स्वच्छ भारत का सपना हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी ने देखा था और इस सपने को पूरा करने के लिए कई लोग बरसों से लगे हुए है, जिसमें से एक 58 साल की कलावती देवी है, जो कानपुर की रहने वाली है।
कलावती देवी की हिम्मत
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले की रहने वाली कलावती देवी पेशे से मिस्त्री है। कलावती परिवार में इकलौती कमाने वाली सदस्य है, पति और दामाद की मृत्यु के बावजूद उनका हौसला नहीं टूटा और कानपुर जिले में खुले शौच करने की सोच को खत्म करने की मुहिम जारी रखी। कलावती खुले में शौच से होने वाली बीमारियों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए लोगों के घर-घर जाती थी।
खुले में शौच मुक्त की शुरुआत
कलावती की शादी महज 13 साल की उम्र में हुई थी। शादी के बाद वह पति के साथ कानपुर में राजापुरवा स्लम में आकर बस गईं। बालविवाह होने से कलावती कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन कुछ करने का जज़्बा हमेशा से उनके मन में था। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि करीब 700 लोगों की आबादी वाले इस पूरे मोहल्ले में एक भी शौचालय नहीं था। सभी लोग खुले में शौच के लिए जाते थे। उनका स्लम गंदगी के ढेर पर बसा था, यह देखकर कलावती ने सबसे पहले मौहल्ले को खुले में शौच मुक्त करने की ठानी। लोगों को शौचालय की ज़रूरत समझाई और शौचालय बनाने के लिए चंदा मांगकर शौचालय बनाने की मुहिम शुरु की।
लोगों के ताने सुनें, लेकिन कभी नहीं मानी हार
मिस्त्री की जानकारी होने से उसे अपनी ताकत के रूप में इस्तेमाल किया और श्रमिक भारती संस्था के साथ मिलकर उन्होंने नुक्कड़ नाटक के ज़रिए लोगों को जागरूक किया। साथ ही अपने हाथों से गंदगी साफ कर शौचालय बनाना शुरु किया। कई बार लोगों ने बुरा -भला भी कहा, लेकिन कभी हार नहीं मानी। कलावती ने धीरे- धीरे जागरूकता फैलाते हुए मौहल्ले से लेकर पूरे गांव में लगभग 4000 से अधिक शौचालय बनाकर एक मिसाल कायम की है।
स्वच्छता की मिसाल के लिए मिला ‘नारी शक्ति’
कानपुर को खुले में शौच से मुक्त बनाने और 4000 से अधिक शौचालय का निर्माण करने में कलावती देवी के अहम योगदान की सराहना करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें नारी शक्ति से सम्मानित किया।
इमेज : ट्विटर
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