कहते है कि एक बार अगर आपने कुछ ठान लिया तो आधी जीत तो उसी समय हो जाती है। बस जरूरी है कि मन में ढृढ संकल्प होना चाहिए। आज छह कंपनियों की कमान संभालने वाली कल्पना सरोज की ज़िंदगी न सिर्फ बहुत कुछ सिखाती है बल्कि प्रेरणा भी देती है।
भले ही आज कल्पना सरोज उद्योग जगत का जाना माना नाम हैं लेकिन यह सब हासिल करने का उनका सफर बहुत प्रेरणात्मक रहा हैं।
अतिसाधारण पृष्ठभूमि
कल्पना का जन्म साल 1961 में महाराष्ट्र के ओकला में हुआ। कल्पना के पिता पुलिस में थे और सैलेरी पर कल्पना के दो भाई, दो बहन, दादा-दादी और चाचा का परिवार निर्भर था। कल्पना बचपन से पढ़ने में काफी अच्छी थीं लेकिन सातवीं क्लास में आते ही उनकी शादी हो गई और वो अपने पति के साथ मुंबई आ गईं।
आसान नहीं थी ज़िंदगी
कल्पना की ज़िंदगी मुंबई में काफी मुश्किलों भरी रही। छोटी-छोटी बातों पर सुसराल में उसे शारीरिक व मानसिक तौर पर परेशान किया जाता था। एक दिन अचानक कल्पना के पिता सरप्राइज देने पहुंचे और बेटी की हालत देखकर हैरान रह गए और उसे अपने साथ घर वापस ले आए।
मुंबई आने का फैसला
कल्पना सरोज आत्मनिर्भर बनना चाहती थी, जिसके लिए उसने अपने परिवार को मुंबई जाने के लिए राज़ी किया। मुंबई आकर कल्पना ने सिलाई के काम से शुरूआत की और उन्हें महीने के 60 रूपए मिलते थे। इसी बीच में किसी कारण से पिता की नौकरी छूट गई और पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी उनके ऊपर आ गया।
बिज़नेस का लिया फैसला
कल्पना ने एक सरकारी योजना के तहत 50 हजार रूपये का कर्ज लिया और कपड़ो का बुटीक खोला और बचत के पैसों से फर्नीचर का बिज़नेस शुरू किया।
मिली कमानी इंडस्ट्री की बागडोर
साल 1985 में बंद कमानी इंडस्ट्री को शुरूआत करने की अनुमति सुप्रीम कोर्ट ने दी। कंपनी के वर्कर चाहते थे कि कल्पना कर्ज में डूबी कंपनी की कमान संभाले। सरकारी कर्जे में डूबी कंपनी और ट्यूब्स के बारे में कोई जानकारी न होने के बावजूद उनके हौसलों और कोशिशों का नतीज़ा यह निकला कि एक कर्ज में डूबी कंपनी आज 500 करोड़ से भी ज्यादा की कंपनी बन गई है।
जज़्बे को सलाम
कल्पना के कभी हार ना मानने वाले फैसले ने उन्हें आज शिखर तक पहुंचाया हैं। उनकी यहां तक पहुंचने की कहानी कइयों के लिए प्रेरणादायक है।
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