डिप्रेशन एक ऐसी मानसिक स्थिति होती है, जिसमें डॉक्टर से ज्यादा किसी भी शख्स को बाहर निकलने के लिए आत्मविश्वास की जरूरत पड़ती है। कश्मीर की रहने वाली 20 साल की इंशा ख्वाज़ा भी कई सालों तक डिप्रेशन में रह चुकी हैं। उनकी यह कहानी न सिर्फ आपको प्रेरित करेगी बल्कि सोचने पर भी मज़बूर करेगी कि कैसे एक लड़की ने बुरे वक्त का योद्धा की तरह सामना किया।
दस साल में पिता की मौत
महज दस साल की उम्र में इंशा के सिर से पिता का साया उठ गया था, जिसके बाद इंशा डिप्रेशन में चली गई। खेलने-कूदने की उम्र में इंशा उस मानसिक स्थिति से गुजर रही थी, जो किसी भी शख्स के लिए दर्दनाक हो सकती है। इंशा भी सबसे अलग खामोशी में जी रही थी लेकिन उसने अपनी खामोशी को खुद पर हावी नहीं होने दिया।
फाइंडिंग द लॉस्ट यू
जिस खामोशी ने इंशा को दुनिया से अलग कर रखा था वही खामोशी उन्हें नया मुकाम दे गई। इंशा न सिर्फ दस सालों के बाद डिप्रेशन से भी बाहर निकल पाईं बल्कि अब वो डिप्रेशन से जूझ रहे मरीजों के लिए कुछ करना चाहती है। इसलिए इंशा ने डिप्रेशन पर किताब लिखी है, जिसका नाम है ‘फाइंडिंग द लॉस्ट यू’।
आत्मशक्ति की जरूरत
इंशा का मानना है कि मेडिकेशन के अलावा अगर आत्मशक्ति हो, तो कोई भी डिप्रेशन से लड़ सकता है और जीत सकता है। इंशा ने अपनी किताब ‘फाइंडिंग द लॉस्ट यू’ में भी इसकी चर्चा की है। उन्होंने लिखा है कि डिप्रेशन में कोई भी इंसान खुद ही अपना डॉक्टर होता है। उसे डिप्रेशन से बाहर निकलने में सबसे ज्यादा मदद भी खुद से ही मिल सकती है।
पॉकेटमनी से पब्लिश की किताब
इंशा ने अपने सपने को पूरा करने के लिए किसी का सपोर्ट नहीं लिया और खुद की पॉकेटमनी से इस किताब को छपवाया। इस किताब के जरिए इंशा की कोशिश है कि वह उन लोगों की मदद कर सके जो खुद को आशाहीन महसूस करते हैं।
सपने को रखा जिंदा
इंशा तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी है और फिलहाल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है। वैसे तो वह इंजीनियरिंग कर रही है लेकिन साइंस से उनकी कोई खास दिलचस्पी नहीं है क्योंकि उनका मन लिखने में बसता है। वह अपने इस सपने को आगे बढ़ाना चाहती है और इसे पूरा करने की पुरज़ोर कोशिश कर रही हैं।
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