हमारे समाज बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो हमारे समाज के लिए प्रेरणा दायी काम करते हैं। हम आपको ऐसे ही कुछ लोगों की कहानी बताने जा रहे हैं।
जेफ बेजोस के सपनों को उड़ान दे रहीं है भारत की बेटी संजल गावंडे
20 जुलाई को अमेज़न के संस्थापक जेफ बेजोस अंतरिक्ष यात्रा पर जा रहे हैं। इस यात्रा के लिए एक रॉकेट तैयार किया गया है। ब्लू ओरिजिन कंपनी का रॉकेट जिस टीम ने तैयार किया उसमें भारत की संजल गावंडे भी शामिल हैं। संजल ने पहले मर्करी मरीन रेसिंग कार भी डिज़ाइन की थी। संजल ने जिस रॉकेट सिस्टम को बनाने में मदद की है, उसे न्यू शेफर्ड नाम दिया गया है।
30 वर्षीय संजल गावंडे महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर कल्याण की रहने वाली हैं। यहां कोलसेवाडी परिसर के हनुमाननगर इलाके में इनका जन्म हुआ था। पढ़ाई-लिखाई कोलसेवाडी के मॉडल स्कूल में पूरी हुई। 10वीं और 12वीं उन्होंने बिड़ला कॉलेज से की। 2011 में संजल ने मुंबई यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग किया और फिर GRI, टोफेल एग्ज़ाम्स क्वालीफाई किए। इन सभी एग्ज़ाम्स के रिजल्ट के आधार पर उन्होंने US की मिशिगन टेक यूनिवर्सिटी में MS के लिए अप्लाई किया। 2013 में फ़र्स्ट डिविजन के साथ अपनी मास्टर डिग्री पूरी की। संजल के पिता अशोक गावंडे कल्याण डोंबिवली महापालिका में जॉब करते थे। अब रिटायर हो चुके हैं। मां सुरेखा गावंडे भी MTNL में नौकरी किया करती थीं। संजल अपने माता-पिता की एकलौती संतान हैं।
संजल गावंडे की इस कामयाबी पर आज पूरे देश को गर्व है।
19 साल की सोनम हो गयी थी लकवाग्रस्त, लेकिन मुश्किलों को मात देकर बनाई टोक्यो ओलंपिक में जगह
अगर हमारे अंदर हिम्मत और कभी हार ना मानने का जज़्बा है तो हम बड़ी से बड़ी मुश्किल का सामना कर सकते हैं। हिम्मत और जज़्बे की जीती जागती मिसाल हैं 19 साल की महिला पहलवान सोनम मलिक, जिन्हें कुछ साल पहले तक ये भी नहीं पता था कि वह फिर कभी पहलवानी कर भी पाएंगी या नहीं।
वह हाल ही में एथेंस, ग्रीस में वर्ल्ड कैडेट चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर आई थीं। इसके बाद इनके दाएं कंधे की किसी नस में परेशानी हुई। इसकी वजह से इनके दाएं हाथ ने काम करना बंद कर दिया था और बाद में इनके शरीर के दाएं हिस्से पर लकवा मार गया।
लकवे की वजह से सोनम लगातार 6 महीनों तक मैट से दूर रहीं। वह किसी चीज़ को ताकत के साथ नहीं पकड़ सकती थीं। उनके हाथ में कोई ताकत नहीं रह गई थी। डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि उसे कुश्ती के बारे में भूल जाना चाहिए।
मगर अब 19 साल की सोनम एक बार फिर से देश का नाम रोशन करने के लिए तैयार हैं। सोनम टोक्यो ओलंपिक्स में 62 किलोग्राम वैट कैटेगरी में वह भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। उनकी कोशिश मैट पर इतिहास रचने की रहेगी। उनके हौसले को हम सलाम करते हैं ।
दीपक काबरा ने रचा इतिहास, ओलंपिक में जिमनास्टिक के जज चुने जाने वाले बने पहले भारतीय
भारत के जज दीपक काबरा ने इतिहास रच दिया है। दीपक काबरा ओलंपिक खेलों की जिम्नास्टिक प्रतियोगिता में जज के तौर पर चुने जाने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। वह 23 जुलाई से शुरू हो रहे टोक्यो ओलंपिक में पुरुषों की लयबद्ध जिम्नास्ट स्पर्धा में जज होंगे। ओलंपिक गेम्स में जिम्नास्टिक में बतौर जज चयनित होने वाले पहले भारतीय दीपक काबरा की शानदार उपलब्धि देश के लिए गर्व की बात है।
बतौर जज 2010 राष्ट्रमंडल खेल उनका पहला अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट था। वह 2014 एशियाई खेलों युवा ओलंपिक में भी जज रहे। उन्होंने इसके बाद 2018 में एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों, अर्जेंटीना में युवा ओलंपिक, विश्व कप जैसे अन्य अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भी जज की भूमिका निभाई।
एशियाई जिम्नास्टिक्स संघ की तकनीकी समिति के सदस्य के रूप में 2018 में नियुक्त किए गए काबरा ने कहा, ‘ओलंपिक तक पहुंचने में कम से कम 12 साल लगते हैं और मैं इसे अपने करियर के 12वें साल में पहुंचने पर खुद को भाग्यशाली मानता हूं। साथ ही उन्होंने कहा कि मुझे मुझे जजिंग का जुनून था और अपने कोच कौशिक बेदीवाला से प्रेरणा लेकर मैं जज बन गया।
बेटियां भार नहीं आधार हैं, एक साथ तीन बहनों ने पास की राजस्थान एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस की परीक्षा
बेटियां बोझ नहीं होती, बस उनके सपनों में उड़ान भरने की ज़रूरत होती है, बाकी वो पूरा आसमान छू सकती हैं।
राजस्थान एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस परीक्षा में हनुमानगढ़ जिले के एक गांव की तीन बहनों ने एक साथ सफलता प्राप्त कर कीर्तिमान रच दिया है।आरएएस परीक्षा का रिजल्ट बीते 13 जुलाई को घोषित किया गया था। खास बात है कि यह क्षमता हासिल करने वाली सुमन, ऋतु और अंशु की दो बहनें पहले इसी परीक्षा को पास कर नौकरी कर रही हैं। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय परिवार और शिक्षकों को दिया है।
बेटियां आज बेटों से किसी भी मायने में कम नहीं हैं। बेटियां भार नहीं,आधार होती हैं। सहदेव सहारण अपनी बेटियों की सफलता से काफी खुश हैं। उन्होंने अपनी बेटियों को बेटों की तरह पाला है और उन्हें शिक्षित किया है। यही कारण है कि उनकी पांच बेटियां आर्य जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा को पास कर अफसर बन चुकी हैं।
आरएएस का रिजल्ट घोषित होने के बाद जैसे ही लोगों को यह पता चला कि गांव की तीन बेटियों ने एक साथ इस परीक्षा को पास कर नाम रोशन किया है, वैसे ही गांव में जश्न शुरू हो गया। उनका मानना है कि बेटियों ने का नाम रोशन कर दिया है। आज वे गांव के हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।
वडोदरा की बेटी श्वेता परमार, 15 हज़ार फीट से छलांग लगाने वाली बनी पहली महिला
वडोदरा की युवती ने आकाश से हजारों फीट ऊंचाई से छलांग लगाकर पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया है। यह साहसपूर्ण कार्य वडोदरा की 28 साल की श्वेता परमार ने कर दिखाया है। आकाश में उड़कर, आकाश से हजारों फीट ऊंचाई से छलांग लगाने का साहस करने वाली श्वेता ने प्रथम गुजराती युवती के तौर पर रिकाॅर्ड बनाया है। अब श्वेता ने सरकार से मंजूरी मिलने पर केवडिया कॉलोनी स्थित विश्व की सबसे ऊंची स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से छलांग लगाने की इच्छा जताई है।
श्वेता के अनुसार वह अब तक आकाश से 15 हजार फीट की ऊंचाई से स्पेन में 29, दुबई में 3 व रूस में 15 बार छलांग लगा चुकी हैं। उनका सपना आकाश से 200 बार छलांग लगाने का है। साथ ही उनका एक और सपना है कि शाम के समय आकाश से और मध्यरात्रि में दुबई सिटी के आकाश से छलांग लगाए। वह अब 17 हज़ार फीट की ऊंचाई से आकाश से छलांग लगाने की इच्छा भी रखती हैं।
श्वेता के अनुसार वडोदरा की एम.एस. यूनिवर्सिटी से वाणिज्य स्नातक, बीबीए व एमबीए उत्तीर्ण करने के बाद सूरत की वित्तीय कंपनी में प्रबंधक के पद पर कार्य किया। उसके बाद छोटे भाई कृष्णा के साथ मिलकर डिजीटल मार्केटिंग का व्यवसाय शुरू किया। छह महीने में सफल होने व आर्थिक स्थिति अच्छी होने पर आकाश से छलांग लगाने का स्वप्न पूरा किया। आकाश से छलांग लगाने के साहस की शुरुआत वर्ष 2016 में की। उनको आकाश से छलांग लगाने तक पहुंचने के लिए कई स्थितियों का सामना करना पड़ा।
18 वर्ष की आयु में पिता ठाकोरभाई परमार की छत्रछाया गंवाई। उसके बाद घर की सारी जिम्मेदारियां बड़ी बहनों प्रियंका व संध्या ने संभाली। दोनों बहनों ने पढ़ाई रोककर श्वेता व भाई को पढ़ाकर उच्च अध्ययन करवाया।
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