अपने बच्चे हर मां-बाप को प्यारे होते हैं। जहां एक तरफ मां को बच्चे के खाने पीने की चिंता होती है, वहीं दूसरी ओर पिता को लगता है कि टीवी या मोबाइल की आदत से बच्चे की नज़र कमज़ोर न पड़ जाए। लेकिन जो बात आपके लिए जानना ज़रूरी है, वह बहुत बड़ी है। विश्वप्रसिद्ध जनरल ‘लैंसेट’ द्वारा की गई एक रिसर्च की माने, तो बच्चों के ग्रोइंग इयर्स यानी आठ से ग्यारह साल की उम्र में कुछ आदतों का विकसित होना बच्चे की दिमागी ग्रोथ के लिए बेहद ज़रूरी है।
क्या है यह खोज?
लैंसेट इस दिशा में जानकारी हासिल करना चाहता था कि बच्चों पर ‘सोना’, ‘व्यायाम करना’ और ‘स्क्रीन टाइम’ किस तरीके से असर डालता है। बेंचमार्क के लिए ‘कैनेडियन 24-आवर मूवमेंट गाइडलाइन फॉर चिल्डरन एंड यूथ’ का इस्तेमाल किया गया। इस गाइडलाइन के अनुसार आठ से ग्यारह साल के बच्चों के लिए इन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है-
सोना – नौ से ग्यारह घंटे।
कसरत – कम से कम एक घंटा।
स्क्रीन टाइम – दो घंटे से ज़्यादा नहीं।
क्या रहे नतीजे?
इस रिसर्च में 4500 बच्चों ने भाग लिया जिनका भाषा, याददाश्त, तेज़ी और दूसरी चीज़ों का टेस्ट लिया गया। इस स्टडी में पाया गया कि केवल पांच प्रतिशत बच्चे ऊपर बताई गई तीनों गाइडलाइंस को का पालन करते थे और 29 प्रतिशत बच्चे एक भी प्वाइंट को कवर नहीं कर पा रहे थे। इस स्टडी से यह भी पता चला कि जो बच्चे इन तीनों प्वाइंट्स को फॉलो कर रहे थे, उनका बाकी बच्चों से हर क्षेत्र में काफी अच्छा प्रदर्शन था। हालांकि जो बच्चे तीन में से कोई एक प्वाइंट को मिस कर रहे थे, उनके प्रदर्शन और तीनों प्वाइंट्स फॉलो करने वाले बच्चों के प्रदर्शन में कोई खास फर्क नहीं था। जो बच्चे तीन में से कोई भी दो प्वाइंट फॉलों नहीं करते थे, उनका प्रदर्शन काफी खराब था। ध्यान देने वाली बात यह है कि जिन बच्चों का स्क्रीन टाइम यानी कि टीवी देखना या कंम्यूटर इत्यादि गैजेट का इस्तेमाल दो घंटों से ज़्यादा था, उनका दूसरे बच्चों के मुकाबले काफी खराब प्रदर्शन था।
ऐसे मदद करें
- नींद को केवल घंटों में न देखें बल्कि अपने बच्चे के स्लीपिंग पैटर्न को समझने की कोशिश करें। अगर वह बीच में बार-बार जागता है, तो हो सकता है कि उसकी नींद पूरी न हो पाए।
- कसरत का मतलब केवल एक घंटे के लिए उसे पार्क में ले जाना नहीं है। यह जानने कि कोशिश करिए कि उसका रुझान किस खेल में है और बच्चे को उसके लिए प्रेरित करिए। आज दी गई प्रेरणा उसे जीवन भर के लिए व्यायाम से जोड़ देगी।
- कोशिश कीजिए कि जब भी बच्चा टीवी या मोबाइल के सामने बैठे, तो उसके लिए वैब टाइम ‘लर्निंग टाइम’ बन जाए। कार्टून या पिक्चरों की बजाय उसे उसकी उम्र के मुताबिक डॉक्यूमेंट्री, सोलर सिस्टम और दूसरे दिलचस्प टॉपिक देखने के लिए प्रेरित करें। इससे उसका ‘स्क्रीन रीक्रिएशनल टाइम’‘लर्निंग टाइम’ में बदल जाएगा।
इन बातों का ध्यान रख कर आप अपने बच्चे के दिमागी विकास में बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं।
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