किसी ने सच ही कहा है कि किसी की भी जिंदगी में माता पिता के बाद शिक्षक ही एक ऐसा इंसान होता है, जो आपको सही राह दिखाता है। तभी तो टीचर का भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में खास दर्जा हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि वह सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं देते बल्कि समाज में रहने का सलीका सिखाते है। भारत में कई ऐसे महान शिक्षक हुए हैं,जिन्होंने भारत की एजुकेशन को नई दिशा दी हैं।
आचार्य चाणक्य
शिक्षा आपकी सच्ची दोस्त है। शिक्षित इंसान का हर जगह आदर होता है।
एजुकेशन को लेकर कुछ ऐसे विचार थे आचार्य चाणक्य के, जिनकी कही गई बातें आज भी काम आती हैं। शुरू से ही चाणक्य ज्ञानी तो थे ही, साथ ही वह बहुत बड़े देशभक्त भी थे। उनकी समझदारी और नीतियों के कारण ही मौर्य समाज की स्थापना हुई। वह यह बात अच्छे से समझते थे कि अगर देश को आगे बढ़ाना है तो राजा के साथ साथ लोगों का शिक्षित होना बहुत जरूरी है। इसी कारण उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा दिया और वह तक्षशिला यूनिवर्सिटी में पढ़ाते थे। कहते है कि वह बच्चों को बिना देखे और बिना आवाज़ का इस्तेमाल किए युद्ध की शिक्षा देते थे। हज़ारों साल पहले लिखे उनके दो ग्रंथों अर्थशास्त्र और चाणक्य नीतिशास्त्र की नीतियां आज भी छात्रों को इंस्पायर करती है।
रबींद्रनाथ टैगोर
उच्च शिक्षा वो है जो हमें सिर्फ जानकारी ही नहीं देती बल्कि हमारे जीवन के अस्तित्व के साथ सद्भाव लाती है।
रबींद्रनाथ टैगोर के इन्हीं विचारों के कारण उन्हें गुरूदेव कहा जाता हैं। इसमें कोई शक नहीं कि वह बहुत बड़े कवि, लेखक और कलाकार थे लेकिन उनमें भविष्य को समझने की जो शक्ति थी, उसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती। गुरूदेव हमेशा चाहते थे कि बच्चे नेचर से जुड़े और इसके बीच रहकर ही पढ़े ताकि उन्हें अच्छा माहौल मिल सके। इसी वजह से रबींद्रनाथ टैगोर ने साल 1901 में शांतिनिकेतन की स्थापना की, जिसमें उन्होंने क्लास की चारदीवारी को छोड़कर पेड़-पौधों के बीच बच्चों को पढ़ाया। बच्चों की शिक्षा को लेकर उनमें इतना लगाव था कि शांतिनिकेतन में लाइब्रेरी भी बनाई। उनकी मेहनत की वजह से शांतिनिकेतन को यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला और लाखों बच्चों ने अध्ययन और कला की पढ़ाई की।
असिमा चैटर्जी
सीखने की चाह हो तो मंजिलें मिल जाती है।
साल 1920 -1930 में जब लड़कियों की पढ़ाई को लेकर सोचा तक नहीं जाता था, तब असिमा चैटर्जी कैमिस्ट्री में डॉक्टरेट हासिल करने वाली भारत की पहली महिला बनी। उनकी कड़ी मेहनत का नतीज़ा था कि आज हम मिरगी और मलेरिया जैसी बीमारियों से लड़ सकते हैं। डॉ. असिमा का कैंसर की दवाई बनाने में बहुत बड़ा योगदान रहा हैं। साल 1940 में डॉ. असिमा को कोलकता के लेडी ब्रेबॉर्न कॉलेज में केमिस्ट्री डिपार्टमेंट का फांउड़र हेड बनाया गया। उन्होंने अपने टीचिंग करियर में हज़ारों छात्रों को बहुत इंस्पायर किया।
चाणक्य, टैगोर और असिमा जैसे न जाने कितने शिक्षक हैं, जिनके पढ़ाने के तरीके ने देश के नहीं बल्कि विदेशी छात्रों को भी अपना बना लिया हैं। हमारा सभी अध्यापकों को शत शत नमन हैं।
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