देश की पहली सीआरपीएफ महिला अफसर ऊषा किरण समाज में करती है नेक काम

देश की पहली सीआरपीएफ महिला अफसर ऊषा किरण समाज में करती है नेक काम

सीआरपीएफ की पहली महिला अफसर ऊषा किरण है हौसले और मज़बूत इरादों की मिसाल
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अगर महिलाओं को अवसर मिले तो वो हर काम आसानी से कर सकती हैं,चाहे घर के काम हों या फिर सेना में शामिल होकर दुश्मन के छक्के छुड़ाने की बात हो। वो हर काम बिना डरे और बहादुरी के साथ निभाती हैं। आज आपको हम ऐसे ही एक निडर और बहादुर महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनसे दुश्मन भी खौफ खाते हैं। कोबरा कमांडो फोर्स की पहली महिला ऊषा किरण यहां बेखौफ छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाके में बेखौफ घूमती हैं। ये सीआरपीएफ से देश की पहली महिला अफसर हैं, जो नक्सली इलाके में तैनात हैं। ये तैनाती उषा ने खुद मांगकर ली। महज 27 साल की उम्र में उषा के पास उपलब्धियों की अच्छी-खासी फेहरिस्त है। घने जंगलों या दूरदराज गांवों में इस खौफ की वजह से अच्छे-अच्छे जाते घबराते हैं, वहीं कोबरा कमांडो फोर्स की पहली महिला उषा किरण यहां बेखौफ घूमती हैं। जानिए उनकी कहानी विस्तार से-

परिवार की तीसरी पीढ़ी की सीआरपीएफ अधिकारी

हरियाणा के गुरुग्राम की रहने वाली ऊषा ने साल 2013 में सीआरपीएफ की परीक्षा में देश में 295वां रैंक हासिल किया। 25 साल की उम्र में ऊषा ने सीआरपीएफ की मुश्किल ट्रेनिंग पूरी कर ली और फोर्स में शामिल हो गईं। ऊषा के पिता और दादा भी सीआरपीएफ में रह चुके हैं। अपने पिता और दादाजी से प्रेरित ऊषा ने सीआरपीएफ की 232 महिला बटालियन में ट्रेनिंग ली है। दिलचस्‍प बात यह है कि ट्रेनिंग खत्‍म होते ही उन्‍होंने सीनियर्स से मांग की थी कि उनकी नियुक्ति जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्वी राज्य या फिर नक्सल प्रभावित इलाकों में की जाए।

सुरक्षा के साथ लड़कियों को पढ़ाने का करती है नेक काम ऊषा । इमेज : फाइल इमेज

राष्ट्रीय स्तर की रह चुकी हैं एथलीट

ऊषा किरण सीआरपीएफ की पहली महिला अफसर हैं, जिन्हें नक्सल प्रभावित बस्तर की दरभ घाटी में तैनात थी। ऊषा सीआरपीएफ ज्वाइन करने से पहले वह राष्ट्रीय स्तर एथलीट रह चुकी हैं। किरण ट्रिपल जंप की राष्ट्रीय विजेता भी रही हैं और उन्होंने स्वर्ण पदक भी जीता है। ट्रिपल जंप में राष्ट्रीय स्तर की विजेता ऊषा ने ट्रेनिंग के बाद सीनियरों से एक ही मांग की कि उन्हें किसी मुश्किल इलाके में नियुक्ति चाहिए, जैसे कि जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्वी राज्य या फिर नक्सल इलाके।

इसलिए आना चाहती थी बस्तर

ऊषा किरण ने सुना था कि बस्तर के निवासी बहुत गरीब हैं और वे भोले भाले हैं। यहां नक्सलियों की वजह से विकास नहीं हो पाया है इसी कारण उन्हें यहां आने की प्रेरणा मिली। फिलहाल ऊषा एक पूरी कंपनी को लीड कर रही हैं। उन्हें कोबरा 206 बटालियन में पोस्टिंग मिली है। ऊषा रायपुर से 350 किलोमीटर दूर बस्तर के दरभा डिवीजन स्थित सीआरपीएफ कैंप में तैनात हैं। कोबरा यानी कमांडो बटालियन फॉर रिजॉल्यूट एक्शन के लिए काम करना कोई आसान काम नहीं।यह सीआरपीएफ की विशेष शाखा है, जो गुरिल्ला तकनीक पर काम करती है और जिसका मकसद नक्सलियों का सफाया है।

समाज की लड़कियों को भी बढ़ा रही हैं आगे

नक्सलगढ़ इलाके में ऊषा किरण न सिर्फ एके-47 जैसे हथियारों से नक्सलियों से मुकाबला कर रही हैं बल्कि सामाजिक जागृति फैलाने का काम भी इलाके में कर रही हैं। ऊषा यहां लोगों को सुरक्षा के साथ शिक्षा-स्वास्थ्य और देशप्रेम जगाने का काम भी कर रही हैं। ऐसे खतरनाक इलाके में ऊषा न सिर्फ काम करती हैं, बल्कि जंगलों में सर्च ऑपरेशन भी चलाती हैं। ऊषा का स्थानीय आदिवासी महिलाओं के साथ खास लगाव है वह अपनी ड्यूटी ख़त्म होने के बाद वहां की लड़कियों को पढ़ाती हैं। यहां उनकी नियुक्ति के बाद आदिवासियों और महिलाओं में उम्मीद की किरण जगी थी।

‘वोग वूमन ऑफ द ईयर’ का मिल चुका है खिताब

साल 2018 में सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो फोर्स में शामिल होकर ऊषा ने सबसे कम उम्र की पहली महिला अफसर होने का गौरव हासिल किया। ऊषा किरण को साल 2018 में वोग वूमन ऑफ द ईयर की ओर से साल की सबसे कम उम्र अचीवर का अवार्ड मिला। अवार्ड के समय उन्होंने कहा था कि, ये जीत मेरी नहीं, बल्कि हर सैनिक की है जो देश में शांति कायम रखने के

लिए अपना पसीना और खून बहा रहा है। साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि, अगर आपके पास ताकत है तो आप औरतों को फोर्स का हिस्सा बनने के लिए हौसला दें।बस हौसला दें, बाकी काम वो खुद कर लेंगी।

आपको ये भी बता दें कि वोग के फैशन शो में जहां सभी सेलिब्रिटीज ने रेड कारपेट पर खूबसूरत ड्रेस में रैंप वॉक किया तो वहीं ऊषा अपनी वर्दी में के साथ रैंप वॉक करती नजर आई थीं। जिसकी लोगों जमकर सरहाना की थी और खूब पसंद किया था।

इमेज – patrika

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