बेटी की शिक्षा के लिए पिता का समर्पण

बेटी की शिक्षा के लिए पिता का समर्पण

बेटी को पढ़ाने के लिए रोज़ 12 किलोमीटर का सफर तय करता है पिता
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बच्चों को बेहतर इंसान बनाने के लिए उन्हें सही शिक्षा देना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। हर माता-पिता बच्चे को अच्छे स्कूल कॉलेज में पढ़ाना चाहते हैं ताकि उनका बच्चा जीवन में आगे बढ़ सके। मगर कुछ माता-पिता ऐसे भी होते हैं, जिनके लिए बच्चे को स्कूल भेजना किसी संघर्ष से कम नहीं होता, लेकिन वो हर दिन यह संघर्ष करके को तैयार हैं ताकि बच्चे का भविष्य उज्जवल हो सके। ऐसे ही एक पिता है अफगानिस्तान के मिया खान जो इन दिनों इंटरनेट पर छाए हुए हैं।

बेटी की पढ़ाई के लिए हर संघर्ष मंजूर

पिता-पुत्री के निःस्वार्थ और निश्छल प्रेम की तुलना किसी चीज़ से नहीं की जा सकती। हर बेटी की कामयाबी के पीछे कहीं न कहीं उसके पिता का समर्पण होता है और इस बात को अफगानिस्तान के मिया खान भी सही साबित कर रहे हैं। अफगानिस्तान एक ऐसा देश हैं जहां महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है और उनकी शिक्षा पर भी उतना ध्यान नहीं दिया जाता। इसके बावजूद मिया खान अपनी बेटी को पढ़ा लिखाकर उसका भविष्य उज्जव बनाना चाहते हैं।

बेटी की शिक्षा के लिए पिता का समर्पण
बेटियां भी पढ़ाएं बेटों की तरह |इमेज : फाइल इमेज

12 किलोमीटर का सफर रोज़ तय करते हैं

मिया खान बेटी को बाइक से हर रोज़ 12 किलोमीटर का सफर तय करके स्कूल छोड़ते हैं और जब तक बेटी की छुट्टी नहीं हो जाती स्कूल के बाहर ही बैठकर 4 घंटे उसका इंतज़ार करते हैं। दिहाड़ी मज़दूर मिया खान की दिल को छू लेने वाली यह कहानी इंटरनेट पर एक एनजीओ ने शेयर की, जो अफगानिस्तान में काम करता है।

बेटों की तरह ही बेटियों को करना है शिक्षित

मिया खान का कहना है कि वह अशिक्षित है और दिहाड़ी मज़दूरी करता है, लेकिन अपनी बेटियों को वह पढ़ाना चाहता है क्योंकि उसके इलाके में कोई भी महिला डॉक्टर नहीं है। उसकी चाहत है कि बेटियां भी बेटों की तरह ही पढ़ें। खुद अशिक्षित और गरीब होने के बावजूद मिया खान को शिक्षा की अहमियत पता है, तभी तो वह हर मुश्किलों को पार करते हुए बेटियों को स्कूल भेज ले जाते हैं।

मिया खान की एक बेटी रोज़ी का कहना है कि वह पढ़ाई करके बहुत खुश है। एक इंटरव्यू के दौरान उसने बताया कि हर दिन उसके पिता या भाई मोटरसाइकिल से उन्हें स्कूल छोड़ते हैं और लेने आते हैं। अफगानी पिता का बेटियों की पढ़ाई के प्रति यह समर्पण वाकई काबिले तारीफ है और इससे यह भी साबित हो जाता है कि राह चाहे कितनी भी कांटों भरी हो, कुछ करने का जज़्बा हो तो सब मुश्किले आसान हो जाती है।

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