने तो नए लेबर कोड्स के लागू हो जाने के बाद कोई भी कंपनी अपने कर्मचारियों के लिए हफ्ते में चार दिन काम करना लागू कर सकती है। ऐसे में उसे अपने कर्मचारियों को तीन पेड छुट्टियां देनी होंगी। साथ ही कंपनी को अभी के 48 वर्किंग आवर्स को लागू करने की भी आज़ादी होगी। इसका मतलब है कि आप हफ्ते में चार दिन काम कर सकेंगे और तीन दिन की छुट्टियां होंगी, लेकिन आपकी शिफ्ट 8 या 9 घंटों से बढ़ कर 12 घंटों की हो जाएगी।
कैसे परिणाम हो सकते हैं इस फैसले के
वैसे देखा जाए तो इस फैसले से दोनों तरह के परिणाम सामने आ सकते हैं। जैसे तीन दिनों की छुट्टियां मिलने से व्यक्ति अपनी वर्क-लाइफ बैलेंस को बनाने में ज़्यादा सक्षम होगा। न्यूज़ीलैंड की एक कंपनी परपेचुअल गार्डियन का मानना है कि जब से उन्होंने हफ्ते में चार वर्किंग डेज़ रखे हैं तब से उसके कर्मचारियों में संतुष्टि का स्तर बढ़ा है, कंपनी के प्रति कमिटमेंट भी बढ़ा है और लोगों में टीमवर्क की भावना भी कई गुना बढ़ी है। इतना ही नहीं कंपनी ने यह भी दावा किया कि उसके इंप्लॉएज़ का स्ट्रैस लेवल 45% से घट कर 38% आ गया।
लेकिन देखने वाली बात यह भी है कि अगर हफ्ते में 4 दिन को लागू कर दिया गया लेकिन शिफ्ट को 8 या 9 से बढ़ा कर 12 घंटे कर दिया गया, तो भी लोग असंतुष्ट हो सकते हैं और उनके प्रोडक्टिविटी लेवल में कमी आ सकती है। इसके साथ ही कंपनी को अपने काम को सही तरह से चलते रहने के लिए वर्कफोर्स को बढ़ाना पड़ सकता है, जिसका मतलब पहले से ज़्यादा खर्चा हो सकता है।
अगर वाकई में सरकार और कंपनियां लोगों के हित में सोच रहे हैं, तो हर इंडस्ट्री के हिसाब से सही तकनीक के आने तक का इंतज़ार करना होगा जो इंसान की काबिलियत का मेल कर सके, तभी सही मायनो में कंपनी और कर्मचारियों, दोनों का फायदा होगा। तब व्यक्ति हफ्ते में चार दिन और पहले कि तरह 7 या 8 घंटे ही काम करेगा, और कंपनी के काम का भी नुक्सान नहीं होगा।
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