हमारे समाज बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो हमारे समाज के लिए प्रेरणा दायी काम करते हैं। हम आपको ऐसे ही कुछ लोगों की कहानी बताने जा रहे हैं।
24 साल की रिसवाना ने अपने हुनर से किया सभी को हैरान
इंसान का दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज़ चलता है, इसलिए तो अगर वह ठान ले तो हर कुछ कर सकता है। एक ऐसी ही कहानी केरल के कोझीकोड जिले में रहने वाली रिसवाना की है। 24 साल की रिसवाना ने महज साढ़े पांच घंटे में देश के 15 प्रधानमंत्रियों की तस्वीरें बनाकर रिकॉर्ड कायम किया। रिसवाना की इस उपलब्धि को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और एशियन बुक ऑफ रिकार्ड्स में मान्यता दी गई है।
ड्राइंग की तरफ रिसवाना का झुकाव बचपन से ही था। रिसवाना ने कई प्रयोगों के बाद तस्वीरें बनाना शुरू किया। फिर उन्होंने चायपत्ती पाउडर से तस्वीरें बनाने लगी। रिसवाना ने जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, वी पी सिंह, चंद्रशेखर, पी वी नरसिम्हा राव, एच डी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी समेत 15 प्रधानमंत्रियों के चित्र चायपत्ती पाउडर से बनाए हैं।
रिसवाना अपने इन प्रयोगों को आगे भी जारी रखना चाहती है। उनका लक्ष्य लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी जगह पाने का है। रिसवाना की ख्वाहिश है कि वह अपना आर्टवर्क प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट करे। पढ़ाई में रिसवाना चार्टेर्ड अकाउंटेंसी की छात्रा हैं।
मैसूर के पुलिस ऑफिसर ने अपनी जेब से 3 लाख रुपये खर्च करके ठीक कराई टूटी सड़क
गड्ढों से भरी सड़क पर लोगों को आने जाने में दिक्कत ना हो इसलिए मैसूर के एक सहायक पुलिस उप-निरीक्षक ने इन्हें सही कराने का जिम्मा उठाया और इस पर अपने जेब से 3 लाख रुपये खर्च कर दिए। मादापुरा गांव से बेलातूर के बीच पांच किलोमीटर की सड़क गड्ढों से भरी हुई थी। ये सड़क एचडी कोटे को तालुक के चिक्कदेवम्मा मंदिर को जोड़ती है। यहां से आने-जाने वाले लोगों को गड्ढों के कारण बहुत समस्या होती थी। बारिश में तो इस सड़क का हाल और भी बुरा हो जाता था। ऐसे में लोगों की परेशानी दूर करने के लिए सामने आए एचडी कोटे थाने में तैनात एएसआई एस दोरेस्वामी ने अपनी ही जेब से 3 लाख रुपये खर्च कर इस सड़क की मरम्मत करवाई है।
स्थानीय लोग अपनी समस्या लेकर दोरेस्वामी के पास पहुंचे। उन्होंने लोगों की समस्या सुनी और उसका हल भी निकाल दिया। लोगों की मदद करना दोरेस्वामी के लिए नई बात नहीं है। वह अपनी मदद के लिए इलाके भर में चर्चित हैं। इस काम के लिए उन्होंने अपनी पत्नी चंद्ररिका के साथ मिलकर रक्षणा सेवा ट्रस्ट के जरिए योजना बनाई। अपने इस नेक काम के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इन गड्ढों की वजह से कई हादसे हो चुके हैं, जिस कारण लोगों को गभीर चोटें भी आई हैं। उनका कहना है कि यहां से हर रोज 30 गांवों के लोगों का आना-जाना होता है, ऐसे में सड़क का बनना बहुत ज़रूरी था।
दोरेस्वामी की दरियादिली का अंदाज आप इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने उन दो नाबालिग लड़कियों को गोद लिया है जिनके माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनकी इस इंसानियत को तहेदिल से सलाम।
तेलंगाना की मानसा रेड्डी ने ज़रूरतमंद लोगों को घर देने का निकाला अनूठा तरीका
तेलंगाना के बोम्मकल गांव की 23 की पेराला मानसा रेड्डी ने हांगकांग के OPod घरों से प्रेरणा लेकर, एक सस्ता ‘OPod Tube House’ बनाया है। हांगकांग की ‘James Law Cybertecture’ नाम की कंपनी ने सबसे पहले इस तरह के छोटे OPod घर बनाने की शुरुआत की थी। मानसा ने लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (LPU), पंजाब से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। उनका कहना है कि, “इन पाइपों को तेलंगाना के एक मैन्युफैक्चरर से मंगवाया गया था, जो पाइप को हमारी जरूरत के हिसाब से बड़े-छोटे सभी साइज में देने के लिए तैयार थे। हालांकि, ये पाइपें गोल आकार में थीं, फिर भी इनसे बने घर में तीन लोगों का परिवार आराम से रह सकता है। साथ ही, इनसे ग्राहकों की जरूरतों के मुताबिक 1 BHK, 2 BHK और 3 BHK घर भी बनाए जा सकते हैं।”
वह कहती हैं कि ऐसे घरों को बनाने में सिर्फ 15 से 20 दिन ही लगते हैं। देशभर में ऐसे ही कई, कम लागत वाले घर बनाने की उम्मीद से, मानसा ने ‘Samnavi Constructions’ नामक एक स्टार्टअप भी लॉन्च किया है। बोम्मकल के छोटे से गांव में जन्मी और पली-बढ़ी, मानसा ने अपनी स्कूली शिक्षा ‘तेलंगाना सोशल वेलफेयर रेसिडेंशियल एजुकेशन सोसाइटी’ से पूरी की है।
मानसा ने बताया कि तेलंगाना की बस्ती में स्वयं सेविका के रूप में काम करते हुए ही, उन्हें सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का ख्याल आया था। वह बताती हैं, “मैंने वहां देखा कि कई परिवार, जिनमें बच्चे भी थे, वे स्टील की शीट और बड़े प्लास्टिक के कवर से बने अस्थायी घरों में रह रहे थे। वहां कुछ लोग शिपिंग कंटेनरों में, तो कुछ बांस से बने घरों में रहते थे। वहां रह रहे सभी परिवार प्रवासी मजदूर थे, इसलिए वे उन घरों में एक साल से ज्यादा नहीं रहते थे।” गर्मी के मौसम में बढ़ते तापमान या मानसून में बाढ़ के पानी के कारण, वे इन घरों को खाली कर देते थे।
हालांकि, वह कॉलेज के अपने पहले साल से ही इन परेशानियों को देख रही थीं, लेकिन पढ़ाई के दौरान उन्हें कभी भी इन परेशानियों के समाधान पर काम करने का मौका नहीं मिला। वहीं, पिछले साल मार्च 2020 में, जब वह घर से इंजीनियरिंग के आखिरी साल की पढ़ाई कर रही थीं, तब उन्हें अपने आईडिया पर काम करने और योजना बनाने के लिए काफी समय मिला। उनका या यह आईडिया बेघरों को घर देगा।
सपना पूरा करने का जज़्बा दिखाया आईआईटी छात्र नीरज चौधरी
आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्र नीरज चौधरी साल का साल 2014 से माउंट एवरेस्ट फतह करने का सपना था और इस सपने को उन्होंने हाल ही में पूरा किया। इस साल जब वह 27 मार्च को भारत-नेपाल बार्डर पर सोनौली से माउंट एवरेस्ट का सफर तय करने के लिए चले थे, तो काठमांडु पहुंचने पर पता चला कि कोरोना संक्रमित हो गए हैं। हालांकि नीरज को किसी तरह का गंभीर संक्रमण नहीं था। लेकिन रिपोर्ट पॉज़िटिव आने के बाद जयपुर स्थित आवास लौटना पड़ा।
नीरज की मानें तो संक्रमित होने के बाद भी माउंट एवरेस्ट फतह करने की ही सोच रहे थे। कोरोना को पूरी तरह परास्त करने के बाद कई तरह के टेस्ट कराने पड़े। कई रिपोर्ट से यह तो साफ हो गया था कि फेफड़ों में संक्रमण नहीं पहुंचा था। उन्होंने अप्रैल में फिर से चढ़ाई शुरू की और फिर अपने सपने को पूरा करते हुए उन्होंने माउंट एवरेस्ट के शिखर से तिरंगा फहराया। साथ ही उन्होंने आईआईटी दिल्ली का झंडा भी लहराया।
इस कामयाबी पर आईआईटी निदेशक प्रो वी रामगोपाल राव ने नीरज को सम्मानित किया। नीरज चौधरी ने 2009-11 सत्र के दौरान पर्यावरण विज्ञान एवं प्रबंधन में एमटेक की डिग्री हासिल की थी। वर्तमान में वह राजस्थान सरकार के जल संसाधन विभाग में कार्यरत हैं। उन्होंने 2014 में पर्वतारोहण शुरू किया था और 2020 में उन्हें युवा मामले एवं खेल मंत्रालय के तहत ‘इंडियन माउंटेनिय¨रग फॉउंडेशन एवरेस्ट एक्सपेडिशन’ के सदस्य भी चुने गए था।
हैदराबाद के दो भाइयों को थी खेत जोतने के लिए बैल की ज़रूरत पर लोगों का सराहनीय काम
जब लोग निस्वार्थ भाव से आगे आकर मदद करते हैं, तो मानवता में विश्वास और अटूट हो जाता है। कुछ ऐसा हाल ही में तेलंगाना के किसान परिवार के साथ हुआ। देशभर से लोगों ने गरीब परिवार की मदद करके इंसानियत की मिसाल पेश की। दरअसल, तेलंगाना के एक परिवार के पास कमाई के साधन के रूप में उनका खेत ही है लेकिन नए बैल खरीदने के लिए परिवार के पास पैसे नहीं थे। तब ग्रैजुएट भाइयों ने खुद को ही बैलों की जगह लगाया और पिता के साथ मिलकर खेत की जुताई शुरू कर दी।
बड़े भाई नरेंदर बाबू के पास बीएससी के साथ बीएड की डिग्री है और वह बतौर अध्यापक कुछ साल तक नौकरी भी करते रहे। उनके छोटे भाई श्रीनिवास के पास मास्टर्स इन सोशल वर्क की डिग्री है और वह लॉकडाउन से पहले हैदराबाद में एक कम्प्यूटर ऑपरेटर के रूप में काम कर रहे थे। श्रीनिवास जिस इंस्टिट्यूट में कार्यरत थे वह लॉकडाउन के बाद बंद हो गया और नया काम नहीं मिल सका।
दोनों भाई पिता के साथ खेती करने लगे लेकिन समस्या थी कि उनके पास खेत जोतने के लिए ट्रैक्टर तो दूर की बात, बैल तक नहीं थे। आर्थिक हालात खराब थे, तो दोनों भाइयों ने बैलों की जगह खुद को लगाकर खेत की जुताई करनी शुरू की।
जब तस्वीरें सोशल मीडिया और अखबारों की सुर्खिया बनी तो लोगों ने आगे बढ़कर मदद की। आज परिवार के पास बैल है और वह लोगों की इस निस्वार्थ सेवा से काफी भावुक है। यह घटना हम सभी को सबक देती है कि अगर समाज एक दूसरे को ऐसे साथ लेकर आगे बढ़े, तो कोई भी दुखी और असहाय नहीं रहेगा।
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