कोरोना ने सिखाया करुणा और दयाभाव के सही मायने

कोरोना ने सिखाया करुणा और दयाभाव के सही मायने

“करुणा या दया कोई कमज़ोरी नहीं है, बल्कि एक मज़बूत व्यक्ति के व्यवहार में दयालुता शामिल होनी चाहिए।“ – बराक ओबामा
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इस साल कोरोना की दूसरी लहर जो कोहराम मचाया था, उसे कुछ सालों तक भूलना तो बड़ा मुश्किल है। लेकिन इस दौरान शायद अगर आपने गौर किया हो, तो लोगों ने एक दूसरे की मदद करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आप में से बहुत लोगों ने न जाने कितने व्ट्सअप ग्रुप ज्वाइन करके एक दूसरे की मदद की और दूसरों को हौसला दिया। बहुत से लोगों ने अनजान कोरोना रोगियों को बचाने के लिए प्लाज़्मा डोनेट किया। कोरोना पीड़ित पड़ोसियों को खाना खिलाया तो सोसायटी के वाचमैन से लेकर घर में काम करने वाले लोगों की पैसे, कपड़े और खाना देकर मदद की। कुल मिलाकर कहा जाए तो 2021 अगर कोरोना के कहर के लिए जाना जाएगा तो साथ ही दयालु और करुणा के भाव के लिए याद किया जाएगा।

करुणा के सही मायने

आज की इस दुनिया में लोग अक्सर सोचते हैं कि अगर मैं सिर्फ अपने बारे में सोचूं और अपने और अपने परिवार की भलाई ही सोचूं तो जीवन में शांत और बेहतर रहेगा लेकिन इसके विपरीत अगर आप अपने साथ अपने आसपास काम करने वाले लोगों की भी परवाह करते हैं तो कहा जा सकता है कि आपमें दया भाव है। करूणा का अर्थ सिर्फ गरीब या शारीरिक रूप से असक्षम लोगों की मदद करना नहीं है, बल्कि असली मायने तो यह है, जब आप अपने आसपास के लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं या फिर किसी का दुख-दर्द ही सुन लेते है। किसी बुजुर्ग को लिफ्ट तक पहुंचाने में मदद कर देते हैं या खाना मंगवाने पर डिलवरी बॉय को मुस्कुराकर शुक्रिया कह देते हैं। रोज़ाना छोटे-छोटे तरीकों से आप खुद में और दूसरों में करुणा और दया के भाव को जगा सकते हैं।

दयाभाव पर क्या कहती है रिसर्च?

पबमेड में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार लोगों को 7 दिन के लिए रोज़ाना कोई भी एक ऐसा काम करने के लिए कहा गया जिसमें लोगों की मदद करना शामिल हो। 7 दिन पहले उनकी ‘खुशी’ का पैमाना विभिन्न मनोवैज्ञानिक तरीकों से मापा गया था और 7 दिन के बाद फिर से उन्हीं लोगों की ‘हैप्पीनैस’ नापी गई तो पाया कि उनमें खुशी का इजाफा काफी ज़्यादा हुआ था।

करूणा भाव पर रिसर्च करके कोलंबिया विश्वविद्यालय की डॉ. केली हार्डिंग ने साल 1970 में खरगोशों पर दयाभाव का क्या असर होता है, इस पर रिसर्च की और इसे अपनी किताब ‘द रैबिट इफ़ेक्ट’ में विस्तार से लिखा। इसमें डॉ. केली ने लिखा कि जिन खरगोशों को दयाभाव रखने वाले रिसर्चर्स की गाइंडेंस में रखा गया, उनकी सेहत बहुत अच्छी थी और उन्होंने स्वस्थ जीवन जिया।

करूणा
ज़रूरतमंदों की मदद करना | इमेज : फाइल इमेज

दयाभाव पर हस्तियों के विचार

इस साल अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक शोकसभा में दयाभाव पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि करुणा या दया कोई कमज़ोरी नहीं है, बल्कि एक मज़बूत व्यक्ति के व्यवहार में दयालुता शामिल होनी चाहिए। ईमानदारी के साथ दूसरों का सम्मान करना आपका बचपना नहीं है।

आप किसी भी धर्म के विचार पढ़ लीजिए, उसमें दूसरों के प्रति करुणा और दया को प्रमुखता से दी गई है। किसी के प्रति दया रखना किसी भी धर्म से सर्वोपरि है।

दयाभाव से खुद को मिलते हैं फायदे

दर्द से राहत

जब आप में दया का भाव आता है, तो वह एंडोफ्रिम हार्मोंन्स बनते हैं, जो नेचुरल पेनकिलर है।

घबराहट और चिंता से राहत

ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी स्टडी के अनुसार जब चिंता या घबराहट से जूझ रहे लोगों को हफ्ते में 6 करुणा भरे काम करने को कहा गया, तो इससे उन लोगों का मूड पॉज़िटिव रहने लगा और लोगों से मेलजोल बढ़ा।

डिप्रेशन में कमी

स्टीफन पोस्ट ऑफ केस वेस्टर्न रिज़र्व यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसन के डॉ. स्टीफन के अनुसार जब हम जीवन में खुद को समझते हुए सुतंष्टि का भाव रखते है और दूसरों की मदद करते हैं, तो इसका असर शरीर पर भी होता है। इससे डिप्रेशन कम होता है और जीवन काल बढ़ता है।

ब्लड प्रेशर नियंत्रित

जब कोई करुणा और दया करते हैं, तो आक्सीटोसिन हार्मोंन रिलीज़ होते हैं, जो ब्लड प्रेशर कम करने में सहायक होते हैं।

इतने फायदे पढ़ने के बाद कहा जा सकता है कि हम सभी दिन में एक छोटा सा ऐसा काम तो ज़रूर कर सकते हैं, जिससे किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाए।

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