अनुष्का भले ही पांच साल की है, लेकिन खाने के लिये अपनी मम्मी को रोज़ाना परेशान करती है। उसकी एक ही ज़िद्द होती है, पहले मोबाइल दो फिर खाना खाऊंगी। हारकर उसकी मम्मी को मोबाइल देना ही पड़ता है, लेकिन जब उसकी दादी उसे प्यार से समझाती है कि बेटा मोबाइल देखने से आंखें खराब हो जाती है, चलो मैं आपको विंडो पर बिठाकर खिलाती हूं, तो नन्हीं अनुष्का झट से दादी की बात मान लेती है। अनुष्का की तरह ज़्यादातर बच्चे भले ही अपने मम्मी-पापा का कहा न मानें, लेकिन दादा-दादी या नाना- नानी की बात ज़रूर मानते हैं।
बच्चों से जुड़ी होती है खुशी
दादा-दादी के लिए इस दुनिया में सबसे ज़्यादा मायने रखता है उनके पोता/पोती के चेहरे की खुशी। तभी तो बुढ़ापे और बीमारी के बावजूद वह बच्चों की खुशी के लिए हर संभव काम करने को तैयार रहते हैं। आज के समय में अधिकांश वर्किंग कपल अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी दादा-दादी या नाना- नानी को ही सौंप देते हैं ताकि वह अपने करियर पर फोकस कर सके। बच्चों की शैतानियां, ज़िद्द और उनकी फरमाइशें पूरी करते-करते कभी-कभी दादा/दादी थक जाते हैं, लेकिन फिर भी वह बच्चे को मायूस नहीं करते।
ज़िंदगी का असली ज्ञान
भले ही बहुत से बुज़ुर्ग पढ़े-लिखे नहीं होते, लेकिन उनके पास ज़िंदगी का जो तजुर्बा होता है, उससे बच्चे बहुत कुछ सीख सकते हैं। असल ज़िंदगी के अनुभव कोई किताब नहीं सिखा सकती। मुश्किल हालात का सामना करना, दूसरों से कैसा व्यवहार करना चाहिए, अपने से बड़ों का सम्मान, ईमानदारी, सबके प्रति प्यार की भावना जैसे गुण बुज़ुर्ग ही बच्चों में डाल सकते हैं।
आजकल के अधिकतर बच्चे टीवी, मोबाइल आदि के कारण गुस्सैल या चिड़चिड़े हो गये है। पर आपने देखा होगा कि जिस घर में बुज़ुर्ग होते हैं, उस घर के बच्चों में संस्कार अपने आप आ जाते हैं। दरअसल दादा-दादी अपने नाती/पोतों को रोचक कहानियां सुनाकर उन्हें नेक इंसान बनाते हैं। जब कभी बच्चे अपनी मर्यादा भूलते हैं तो वो प्यार उन्हें सही रास्ता दिखाते हैं।
हैं सम्मान और प्यार के हकदार
बुज़ुर्ग किसी भी परिवार की अनोमल विरासत हैं, जिन्हें परिवार के हर सदस्य से प्यार और सम्मान मिलना चाहिये। कई बार बेटे-बहू अपने काम में इस कदर खो जाते हैं कि माता-पिता का हालचाल पूछना ही भूल जाते हैं। आज के समय में, जब रिश्तों की उम्र घटती जा रही है बहुत ज़रूरी है कि परिवार के ये रिश्ते बने रहें।
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