सुख और दुःख सिक्के के दो पहलुओं की तरह है। न तो सुख हमेशा क लिए रहता है और न ही दुःख और जब हम यह बात समझ जाएंगे तो दुखी होना छोड़ देंगे, क्योंकि यह भी तो अस्थाई ही है। गौतम बुद्ध ने दुःख के कारणों की पहचान के बाद तीसरा आर्य सत्य बताया है ‘दुःख निरोध’, जिसका मतलब है दुःख से छुटकारा पाया जा सकता है।
दुःख के कारण को पहचानना ज़रूरी है
बुद्ध के अनुसार, जिस तरह किसी बीमारी को दूर करने के लिए डॉक्टर उसकी जड़ में जाकर बीमारी के कारणों का पता लगाता है और उसके अनुसार ही उपचार करता है। ठीक उसी तरह दुःख को दूर करने के लिए सबसे पहले ज़रूरी है कि उसके कारणों का पता लगाया जाए। कई बार तो व्यक्ति को यह पता ही नहीं होता कि वह दुःखी क्यों है, शायद आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ हो?
एक बार की बात है किसी स्थान पर प्रवचन के दौरान लोग भगवान बुद्ध से अलग-अलग सवाल कर रहे थें, वहीं एक व्यक्ति को चुपचाप उदास देखकर गौतम बुद्ध ने उससे पूछा, ‘भाई आप दुखी क्यों हो?’ व्यक्ति ने उत्तर दिया ‘पता नहीं।’ हम में से अधिकांश लोगों का भी यही हाल है हमें पता ही नहीं होता कि हम दुखी क्यों है। बुद्ध ने उस व्यक्ति से कहा, ‘पहले अपने दुःख को जानों, उसके मूल में जाकर उसे देखो और फिर उसका उपचार करो।’

हमेशा नहीं रहता दुःख
महात्मा बुद्ध ने कहा कि कोई भी दुःख हो उसे दूर किया जा सकता है। हर इंसान को ये समझना होगा कि कोई भी दुख हमेशा नहीं रहता है, उसे समाप्त किया जा सकता है। इसके लिए पहले यह समझे कि आप दुखी क्यों है, क्या वाकई में कोई दुख है या सिर्फ आपने ऐसा सोच लिया है कि आप दु:खी है। जब आपको ऐसा महसूस हो तो एकांत में बैठकर खुद से सवाल करें कि आखिर मैं क्यों उदास हूं, कौन-सी बात मुझे परेशान कर रही है? 
जब आपको इन सवालों के जवाब मिल जाए जैसे नौकरी में तरक्की ने मिलने से परेशान हैं या अपने दोस्त का विदेश जाना आपको खल रहा है तो आपको पहले खुद को बदलना होगा। जहां तक नौकरी में तरक्की का सवाल है तो आप सिर्फ मेहनत कर सकते हैं आगे मैनेजमेंट के हाथ में होता हैं। वहां आप कुछ नहीं कर सकते, तो बेकार में दुःखी होने की बजाय इस स्थिति को स्वीकार करिए या दूसरी नौकरी की तलाश शुरू कर दीजिए। दोस्त का विदेश जाना यदि आपके दुःख का कारण है तो इसका मतलब है कि आपको उससे ईर्ष्या हो रही है, वह यदि आगे बढ़ा है तो उसने मेहनत की है, आप भी मेहनत करिए और आगे बढ़िए व ईर्ष्या का भाव मन से निकाल दीजिए।
कैसे पहचाने दु:ख के कारण को?
- अकेले में बैठकर आत्म विश्लेषण करें।
- जिन बातों को सोचकर आप दुखी है उसकी लिस्ट बनाएं और फिर दोबारा उन्हें देखें और ठंडे दिमाग से सोचें कि क्या वाकई आपको इन बातों से परेशान या उदास होने की ज़रूरत है?
- खुद से सवाल करें कि ‘मैं दुःखी क्यों हूं?’ जवाब मिल जाए तो उस कारण को दूर करिए और न मिले तो समझ लीजिए आपने बस यूं मान लिया है कि आप दुःखी हैं।
जैसे सुख स्थायी नहीं है वैसे ही दुःख भी हमेशा नहीं रहता, इसे दूर किया जा सकता है, बस इसके लिए आपको आत्मविश्लेषण की ज़रूरत है।
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