निस्वार्थ सेवा की प्रेरणा दे रहे हैं ये लोग –  21 जून से 25 जून

निस्वार्थ सेवा की प्रेरणा दे रहे हैं ये लोग – 21 जून से 25 जून

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हमारे समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं जो सरहनीय काम के लिए नई-नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं। आईये जानते हैं कुछ ऐसे ही प्रेरणा दायी कहानियां-

उत्तर प्रदेश की मनस्वी ने अमेरिका में किया देश का नाम का रोशन

बेटियों को बस आप हौसला दीजिये, वह न केवल परिवार का नाम रोशन करेंगी, बल्कि देश भी उन पर नाज़ करता है। ऐसा ही कुछ गर्व करने वाला काम किया है भारत की बेटी मनस्वी ने, उसने विदेशी धरती पर परचम लहराया है। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले की मनस्वी राजेंद्र को अमेरिका में ‘प्रेजिडेंट एजुकेशन अवॉर्ड’ 2021 से नवाजा गया है। मनस्वी राजेंद्र को न्यूयॉर्क में अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन ने कोर्स ऑफ स्टडीज की पढ़ाई मेें शानदार प्रदर्शन पर सम्मानित किया है।राष्ट्रपति ने मनस्वी को ‘लीडर ऑफ द फ्यूचर’ का खिताब देते हुए अवार्ड फॉर एजुकेशनल एक्सीलेंस से सम्मानित किया है। 12 वर्षीय मनस्वी की मां अमिता सिंह न्यूयार्क के बार्कलेज बैंक में वाइस प्रेसीडेंट व पिता अप्रतिम राजेंद्र बैंक में ही प्रेसीडेंट हैं। ऐसी होनहार बेटी पर पूरे देश को गर्व है।

दिल्ली के 19 साल के कृष ने बनाया ईको फ्रेंडली एयर प्यूरीफायर

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ गया है जिसको देखते हुए 19 वर्षीय कृष चावला ने एक बहुत ही सरहनीय काम किया है। कृष चावला ने एक पर्यावरण के अनुकूल और किफायती हवा को शुद्ध करने वाला प्यूरीफायर बनाया है। जिसका नाम ‘Breathify’ है। इसकी खास बात ये है कि इसमें बिजली की खपत एक सामान्य एलईडी बल्ब जितनी होती है। एयर प्यूरीफायर बनाने की कृष की पहल आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम है। भारत की राष्ट्रीय राजधानी हमेशा वायु प्रदूषण से जूझती रही है। 19 वर्षीय ने कृष का कहना है कि मशीन में इस्तेमाल किए गए किसी भी घटक को आयात नहीं किया गया है और पूरी तरह से भारत में बना है। यह प्यूरीफायर बेहद किफायती है, इस वजह से कृष इसकी करीब 4700 से अधिक यूनिट बेच चुके हैं। इस तरह के प्यूरीफायर पर्यावरण के लिए काफी फायदेमंद साबित होंगे। 

दिल्ली के जेएनयू में कंप्यूटर ऑपरेटर विनोद ने किया अनूठा काम

कठिन मेहनत हमेशा रंग लाती है और इस बात को जवाहलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के कंप्यूटर ऑपरेटर विनोद कुमार चौधरी से बेहतर भला कौन बता सकता है। विनोद अपना दिन डेटा एंट्री में बिताते हैं, लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि बेहद सरल दिखने वाले इस प्रतिभाशाली व्यक्ति के नाम पर एक-दो नहीं बल्कि नौ गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड हैं। विनोद डेटा एंट्री के लिए की-बोर्ड पर टाइपिंग करते हैं और यही से शुरू हुआ उनका टाइपिंग की स्पीड पर काम करने का जनून। वैसे टाइपिंग स्पीड के प्रति उनकी दीवानगी कुछ ऐसी है कि उन्होंने अलग-अलग तरह से टाइपिंग में भी गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए हैं।विनोद कुमार चौधरी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एन्वायरमेंटल साइंसेज में कंप्यूटर ऑपरेटर हैं और उन्होंने ताजा वर्ल्ड रिकॉर्ड पिछले साल कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान बनाया है। विनोद चौधरी के नाम साल 2014 में नाक से सबसे ज्यादा तेज गति से टाइपिंग करने का रिकॉर्ड है। इसके अलावा आंखों पर पट्टी बांधकर तेज गति से टाइप करने और मुंह में लकड़ी रख कर टाइप करने के मामले में सबसे तेज रिकॉर्ड भी इन्हीं के नाम पर हैं। वह अपने घर पर गरीब और दिव्यांग बच्चों के लिए एक कंप्यूटर सेंटर चलाते हैं। देश व समाज के लिए उनका काम काफी सरहनीय और प्रेरणादायी है।

पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, ये मिसाल कायम की 67 साल की

सपने पूरे करने के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं होता, कुछ ऐसा ही साबित किया है 67 साल की डॉक्टर उषा लोदाया ने। गुजरात के वड़ोदरा की रहने वाली उषा का सपना था कि वह पढ़-लिखकर डॉक्टर बनें। लेकिन 20 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई और घर-परिवार की ज़िम्मेदारी निभाते हुए कब पढ़ाई की उम्र निकल गई, पता ही नहीं चला। अपने सपने को उषा ने दादी बनने के बाद भी मरने नहीं दिया और 20 जून को पीएचडी की डिग्री हासिल की ताकि वह डॉक्टर उषा लोदाया कहला सकें। पीएचडी करने से पहले उषा ने जैनिज्म में तीन साल की डिग्री ली। उसके बाद शत्रुंजय अकादमी, महाराष्ट्र से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। पीएचडी की पढ़ाई को डेढ़ साल ही पूरे हुए थे, कि उनके पति इस दुनिया में नहीं रहे। उसके बाद रिसर्च वर्क और थिसीस पूरी करने में उन्हें चार साल लगे। वह लॉकडाउन को अपनी पढ़ाई के लिए सबसे अच्छा समय मानती हैं, क्योंकि यही वो वक्त था जब उन्हें घर में रहते हुए अपनी थिसीस पूरा करने का पर्याप्त समय मिला। उषा ने बताया कि आखिरकार देर से ही सही, लेकिन मेरे नाम के आगे डॉक्टर लग ही गया। मेरा सपना पूरा होने में 50 साल लगे। हालांकि मैंने मेडिकल की पढ़ाई नहीं की, लेकिन डॉक्टरेट की डिग्री तो ले ही ली।

संघर्षों को हराकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही हैं चंचला कुमारी

पहली बार झारखंड की चंचला कुमारी 19-25 जुलाई तक हंगरी के बुडापेस्ट में होने वाली सब-जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। चंचला राज्य की पहली खिलाड़ी हैं जो कुश्ती में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी। झारखंड ने पहले ही कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों के दौरान क्रिकेट, हॉकी और तीरंदाजी के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा साबित की है और क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी, तीरंदाज दीपिका कुमारी और कई अन्य लोगों को दिया है।
झारखंड स्टेट स्पोर्ट्स प्रमोशन सोसाइटी के पहले बैच की आदिवासी छात्रा चंचला ने हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित चयन परीक्षण में पहला स्थान हासिल किया। चंचल के पिता नरेंद्र नाथ पाहन एक प्लंबर के रूप में काम करते हैं। इसके साथ वह खेती भी करते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी खराब आर्थिक स्थिति उनकी बेटी के लिए एक वरदान साबित हुई, जिसके कारण उन्हें खेल को करियर के रूप में लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। चंचल ने 2017 में SGFI खेलों में सिल्वर मेडल जीता, और अगले दो सालों में आयोजित मीट्स में लगातार दो गोल्ड मेडल जीते हैं। उनके इस सरहनीय साहस के लिए हम दिल से सलाम।

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