अपनी बात को ठीक ढ़ंग से एक्सप्रेस करना भी एक आर्ट है, लेकिन क्या आपको पता है कि आप अपनी बात आर्ट के ज़रिये भी बता सकते हैं, जिसे आर्ट थेरेपी कहा जाता हैं। आर्ट थेरेपी में ड्रॉइंग, पेंटिंग, कोलाज मेकिंग और कलरिंग जैसे रचनात्मक तरीकों से अपने जज़्बात समझाने की कला सिखाई जाती है। इस कला में एक अनुभवी व ट्रेंड आर्ट थेरेपिस्ट आपकी बनाई गई आर्ट से आपकी मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक बातों को समझने की कोशिश करता है। ये भावनायें आप आमतौर पर दूसरों के सामने व्यक्त नहीं कर पाते।
कब होती है आर्ट थेरेपी की ज़रूरत?
यह थेरेपी बच्चों, किशोर उम्र वालों और व्यस्कों सभी के साथ की जा सकती है। इस थेरेपी से व्यक्ति अपनी भावनाओं को समझने के साथ-साथ इन बातों में भी बदलाव ला सकता हैः
– आत्मसम्मान में बढ़ोतरी
– किसी भी चीज़ की लत को काबू करना
– स्ट्रैस कम करना
– चिंता के लक्षणों में सुधार, या
– किसी शारीरिक बीमारी या विकलांगता का सामना करने की ताकत हासिल करना
आपके लिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि आर्ट थेरेपी करने के लिये आप में कलात्मक या ड्राइंग जैसी किसी प्रतिभा का होना ज़रूरी नहीं है। कोई भी थैरेपिस्ट आपकी बनाई गई रचना की सुंदरता नहीं देखता, वह तो बल्कि उन चित्रों या रचनाओं से आपकी भावनाओं को समझने की कोशिश करता है। ऐसी भावनायें, जिन्हें आप आमतौर पर बयान नहीं कर पाते।
जानिये आर्ट थेरेपी के कुछ जाने माने तरीके
हालांकि, आर्ट थेरेपी में कई तरह के विकल्प होते हैं, लेकिन यहां आपको कुछ पॉपुलर आर्ट थेरेपीज़ के बारे में बताया जा रहा है, जिनका एक्सपर्ट्स ज़्यादातर इस्तेमाल करते हैं।
- पेंटिंग
- ड्रॉइंग
- स्कल्पचर
- कोलाज
- राइटिंग
- फोटोग्राफी
- टेक्स्टाइल्स
अमेरिकन आर्ट थेरेपी एसोसिएशन के अनुसार, कला चिकित्सक को रंग, बनावट, और विभिन्न आर्ट मीडिया को समझने के लिए ट्रेन किया जाता है, साथ ही किस तरह यह टूल्स किसी के विचारों, भावनाओं और मनोवैज्ञानिक स्वभाव को प्रकट करते हैं, यह ट्रेनिंग भी दी जाती है।
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