दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो सिर्फ अपने लिये नहीं, बल्कि समाज के लिये जीते हैं और ताउम्र दूसरों की भलाई के लिए काम करते रहते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं, महान समाज सुधारक, लेखक और शिक्षक ईश्वरचंद्र विद्यासागर। बेहद विनम्र स्वभाव के ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने न सिर्फ समाज की भलाई के लिये काम किया, बल्कि अपने सौम्य स्वभाव से लोगों को प्रेरित भी किया।
प्रेरक कहानी
ईश्वरचंद्र विद्यासागर अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर कोलकत्ता यूनिवर्सिटी शुरू करने के मिशन पर काम कर रहे थे। इसके लिये वह दान के ज़रिये धन जुटा रहे थे। इसी सिलसिले में वह अयोध्या के नवाब के महल में गये, जो बहुत दयालु इंसान नहीं था। हालांकि विद्यासागर के दोस्तों ने उन्हें वहां जाने से मना भी किया था, मगर वह नहीं माने और नवाब को पूरी स्थिति बताई। सारी बातें सुनने के बाद नवाब ने उनके दान वाले थैले में अपना जूता डाल दिया। विद्यासागर ने नवाब को धन्यवाद दिया और वहां से चले गये।
फिर क्या हुआ?
अगले दिन ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने नवाब के महल के सामने ही उसके जूतों की नीलामी रखी। नवाब को खुश करने के लिये अन्य लोगों के साथ ही दरबार के कई गणमान्य लोग भी नीलामी के लिये आये। नवाब के जूते 1000 रुपए में बिके। जब नवाब को यह बात पता चली, तो वह बहुत खुश हुआ हुआ और उतनी ही राशि दान में दी।
दिखाई विनम्रता
जब नवाब ने ईश्वरचंद्र के थैले में जूते डाले थे, तो उस वक्त वह दूसरी तरह से भी प्रतिक्रिया दे सकते थें। वह इसे अपना अपमान समझकर दुखी हो सकते थें, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और इन जूतों को एक अपने मिशन को पूरा करने में एक अवसर की तरह इस्तेमाल किया। उन्हें न सिर्फ पैसे मिले, बल्कि नवाब भी खुश हो गया। ईश्वरचंद्र ने हमेशा अपनी निजी भावनाओं से अलग एक लक्ष्य को पूरा करने के लिये काम किया। इसी का नतीजा था कि कलकत्ता यूनिवर्सिटी खोलने का उनका सपना पूरा हुआ और यह कला, सामाजिक अध्ययन, विज्ञान और तकनीकी शिक्षा का केंद्र बन गया।
सीख
कभी किसी चीज़ या परिस्थिति को छोटा समझकर दुखी न हो, बल्कि उसका पॉज़िटिव तरीके से इस्तेमाल करके अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें। कई बार छोटे दिखने वाले मौके आपको जीवन में बड़ी सफलता दिला सकते हैं।
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