हिंदी साहित्य और प्रेम का ज़िक्र अमृता प्रीतम के नाम के बिना अधूरा है। पंजाबी भाषा की मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम के विचार समय से बहुत आगे के थे। उन्होंने महिलाओं की आज़ादी और उनकी मर्जी को हमेशा तवज्जो दी है। वह चाहती थीं कि महिलाओं को उनकी मर्जी से जीने की इजाज़त मिले। दुनिया की परवाह किये बगैर सारी ज़िंदगी वह अपनी शर्तों पर जीती रही।
लाहौर में बीता बचपन
अमृता प्रीतम का जन्म गुजरांवाल पंजाब में 1919 में हुआ था। सिख परिवार में जन्मी अमृता का बचपन लाहौर में बीता। 1947 में बंटवारे के बाद वह दिल्ली आईं। अमृता ने अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए बहुत कम उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। 16 साल की उम्र में ही 1935 में उनकी पहली किताब आई थी और उसी साल उनकी शादी प्रीतम सिंह से हो गई। अमृता को पंजाबी भाषा की पहली कवियत्री माना जाता है। उनके लेखन को भारत के साथ ही पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी खूब सराहा जाता है। उनकी रचनाओं के अनुवाद के बाद को देश-विदेश में उनके चाहने वाले हो गए। वह लिखने के साथ ही सामाजिक काम भी करती थीं।
विवादों से रिश्ता
अमृता प्रीतम की लेखनी को भले ही देश-विदेश में लोग पसंद कर रहे थें, लेकिन साहित्यिक जगत में उन्हें अपने मुखर व्यक्तित्व और आज़ाद ख्याली की वजह से हमेशा विरोध का सामना करना पड़ा। अपनी आत्मकथा ‘रशिदी टिकट’ में उन्होंने इसे बारे मे भी लिखा है। अमृता उस दौर में महिलाओं की आज़ादी की बात करती थीं, जब उन्हें घर से निकलने की भी इजाज़त नहीं थी। इसलिये उस ज़माने में वह आज़ाद ख्याल लड़कियों की रोल मॉडल थीं।
सम्मान
अमृता प्रीतम ने कहानी, उपन्यास, निंबध, कविताओं समेत 100 से ज़्यादा किताबें लिखीं। वह पहली महिला लेखिका थी जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार और पद्मविभूषण के अलावा और भी कई सम्मान मिल चुके हैं। उनके मशहूर उपन्यास पिंजर पर बॉलीवुड फिल्म भी बन चुकी है।
इमेज : विदावेब
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