प्लास्टिक का बेहतर विकल्प है धान का भूसा

प्लास्टिक का बेहतर विकल्प है धान का भूसा

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प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल ने पर्यावरण के लिए गंभीर संकट पैदा कर दिया है। हाल के दिनों में कुछ राज्यों में प्लास्टिक पर बैन ज़रूर लगाया गया है, मगर ये पर्याप्त नहीं है। लंबे समय में प्लास्टिक को दिनचर्या से हटाने के लिए उसका बेहतरीन विकल्प तलाशना बहुत ज़रूरी है और आईआईटी खड़गपुर के छात्रों ने वो विकल्प तलाश लिया है, धान के भूसे के रूप में।

किचन के सामान से फर्नीचर तक

धान को साफ करके जब चावल निकाला जाता है, तो उस प्रक्रिया में काफी मात्रा में भूसा निकलता है, जिसे ऐसे ही फेंक दिया जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। आईआईटी खड़गपुर के छात्रों ने एक प्रोजेक्ट बनाया है, जिसके तहत धान के भूसे से पेन, फर्नीचर और किचन के सामान बनाए जा सकेंगे। आईआईटी खड़गपुर के छात्रों की टीम ‘मेटल’ ने यह प्रोजेक्ट हल्ट पुरस्कार के दौरान पेश किया और अपने अनोखे प्रोजेक्ट की वजह से ‘मेटल’ की टीम विजेता भी रही।

समाज की भलाई है मकसद

हर साल आयोजित होने वाली हल्ट प्रतियोगिता का मकसद समाज की भलाई के लिए काम करना है। इस प्रतियोगिता में शिक्षा, पर्यावरण, ऊर्जा, पानी की उपलब्धता और खाद्य सुरक्षा जैसे विषयों से जुड़ी समस्याओं पर प्रतियोगियों को काम करना होता है। प्रतियोगिता के विषय का चुनाव अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन करते हैं और फिर 6 जजों की टीम सभी रिसर्च पर आधारित प्रोजक्ट्स को देखने के बाद विजेता की घोषणा करती है।

इमेज: द टेलीग्राफ

इस बार जीत रही मेटल के नाम

इस बार प्रतियोगिता में पचास टीमों ने हिस्सा लिया था, जिसमें से छह का चुनाव हुआ और फिर इन छह में से आईआईटी खड़गपुर के छात्रों की टीम ‘मेटल’ ने बाज़ी मार ली। छात्रों का मानना है कि इससे न सिर्फ धान के भूसे का इस्तेमाल हो जाएगा, बल्कि बड़े पैमाने पर उत्पादन से प्लास्टिक की समस्या से भी छुटकारा मिलेगा। छात्रों का कहना है कि भूसे से पहले एक शीट बनाई जा रही है। इसे बनाने के लिए धान के भूसे में चिपकाने वाला पदार्थ और रसायन डाला जा रहा है, जिससे एक शीट बन जाती है और फिर इस शीट से पेन, किचन के इस्तेमाल की चीज़ें, बर्तन, पिच बोर्ड आदि आसानी से बनाए जा सकते हैं।

दस लाख की मदद

हल्ट पुरस्कार जीतने वाली टीम को 10 लाख रुपए का ईनाम मिलता है, जिससे वो अपने प्रोजेक्ट का इस्तेमाल सामाज की भलाई और चुनौतियों से निपटने के लिए कर सकें। यदि छात्रों के इस प्रयास को सफलता मिलती है, तो पर्यावरण को प्लास्टिक से होने वाले गंभीर नुकसान से बचाया जा सकता है।

इमेज: इनहैबिटैट

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