जब भी कविताओं या रचनाओं की बात होती है, तो देश की कई ऐसी कवियत्रियों और लेखिकाओं के नाम दिमाग में आते है, जिन्होंने देश की आज़ादी से लेकर समाज को कुरीतियों से निकलाने में अहम भूमिका निभाई है।
बहिनाबाई चौधरी
महाराष्ट्र के जलगांव में जन्मी बहिनाबाई पढ़ी- लिखी नहीं थी, इसके बावजूद उनकी गिनती अपने समय के प्रसिद्ध कवियों में होती है। वह अपनी कविताओं को ज़ुबान देती थी, जिनको उनके बेटे सोपनदेव ने कलम से आकार दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे ने अपनी मां की रचनायें प्रहलाद केशव (आचार्य) आत्रे को सुनाई, जिसके बाद उनकी एक किताब ‘बहिनाबेंची गानी’ के नाम से छपी। किसान की बेटी होने के कारण उन्हें खेती-बाढ़ी की गहराई से समझ थी, जिसकी झलक अक्सर उनकी कविताओं में दिखती थी।
सुभद्रा कुमारी चौहान
‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’ आज भी पढ़कर रगों में खून दोगुनी तेजी से दौड़ उठता है। वीर रस की यह पंक्ति लिखने वाली कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान हैं। 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद में जन्मी सुभद्रा कुमारी चौहान बचपन से ही कविता लिखने लगी थीं। जबलपुर में साल 1922 का ‘झंडा सत्याग्रह’ देश का ऐसा पहला सत्याग्रह था, जिसमें सुभद्रा पहली महिला सत्याग्रही थीं। उन्होंने लगभग 88 कविताओं और 46 कहानियों की रचना की, जिसमें अशिक्षा, अंधविश्वास, जातिप्रथा आदि रूढि़यों पर प्रहार किया गया है।
महादेवी वर्मा
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में जन्मी महादेवी वर्मा के नाम से भला कौन परिचित नहीं होगा। उन्हें छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता था। महादेवी वर्मा में काव्य के बीज बचपन से ही मौजूद थे। सात साल की उम्र में, अपनी मां को पूजा करते देख, उन्होंने अपनी पहली तुकबंदी लिखी थी।
ठंडे पानी से नहलाती
ठंडा चन्दन उन्हें लगाती
उनका भोग हमें दे जाती
तब भी कभी न बोले हैं
मां के ठाकुर जी भोले हैं।
अमृता प्रीतम
फिलहाल पाकिस्तान में स्थित गुजरांवाला में जन्मी अमृता प्रीतम अपनी कविता ‘अज्ज अक्खां वारिस शाह नू’ के लिए प्रसिद्ध हैं। 20वीं शताब्दी की पहली लेखिकाओं में शुमार अमृता ने पंजाबी और हिंदी में करीब सौ से भी ज़्यादा किताबें लिखी है। देश के विभाजन के समय महिलाओं पर हुए अत्याचारों से परेशान होकर उन्होंने ‘पिंजर’ उपन्यास को जन्म दिया। अपने मार्मिक लेखों के माध्यम से वह पंजाबी साहित्य में महिलाओं की आवाज़ बन गईं।
झुम्पा लाहिड़ी
झुम्पा लाहिड़ी का जन्म भले ही इग्लैंड में हुआ था लेकिन माता-पिता ने उनकी परवरिश अपने देश की संस्कृति के हिसाब से की थी। हालांकि कॉलेज जाने से पहले भी वह बहुत अच्छा लिखती थीं, लेकिन बतौर लेखिका उनके लेख ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही छपे। उनकी शॉर्ट स्टोरीज़ ‘द न्यू यॉर्कर’, ‘हार्वर्ड रिव्यू’ और ‘स्टोरी क्वाटर्ली’ जैसी पत्रिकाओं में छपीं, जिनको उन्होंने अपने ‘इंटरप्रेटर ऑफ मालडीव्ज़ (1999)’ में छापा, जिसके लिए उन्हें पुल्टिजर अवार्ड भी मिला।
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