हर व्यक्ति को एक पेड़ की तरह बनना चाहिये। जिस तरह एक पेड़ कितना भी विशाल क्यों न हो, उसकी जड़े ज़मीन के अंदर मज़बूती से बनी रहती हैं। समय आने पर खुद-ब-खुद वो अपने फलों को गिरा देता है, और इतना ही नहीं, एक समय आता है जब ज़रूरत पड़ने पर वह अपनी पत्तियों को भी जाने देता है।
उसी तरह एक व्यक्ति को सफलता हासिल होने के बाद भी अपने पैर ज़मीन पर टिकाये रख कर, आगे बढ़ते रहना चाहिये। अपनी ओर से जितना हो सके, दूसरों की मदद करनी चाहिये और उसे यह पता होना चाहिये कि किसी भी चीज़ को कब जाने देना है। आज हम ऐसे ही बरगद के दो पेड़ों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जो पिछली करीब एक सदी से मदुरई में सेल्लूर के पास स्थित मीनामंबलपुरम के निवासियों को छाया देते आ रहे हैं और उनके जीवन की मीठी-मीठी यादों का हिस्सा रहे हैं।
कई पीढ़ियां खेली उन पेड़ों के नीचे
लगभग तीन पीढ़ियों ने उन दो पेड़ों को अपने सामने बढ़ते देखा है। एक समय ऐसा था, जब ये दोनों पेड़ सड़क के काफी दूर तक फैले हुये थे और उनमें न जाने कितने पक्षियों के घर थे। 74 साल के सी गुरुसामी ने अपना बचपन दोस्तों के साथ इन्हीं पेड़ों के नीचे खेल कर गुज़ारा। समय गुज़रता गया और आधुनिकता के चलते पेड़ों की जड़ें कटती गईं, जिनकी जगह आज पक्की सड़कें और ऊंची इमारते नज़र आती हैं।
बातों का अड्डा हुआ करता था इनके नीचे
एक समय था, जब युवा से लेकर बुज़ुर्ग इन्हीं पेड़ों की छाया के नीचे इकट्ठे होकर बातें किया करते थे। कड़ी मेहनत करके किसान भी इनकी ठंडक के नीचे आंखें झपका लेते थे। स्थानीय लोगों की माने तो आज से करीब दो दशक पहले इन पेड़ों पर रहने वाले कई चमगादड़ों की आवाज़ें सुनाई देती थी, जो आज कहीं खो गई हैं। इतने सालों में पक्षी तो गायब हुये ही है, उस इलाके से ऐसे दो और पेड़ आधुनिकता की बलि चढ़ गये हैं।
पेड़ों का मनाया गया 100वां जन्मदिन
21 जुलाई को स्थानीय निवासियों समेत हर क्षेत्र को लोग साथ आये और सब ने मिलकर पेड़ों का जन्मदिन मनाया। इसके साथ किस तरह पेड़ों को बचाया जा सकता है, इस पर अपने विचार साझा किये। सभी का मत था कि शहरों की हरियाली के लिये पार्क ही काफी नहीं है क्योंकि जो छाया एक बरगद का पेड़ दे सकता है, वो कोई नहीं दे सकता।
पर्यावरण बचाने की सोच करें सही
– ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगायें।
– पेड़ों को काटने से बचें।
– प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचें।
– किसी भी अच्छे मौके पर पेड़ लगाने का संकल्प करें।
और भी पढ़े: कहानी – कमज़ोरी को नहीं अच्छाई को देखें
अब आप हमारे साथ फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर भी जुड़िये।