जीवन में कई पल ऐसे आते हैं, जब आपको किसी की बात से ठेस पहुंचती है और जब कोई अपना दुख देता है, तो दर्द दोगुना हो जाता है। ऐसे में आप क्या करते हैं, उस बात को बार-बार सोचकर परेशान होते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि जितनी बार आप उस बात के बारे में सोचेंगे, उतना ही दर्द गहरा होता जायेगा। चलिए आपको गहराई से समझाते हैं।
प्रोफेसर ने समझाया खुशहाल जीवन का मंत्र
एक बार एक सायकलॉजी के प्रोफेसर ने जब छात्रों से भरे ऑडिटोरियम में पानी का गिलास उठाया, तो सभी को लगा कि फिर वही सवाल पूछा जायेगा कि आधा गिलास खाली या आधा गिलास भरा क्यों है। सब छात्र सोच रहे थे कि प्रोफेसर पुराना किस्सा सुनायेंगे। लेकिन इसके बजाय अपने चेहरे पर एक मुस्कुराहट के साथ प्रोफेसर ने पूछा, ‘जिस गिलास को मैंने पकड़ा है, वो कितना भारी है?’
सवाल सुनते ही ऑडिटोरियम के हर कोने से जवाब आने लगे। किसी ने कहा 100 ग्राम, तो कोई बोला आधा किलो। ऐसे कई जवाब छात्रों ने प्रोफेसर को दिये।
फिर क्या कहा प्रोफेसर?
सवालों के जवाब सुनकर प्रोफेसर एक बार फिर मुस्कुरायें और बोले कि इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि इस गिलास का वज़न कितना है। फर्क इस बात से पड़ता है कि मैं इसे कितनी देर तक पकड़ कर रख सकता हूं। अगर मैं इसे कुछ मिनट के लिये पकड़कर रखता हूं, तो मुझे यह हल्का ही लगेगा। अगर मैं इसे घंटे भर के लिये पकड़ता हूं, तो मेरे हाथ में दर्द होने लगेगा। लेकिन अगर मुझे इस गिलास को पूरे दिन हाथ सीधा करके पकड़ना पड़े, तो यकीनन मेरा हाथ सुन्न पड़ जायेगा। हो सकता है कि मुझे पैरालायसिस भी हो जाये, जिसकी वजह से मुझे मज़बूरन इस गिलास को नीचे गिराना पड़े।
क्या मिली सीख?
फिर प्रोफेसर ने समझाया कि हमारे जीवन में चिंता और परेशानियां इस पानी के गिलास की तरह हैं। अगर आप उनके बारे में थोड़ी देर सोचेंगे, तो आपको कुछ नहीं होगा। अगर आप उनके बारे में थोड़ा और ज़्यादा सोचेंगे, तो आपके मन को दुख होगा। लेकिन अगर आप हर समय उन्हीं के बारे में सोचते रहोगे, तो आपके मन को बहुत गहरी चोट पहुंचेगी। वो आपको इतना परेशान कर देगी कि जब तक आप उसके बारे में पूरी तरह से सोचना नहीं छोड़ दोगे, तब तक आप कुछ और न तो कर पाओगे और न ही सोच पाओगे।
मन हल्का रखने के लिये ‘कदम उठाये सही’
– आपस में बात क्लीयर करने की कोशिश करें।
– अगर सामने वाला आप से बात न करना चाहे, तो उसकी बात को दिल से न लगायें।
– मन भारी लगे, तो किसी अपने से मन की बात साझा कर लें।
– मेडिटेशन की रेगुलर प्रैक्टिस करें।
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