जो जीता वही सिकंदर

जो जीता वही सिकंदर

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जो लोग चार्टेड एकांउट यानि सीए की पढ़ाई कर रहे है, वे जानते होंगे कि सीए की पढ़ाई पूरी करने में सालों लग जाते है। लेकिन राजस्थान के कोटा शहर का एक ऐसा छात्र है, जिसने कई विपरीत परिस्थितियों के बाद भी पहले ही अटेंप्ट में न केवल सीए का फाइनल पेपर क्लीयर कर लिया बल्कि टॉप भी किया।

कौन है वो होनहार छात्र?

हाल ही में सीए बने शहदाब हुसैन के पिता कोटा में एक छोटा सा दर्जी का काम करते है। परिवार में चार बहनें और कम इनकम में घर का खर्चा चलाना काफी मुश्किल है। इसके बावजूद शहदाब के माता-पिता ने किसी की भी पढ़ाई में कोई बाधा न आये। इस बात की गंभीरता को समझते हुए शहदाब ने दिन-रात मेहनत करके इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टेड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के फाइनल पेपर में 74.63% के साथ टॉप किया।

कैसा रहा अब तक का सफर?

हुसैन को लगता है कि सीए के पेशे में व्यक्ति सारे जीवन कुछ नया सीख सकता है। साथ ही वह कुछ ऐसा भी करना चाहते थे, जिससे उनके माता-पिता को अपने बुढ़ापे की चिंता न करनी पड़े। उन्होंने काफी रिसर्च करने के बाद सीए बनने का मन बनाया। हुसैन 23 साल के हैं और हर रोज़ कम से कम 13 से 14 घंटे सेल्फ स्टडी करते रहे हैं।

जो जीता वही सिकंदर
सीए में किया टॉप | इमेज: पत्रिका

छात्रों के लिये सलाह

हुसैन तीन घंटे की लगातार पढ़ाई के बाद तीस से चालीस मिनट का ब्रेक लेते थे। साथ ही दिन में दो से तीन किलोमीटर वॉक भी करते थे। इससे उन्हें डी-स्ट्रैस होने में मदद मिलती थी। जैसे-जैसे एग्ज़ाम पास आते गए, तो उन्होंने पढ़ने के घंटे थोड़े कम कर दिये, जिससे उनका दिमाग सतर्क रह सके। हुसैन की माने तो हर किसी को अपने लिए आधे घंटे का ‘मी टाइम’ निकालना चाहिए, जिससे वह गुज़रे हुए दिन के बारे में सोच सके और बेहतर तरीके से टाइम मैनेज कर सके। ऐसा करने से आपके अंदर गर्व की भावना भी पैदा होगी।

पेपर सॉल्व करने का टैक्ट

एग्ज़ाम स्ट्रैटेजी के बारे में हुसैन का कहना है कि उन्होंने पहले पूरा पेपर पढ़ लिया और तीन-चार आसान और ज़्यादा स्कोर वाले सवाल को छांट लिया। उन्होंने पहले घंटे में चालीस मार्क्स के सवाल हल करने का टार्गेट सेट कर लिया और अगले दो घंटों में इस स्कोर को और बढ़ाने की कोशिश की। उनका मानना है कि ऐसा करने से उन्हें दूसरे ऐप्लीकेंट्स से बढ़त मिल गई।

वैसे तो हर माता-पिता बच्चों के लिए कुछ भी करना अपना फर्ज़ समझते हैं, लेकिन शहदाब हुसैन जैसे बच्चे भी हैं, जो माता-पिता का जीवन संवारने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।

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