समाज में बुजुर्गों का अपना एक अलग स्थान और सम्मान है। बुजुर्ग अपने अनुभवों से नई पीढ़ी को शिक्षा और सबक देते रहे हैं। साल 2020 में भी कुछ बुजुर्गों ने अपने काम से लोगों को न सिर्फ हैरान किया बल्कि प्रेरणा दी कि जीवन में कुछ भी मुश्किल नहीं है।
लेकट्यू सिइमलीह – मेघालय
‘जहां चाह, वहां राह’ यह कहावत तो सभी ने सुनी है, लेकिन इसे साबित किया है मेघालय की 50 साल की लेकट्यू सिइमलीह ने। अपने पोते का स्कूल में एडमिशन कराने गई लेकट्यू ने जब खुद भी पढ़ाई करने की बात प्रिंसीपल से की, तो उन्होंने लेकट्यू के जज़्बे को देखते हुए एडमिशन दे दिया। लेकट्यू ने न सिर्फ पढ़ाई की बल्कि स्कूल की सांस्कृतिक और खेल गतिविधियों में हिस्सा भी लिया। साल 2020 में उन्होंने 12वीं पास करके स्कूली शिक्षा पूरी कर ली।
डी सिवन – तमिलनाडु
मन में हौसला हो, तो कोई मुश्किल सामने नहीं आती। यह बात 65 साल के डी सिवन पर सटीक बैठती है। सिवन पिछले 30 साल से पोस्टमैन थे और अपनी ड्यूटी पूरी शिद्दत से करते थे। वह पत्र देने रोज़ाना 15 किलोमीटर चलकर घने जंगलों को पार करते। जंगल से गुज़रते हुए कई बार उनका सामना जंगली जानवरों से भी हुआ। लेकिन इन मुश्किल हालातों के बीच उन्होंने काम के प्रति अपने समर्पण को कभी कमज़ोर नहीं पड़ने दिया।
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लौंगी भुइया – बिहार
मज़बूत इरादे कभी रुकने नहीं देते, भले ही कितनी भी बड़ी मुश्किल क्यों न आ जाए। यही साबित किया बिहार के 70 साल के बुजुर्ग लौंगी भुइयां ने। बिहार के गया जिले के गांव कोठीलावा में रहने वाले इस बुजुर्ग ने गांव के तालाब में पानी पहुंचाने के लिए नहर खोद डाली। आसपास की पहाड़ियों से बारिश का पानी गांव के खेतों तक पहुंच सके, यह सोचकर उन्होंने यह काम किया। इस काम में उन्हें 30 साल लगे लेकिन अंत में तीन किलोमीटर की लंबी नहर खोद दी। जिसका फायदा अब गांव वाले ले रहे हैं।
जसमेर सिंह संधू – हरियाणा
जज्बा के आड़े उम्र कभी नहीं आ सकती, यह सिद्ध कर दिया है हरियाणा के रहने वाले 62 साल के जसमेर सिंह संधू ने। अपने 62वें जन्मदिन के मौके पर 62.4 किलोमीटर की लंबी दौड़ लगाई है। इस दौड़ को उन्होंने सात घंटे 32 मिनट में पूरा किया। ऐसा कर अपनी उम्र की गिनती को महत्वहीन कर दिया। उनके जोश को देखते हुए सोशल मीडिया पर युवाओं ने उनसे सेहतमंद रहने के टिप्स तक मांगे। जसमेर सिंह ने यह दिखा दिया कि कुछ भी करने के लिए उम्र नहीं मायने रखती है। अगर कुछ मायने रखता है, तो वह है आपके अंदर का हौसला और दृढ़ संकल्प।
रामचंद्र दांडेकर – महाराष्ट्र
लोगों की सेवा करने में जो सुख मिलता है, उसे रोज़ अनुभव करते हैं महाराष्ट्र के 87 साल के होम्योपैथी के डॉक्टर रामचंद्र दांडेकर। गरीब और ज़रूरतमंद लोगों की सेवा के लिये वह हर रोज़ साइकिल से 10 किलोमीटर का सफर तय करते हैं। लोगों के घर जाकर उनका मुफ्त इलाज करते हैं। यह काम वह करीब 60 साल से कर रहे हैं और और कोरोना काल में भी उनकी दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया।
बाबा – गुड़गांव
प्रकृति हमेशा देती है, बदले में कुछ नहीं मांगती। लेकिन यह हमारा कर्तव्य है कि कम से कम एक संकल्प पर्यावरण को सुरक्षित रखने की लें। यही संदेश दे रहे हैं गुड़गांव के 91 साल के बुजुर्ग। पीठ दर्द से परेशान है, लेकिन अपने संकल्प पर अड़िग है इसलिये बिना भूले रोज़ सुबह 4 से 5 बजे के बीच गुरुग्राम की सड़कों पर लगे पौधों को पानी देने का काम करते हैं।
इस उम्र में ये जज़्बा देखकर हमारा इन बुजुर्गों का दिल से सलाम
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