साल 2011 की जनगणना के अनुसार 14 लाख जनसंख्या वाले अरुणाचल प्रदेश में जहां 26 ट्राइबल कम्युनिटी और 256 सब-ट्राइबल कम्युनिटी मौजूद हैं, वहीं 30 भाषाएं भी बोली जाती हैं। इतनी भाषाओं के बीच किसी नार्थ ईस्ट राज्य का हिंदी भाषी होना वाकई में काफी हैरान करता है।
लिंक भाषा से हुई शुरुआत
दरअसल कई भाषाओं के बावजूद राज्य में हिंदी भाषा इसलिए उभरकर आई है क्योंकि इसका उपयोग लिंक भाषा के तौर पर किया जाता रहा है। खास बात यह कि नॉर्थ ईस्ट के अन्य राज्यों की तरह अरुणाचल प्रदेश में कभी भी किसी एक मूल भाषा को बढ़ावा देने के लिए एक संगठित मूवमेंट नहीं हुआ। यही वजह है कि यहां हिंदी एक लिंक भाषा के रूप में उभरी। चाहे स्टेट एसेंबली हो या स्कूल या फिर मैदान, यहां की 90 फीसदी से अधिक जनसंख्या के मुंह से आप हिंदी सुन सकते हैं। ऐसे में सवाल अहम है कि आखिर कल्चरल डायवर्सिटी वाले इस राज्य में हिंदी इतनी पॉपुलर कैसे हो गई?
हिंदी उभरने की वजह
अलग-अलग भाषाई कम्युनिटी वाले इस राज्य में हिंदी के उभरने के पीछे पॉलिटिकल और हिस्टोरिकल वजह मुख्य हैं। दरअसल जब देश में आज़ादी का आंदोलन चरम पर था, तब ट्राइबल इलाकों में बंटे होने के बावजूद यह राज्य एक खास एडमिनिस्ट्रेटिव नियंत्रण में रहा था, जहां हिंदी प्रमुख भाषा थी। कुछ समय के लिए राज्य असम गवर्नर के नियंत्रण में था लेकिन बाद में इसका कंट्रोल केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास चला गया। फिर सात साल बाद इसे यूनियन टेरिटरी बनाया गया और आखिरकार फरवरी 1987 में अरुणाचल पूर्ण राज्य बन गया। इसके बाद यहां तीन-भाषा फॉर्मूला शुरू किया गया, जिसमें हिंदी ने अहम रोल प्ले किया। चूंकि, अरुणाचल के लोग मिजोरम या नागालैंड जैसा अपना प्रदेश नहीं चाहते थे, ऐसे में हिंदी के जरिए इंडियन कल्चर और लैंग्वेज अपनाने के साथ यह बड़ी तेज़ी से मेनस्ट्रीम में शामिल हो गया।
वीकेवी के जरिये हिंदी हो गई प्रमुख भाषा
वर्ष 1977 में, इंदिरा गांधी सरकार ने एक समेकित प्रयास के तहत विवेकानंद केंद्रीय विद्यालयों (वीकेवी) की स्थापना की प्रक्रिया शुरू की थी, जिसका प्रभाव यह पड़ा कि यहां हिंदी भाषी क्षेत्र के टीचर भी पढ़ाने के लिए यहां आने लगे। इससे एक पूरी पीढ़ी को एक कॉमन लैंग्वेज के साथ आगे बढ़ने का मौका मिला और आज नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में अरुणाचल के लोग धाराप्रवाह हिंदी बोलते हैं।
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