ज़िंदगी हर पल इम्तिहान लेती है और इन इम्तिहानों का डटकर सामना करना ही असल ज़िंदगी है। ज़िंदगी के मैदान में भले ही कितनी बार हारें, इसका ये मतलब है कि हमें मैदान में तब तक डटे रहना है जब तक जीत हमारी न हो। हम बात कर रहे है सिक्सर किंग युवराज सिंह की।
क्रिकेट के बनें राजकुमार
युवराज सिंह उस समय युवाओं की पहली पसंद बनकर उभरे, जब 2007 में खेले गए टी-20 वर्ल्ड कप में उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ खेलते हुए स्टुअर्ड ब्राड की सभी 6 गेंदों पर 6 छक्के मारकर कभी न टूटने वाला टी-20 मैचो का रिकॉर्ड बना डाला। इतना ही उसी खेल में उन्होंने अपना अर्ध शतक भी पूरा किया, जो कि 20-20 फॉर्मेट का विश्व रिकॉर्ड है। यह वह पल था जब उन्होंने न सिर्फ दमदार खेल से सभी का दिल जीता बल्कि सिक्सर किंग भी कह लाये। उन्होंने इस पल को यादगार बना दिया।
ज़िंदगी के खेल में हराया कैंसर को
अपनी कड़ी मेहनत और लगन से लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले युवी जहां कामयाबी की बुलंदियों को छू रहे थे। वहीं अचानक वर्ल्ड कप के समय उनकी तबीयत खराब होने लगी। अक्सर खांसी और खून की उल्टी से परेशान होते रहे, इसके बावजूद वह सारे मैच खेलते रहे और किसी को इस बात की भनक तक नहीं हुई। युवी अपने कैंसर की पूरी लड़ाई को अपनी लिखी हुई किताब ‘ द टेस्ट ऑफ माई लाइफ ’ में बयां किया है।
युवराज ने कहा है कि “ कोई भी बीमारी आपको अंदर से तोड़ने के लिये काफी होती है। आप चारों ओर निराशा से भर जाते हैं, लेकिन आपको निराश होने की बजाय उससे डटकर लड़ने की ज़रुरत है। बीमारी के समय आपके भविष्य को लेकर जो मुश्किल सवाल आपके मन में आते हैं। उसका आपको सामना करना चाहिये।“
सुख नहीं, दुख बांटने भी ज़रूरी है
युवराज अपनी किताब के ज़रिए अपनी कहानी इसलिए लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं ताकि ऐसे हालात में जी रही लोग ये न समझें कि वह अकेले हैं। जिस तरह हम अपनी जीत और सुख को दूसरों के साथ बांटते हैं, उसी तरह हमें अपना दुख भी बांटना चाहिए ताकि जो लोग दुख झेल रहे है, वे भी महसूस कर सकें कि वे अकेले नहीं है।
कभी न हार माने
इतिहास में जब भी किसी ने नाम कमाया,तो उसके पीछे कोई न कोई जुनून जरूर छिपा था। युवराज सिंह के ‘कभी न हार मानें का’ रवैये ने उन्हें अपने सपनों को साकार करने और जीवन में बदलाव लाने में मदद किया।
मिले कई अवार्ड्स
युवराज सिंह को अपने करियर में कई रिकॉर्ड बनाये है जिसके लिये उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ और ‘पद्मश्री’ से नवाजा गया था।
अगर युवी क्रिकेट जगत के ‘युवराज’ बन पाए, तो इसके पीछे उनके उत्साह और इच्छा शक्ति है, जो हमें प्रेरित करते है। जीवन को संघर्ष की तरह नहीं, बल्कि एक बदलाव की तरह अपनायें।
और भी पढ़िये : बच्चों से बातचीत को कैसे बनाएं बेहतर?
अब आप हमारे साथ फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और टेलीग्राम पर भी जुड़िये।