अंतरिक्ष में सैर की चाह रखने वाला हर वैज्ञानिक नासा से जुड़ना चाहता है, लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए मज़बूत इरादे और जीतोड़ मेहनत की ज़रूरत होती है। इसी की बदौलत ही भारतीय मूल के श्याम भासकरन न सिर्फ नासा से जुड़े, बल्कि उसके सबसे अहम मिशन का हिस्सा बनकर देश का नाम भी रोशन किया।
ऐतिहासिक मिशन का हिस्सा
कल्पना चावला और सुनीता विलियम के बाद अंतरिक्ष में देश का नाम रोशन करने वालों की लिस्ट में नया नाम जुड़ गया है, मुंबई के श्याम भासकरन का। श्याम नासा के ऐतिहासिक फ्लाइबाय मिशन का हिस्सा थे, जो एक जनवरी को अनजान ऑब्जेक्ट अल्टिमा थुले के पास से गुज़रा। अल्टिमा थुले अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा दूरी पर स्थित ऑब्जेक्ट है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब नासा का कोई मिशन अंतरिक्ष की ज्ञात सीमा से बाहर गया है।
मुंबई में जन्म
नासा की जेट प्रोप्लशन लैबरेटरी में काम करने वाले श्याम का जन्म साल 1963 को मुंबई के माटुंगा में हुआ था। उनके पिता भी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में काम करते थे। भासकरन इससे पहले भी नासा के कई मिशन्स का हिस्सा रह चुके हैं। नासा के न्यू होराइजन स्पेसक्राफ्ट ने जनवरी 2006 को पृथ्वी की सतह से उड़ान भरी थी। इस फ्लाइबाय मिशन में भासकरन ने अहम भूमिका निभाई।
चुनौतीपूर्ण सफर
नासा का नया मिशन भासकरन के लिए आसान नहीं था क्योंकि इससे पहले तक नासा किसी ऐसी चीज़ के पास नहीं गया। जिसके बारे में जानकारी ही न हो और इतना छोटा और अंधकारमय हो, तो उस पर काम करना आसान नहीं होता। भासकरन के मुताबिक, अल्टिमा थुले को ढूंढना ही अपने आप में चुनौतीपूर्ण था। अल्टिमा थुले पर रोशनी इतनी कम है और वह इतना दूर है कि वैज्ञानिकों को फिलहाल उसके आकार का कोई अंदाजा नहीं है, लेकिन अब न्यू होराइजन स्पेसक्राफ्ट के पास तक जाने से कई नए रहस्यों का पता चल सकेगा।
मुंबई से जुड़ाव
भले ही भासकरन अमेरिका में शिफ्ट हो गए हैं, लेकिन अभी भी उन्हें अपने शहर से प्यार है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उन्हें अपने वे दिन अभी भी याद हैं जब वह मुंबई के पेड्डर रोड पर स्थित केनिलवर्थ में रहते थे। उस जगह पर परमाणु ऊर्जा का डिपार्टमेंट था। उनके पिताजी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में ही काम किया करते थे। उन्होंने कहा कि वह दोबारा मुंबई जाना चाहेंगे।
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