कल तक ड्राइविंग की ज़िम्मेदारी आमतौर पर पुरुष ही उठाया करते थे, लेकिन अब समय बदल गया है। महिलाओं ने भी न सिर्फ खुद की बल्कि कमर्शियल ट्रांसपोर्ट से जुड़ी गाड़ियां भी बखूबी चलाने लगी हैं। यहां तक कि प्लेन उड़ाने से लेकर ट्रेन चलाने वालों में भी उनका नाम शुमार हो चुका है। पश्चिम रेलवे की लोकल ट्रेन की पहली महिला ड्राइवर प्रीति कुमारी भी ऐसी ही एक महिला हैं, जिन्होंने साबित कर दिखाया है कि सिर्फ पुरुष ही ट्रेन नहीं चला सकते हैं।
पेरेंट्स का मिला भरपूर साथ
बिहार के एक छोटे से गांव की प्रीति अपने गांव की पहली महिला हैं, जो काम के सिलसिले में बाहर निकलीं, तो उसने ये दिखा दिया कि महिलाओं के लिए कोई भी काम असंभव नहीं है। प्रीति अपनी कामयाबी का क्रेडिट अपने पेरेंट्स को देती हैं, जिन्होंने लड़की और लड़के में कभी कोई फ़र्क नहीं किया और बेटे की ही तरह अपनी बेटियों को हमेशा पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रीति का एक भाई और छोटी बहन भी रेलवे में ड्राइवर हैं, वहीं एक बहन दिल्ली मेट्रो में चालक और पति इंडियन एयरफोर्स में एक टेक्निशियन हैं।
कठिन संघर्ष से बनीं कुंदन
प्रीति ने रातोंरात या बिना किसी मुश्किलों का सामना किये बिना यह मुकाम हासिल नहीं किया है, बल्कि इसे उन्होंने अपने कठोर संघर्ष के दम पर हासिल किया है। प्रीति कहती है कि वह हमेशा से ही कुछ अलग करना चाहती थी। जिस तरह से कल्पना चावला ने अलग क्षेत्र में अपना नाम कमाया, वैसे ही मैं भी सबसे अलग करना चाहती थी।
काम को लेकर है डेडिकेट
प्रीति अमूमन छह से सात घंटों की शिफ्ट में काम करती हैं और इस दौरान लोकल से चार चक्कर लगाती हैं। हालांकि, महिला होने के नाते उन्हें नाइट शिफ्ट में नहीं लगाया जाता। काम के प्रति डेडिकेशन प्रीति की खासियत है। वह बेहद गंभीरता से ड्यूटी निभाती हैं, ताकि कभी किसी को यह कहने का मौका न मिल सके कि ’वह महिला थी, इसलिए गड़बड़ हो गई’। ऐसे में वह ट्रैक पर किसी भी तरह की हरकत पर लगातार नजर रखने के साथ अन्य ट्रेनों की आवाजाही, सिग्नल और यात्रियों पर सतर्क ध्यान रखती हैं।
पश्चिम रेलवे की पहली महिला ड्राइवर होने का गौरव प्राप्त प्रीति की कामयाबी यह बताने के लिए काफी है कि महिलाओं में हर स्थिति में ढलने की काबिलियत होती है।
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