एक रिटायर्ड टीचर को पौधे लगाने का बहुत शौक था, लेकिन वह पौधों को पानी कम देता था। उसके घर के बराबर एक इंशोरेंस एजेंट रहता था, जो टेक्नोलॉजी को बहुत इस्तेमाल करता था और इसी वजह से वह इंटरनेट पर पौधों से संबंधित बातें पढ़ता रहता था। वह अपने पौधों को खूब सारा पानी देता था और उनकी बहुत ज़्यादा देखभाल करता था। दोनों पड़ोसियों के गार्डन में फर्क था। इंशोरेंस एजेंट के गार्डन के पौधे हरे-हरे और बड़े-बड़े थे, तो वहीं रिटायर्ड टीचर के घर के पौधे देखने में तो सुंदर थे, लेकिन पड़ोसी गार्डन की तुलना में थोड़े छोटे थे।
तूफानी रात ने दिया सबक
एक रात भयंकर आंधी-तूफान के साथ बारिश होने लगी। दूसरी सुबह दोनों अपने पौधे देखने के लिये बाहर भागे। इंशोरेंस एजेंट के सभी पौधे उखड़ गये थे लेकिन टीचर के पौधों को कुछ खास नुकसान नहीं हुआ था। यह देख इंशोरेंस एजेंट को बड़ी हैरानी हुई। उससे रहा नहीं गया और वह खुद को टीचर से पूछने लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है? टीचर तो पौधों को कम पानी देता था, और उनका कुछ खास ख्याल भी नहीं रखता था।
इस पर टीचर ने बताया कि, क्योंकि एजेंट अपने पौधों का ज़रूरत से ज़्यादा ख्याल रखता था और ढ़ेर सारा पानी दे देता था इसलिये उनके पौधों को मेहनत करनी नहीं आई और उनकी जड़ें कमज़ोर पड़ गईं। वहीं टीचर अपने पौधों को ज़रूरत अनुसार ही पानी देता था। बाकी की मेहनत पौधे खुद करते थे और पानी की खोज में उनकी जड़ें मिट्टी के और अंदर जाती थी, जिससे वो मज़बूत हो गईं और तूफान का सामना कर सकी।
कुछ ऐसी ही होती है पैरेंटिंग
इसी तरह पैरेंट्स अगर अपने बच्चे को अंगुली पकड़कर चलवाने की जगह, उसे रास्ता दिखा दे और उसे चलने के लिये प्रेरित करें, तो बच्चे अपना सफर खुद तय कर लेते हैं। ऐसा करने से ही बच्चों को मंज़िल की अहमियत समझ आती है। अगर आप उसका हाथ पकड़कर मंज़िल तक ले जायेंगे, तो न ही उसे वहां तक पहुंचने के लिये की जाने वाली मेहनत का अंदाज़ा होगा और अगर समय आने पर आपको हाथ छोड़ना पड़ा, तो उसे बिना सहारे के चलना नहीं आ सकेगा।
बच्चों को दें सही परवरिश
– बच्चे पौधों की तरह कोमल होते हैं, उन्हें सही पोषण दें।
– बच्चों को रास्ता दिखायें और अपना सफर खुद तय करने दें।
– गिरकर उठने से बच्चा और भी ज़्यादा मज़बूत होता है।
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