आज़ादी के पहले ही भारत में जातिवादी प्रथा काफी गहरी जड़ें जमा चुकी थी। समाज से जाति प्रथा जैसी बुराइयों को जड़ से उखाड़ने के लिए लाल बहादुर शास्त्री ने कई विरोधी मुहिम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। बचपन से ही लाल बहादुर जातिवाद प्रथा के विरोधी थे, इसलिये वह अपने नाम के साथ सरनेम नहीं लगाते थे।
स्कूल के समय किया सरनेम हटाने का निर्णय
बात उस समय की है, जब लाल बहादुर शास्त्री मुगलसराय के स्कूल में पढ़ा करते थे। तब उनका नाम लाल बहादुर वर्मा लिखा जाता था। उन्हें लगता था कि सरनेम का उपयोग उनके जाति और धर्म को दर्शाता है, इसलिए उन्हें नाम के साथ सरनेम लगाना पसंद नहीं था। स्कूल जाने की उम्र में ही लाल बहादुर ने यह निश्चय कर लिया था कि अपने नाम के आगे से वर्मा हटवाएंगे। यही बात उन्होंने अपने माता-पिता और घर के अन्य सदस्यों को बताई।
परिवार ने दिया साथ
घर के सदस्यों को पहले से ही पता था कि लालबहादुर को जातिवाद प्रथा पसंद नहीं है। इसलिये उन्होंने लाल बहादुर की इच्छा पर कोई आपत्ति नहीं जताई, बल्कि उसका सम्मान किया। क्योंकि बिना किसी जिद के अपने मन की बात घर के सदस्यों के सामने रखीं और सरनेम हटाने की बात भी मनवा ली। अगले दिन ही लाल बहादुर ने अपने साथ परिवार के एक सदस्य को लेकर स्कूल पहुंच गए। उनके ज़रिए हेड मास्टर के पास अपना निवेदन पहुंचाया कि उन्हें लाल बहादुर वर्मा न कहकर सिर्फ लाल बहादुर बुलाया जाए।
सरनेम हटाने से प्रभावित हुए हेड मास्टर
घर के सदस्य की बात सुनकर हेड मास्टर साहब को बड़ी हैरानी हुई कि आखिर एक छोटा -सा बच्चा अपना सरनेम क्यों नहीं लगाना था? जब घर के सदस्य ने कहा यह बात लालबहादुर से पूछे तो बेहतर होगा।
निवेदन सुनकर हेड मास्टर साहब ने लाल बहादुर से पूछा, ‘ बेटे तुम सरनेम क्यों हटाना चाहते हो?’
सादगी से जवाब देते हुए लाल बहादुर बोले,’ सर मेरा मानना है कि इंसान की पहचान उसके काम और नाम से होनी चाहिए, सरनेम से नहीं। सरनेम व्यक्ति की जाति और धर्म का बोध कराता है और मुझे यह बात अच्छी नहीं लगती।’
छोटे से बच्चे की यह बात सुनकर हेडमास्टर काफी प्रभावित हुए। खुद हेड मास्टर का खुद का नाम भी वसंत लाल वर्मा था। मगर लाल बहादुर के विचारों का सम्मान करते हुए उन्होंने उनके नाम के आगे से वर्मा सरनेम हटा दिया। उसके बाद से स्कूल में उन्हें केवल लाल बहादुर बुलाया जाने लगा।
बचपन की उच्च विचार से मिला खुद की पहचान
अपनी स्कूली शिक्षा पूरा करने के बाद जब 1925 में लाल बहादुर ने काशी विद्यापीठ वाराणासी से ‘शास्त्री’ की डिग्री प्राप्त की, तो उसके बाद उन्होंने अपना पूरा नाम लाल बहादुर शास्त्री बताना और लिखना शुरु किया। शास्त्री की यह पहचान उनके सरनेम से नहीं, बल्कि उनकी अर्जित की गई शिक्षा से बनी थी। लाल बहादुर शास्त्री ने इस पहचान को अपने व्यक्तित्व और काम की बदौलत पूरे देश का गौरव बना दिया।
लाल बहादुर शास्त्री की ये प्रेरणादायी कहानी हमें यही शिक्षा देती है कि व्यक्ति की पहचान वेशभूषा या जाति धर्म से नहीं, बल्कि उसके काम और स्वभाव से होना चाहिए।
इमेज : आउटलुक इंडिया
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