आज हम ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां लोगों का दिमाग में नेगेटिविटी बहुत ज़्यादा बढ़ती जा रही है। ऐसे समय में आध्यात्मिकता की अहमियत और बढ़ जाती है क्योंकि यह प्यार और इंसानियत का पाठ पढ़ाती है। आध्यात्मिक अनुभव का हमारे दिमाग के खास हिस्से से भी गहरा कनेक्शन है और यह आपको नेगेटिविटी से भी दूर रखता है।
क्या है आध्यात्मिकता?
आध्यात्मिक होने का मतलब अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ना या सांसारिक सुखों का त्याग करना नहीं है, बल्कि इसका असली अर्थ है अपने अंदर की शक्ति को पहचानना। इस बात का एहसास होना कि हम जिस स्थिति में है, जैसे भी हैं उसके लिए कोई और नहीं, बल्कि हम स्वयं ही ज़िम्मेदार है। यानी खुद को जानना और समझना ही आध्यात्मिकता है। साथ ही आध्यात्मिक होने का मतलब यह भी है कि हर हाल में खुश रहना और अपने अंदर पॉज़िटिव सोच का विस्तार करना। जाहिर है जब आप अच्छा सोचेंगे, पॉज़िटिव बने रहेंगे, तो दिमाग भी स्वस्थ रहेगा।
आध्यात्मिकता का ब्रेन कनेक्शन
आध्यात्मिक अनुभव होने पर इंसान के दिमाग पर क्या असर होता है, वैज्ञानिकों ने इस बात का अध्ययन किया है। येल यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के मुताबिक, आध्यात्मिक अनुभवों में विभिन्नता, अलग धर्म और लिंग के बावजूद आध्यत्मिक अनुभव का हर किसी के दिमाग पर एक जैसा ही असर होता है। इस दौरान दिमाग का एक खास हिस्सा एक्टिव होता है, चाहे व्यक्ति का आध्यात्मिक अनुभव कितना भी अलग क्यों न हो। अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक, आध्यात्मिक अनुभव में व्यक्ति का संसार वर्तमान समय से संपर्क टूट जाता है और वह ‘स्वयं की भावना’ की गहराई से जुड़ जाता है, यानी वह खुद को पहचानता है। हमारे आध्यात्मिक अनुभव बाहर से देखने पर भले ही अलग लगे, लेकिन अंदर से यह एक जैसे ही हैं।
समानता का भाव
इस अध्ययन से सभी धर्मों में आध्यात्मिक आधार पर समानता का भाव भी पता चलता है। दरअसल, सभी धर्म और दर्शन में एकता और दया की भावना पर फोकस किया गया है। दूसरों के साथ एकता भी भावना से प्रकृति और जानवरों के प्रति भी दया की भावना बढ़ती है। सभी धर्म, संप्रदाय और लिंग के लोगों का दिमाग आध्यात्मिक अनुभव के दौरान एक ही तरह से प्रतिक्रिया करता है। इस वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर विभिन्न धर्मों के बीच की खाई को कम किया जा सकता है।
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