हमारे देश में आज भी बहुत से ऐसे गांव हैं, जहां बुनियादी सुविधाओं के अभाव में बच्चे स्कूल नहीं जा पाते या बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं, लेकिन कर्नाटक के बाराली गांव के एक शिक्षक ने बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए ऐसा कदम उठाया है, जो किसी मिसाल से कम नहीं है।
ताकि पूरी हो बच्चों की पढ़ाई
कर्नाटक के उडूपि जिले के बाराली गांव के सरकारी प्राथमिक स्कूल के शिक्षक राजाराम इन दिनों स्कूल बस भी चलाते हैं, इसलिए नहीं कि उन्हें पैसे चाहिए, बल्कि इसलिए की गांव के बच्चे स्कूल जाना न छोड़े और उनकी पढ़ाई पूरी हो सके। दरअसल, बाराली गांव के बच्चों को करीब छह किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता था, रास्ता खराब था और बीच में जंगल भी था। इस वजह से कई बच्चियों के माता-पिता ने उन्हें स्कूल भेजना ही बंद कर दिया। धीरे-धीरे स्कूल में बच्चों की संख्या बहुत कम होने लगी, हर हफ्ते पांच-छह बच्चे स्कूल छोड़ रहे थे। इससे चिंतित राजाराम ने इस समस्या का समाधान बस खरीदकर किया।

खुद ही बन गए ड्राइवर
बस तो खरीद ली, लेकिन ड्राइवर को वेतन देने के लिए स्कूल के पास फंड नहीं था, इसलिए राजाराम ने तय किया कि वह खुद ही ड्राइविंग सीखकर बस चलाएंगे और उन्होंने ऐसा ही किया। अब वह चार चक्कर लगाकर बच्चों को स्कूल पहुंचाते हैं और उसके बाद उन्हें मैथ्स और साइंस भी पढ़ाते हैं। राजाराम का कहना है कि गांव से स्कूल का रास्ता बेहद खराब है, सड़क नहीं है, गड्ढे और जंगल है, जिससे डरकर पैरेंट्स ने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया था। बच्चों की संख्या इतनी कम हो गई कि स्कूल को बंद करने की नौबत आ गई थी।
पूर्व छात्रों ने की मदद
राजाराम को बस खरीदने का आइडिया स्कूल के कुछ पूर्व छात्रों ने ही दिया था। दरअसल, राजाराम ने जब उन्हें स्कूल की समस्या के बारे में बताया, तो उन्होंने न सिर्फ बस खरीदने का सुझाव दिया, बल्कि उसके लिए पैसे भी दिए। बस आ जाने से स्कूल में बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। बाराली प्राथमिक स्कूल में राजाराम के अलावा दो और शिक्षक है।
मिसाल बन गए राजाराम
राजाराम शिक्षा के महत्व को बहुत अच्छी तरह समझते हैं और वह यह भी जानते हैं कि हर बच्चे को इसका अधिकार मिलना चाहिए, तभी तो वह गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। यदि देश के हर गांव में राजाराम जैसे शिक्षक हो जाए, तो यकीनन गांव का हर बच्चा शिक्षित हो जाएगा।
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