तकनीक और इंसान की चाह मिलकर क्या कमाल कर सकती है, इसका बेहतरीन उदाहरण है मध्यप्रदेश का एक गांव, जिसे देश का पहला सोलर विलेज कहा जा रहा है। यानी इस गांव में बिजली और ईंधन के लिये सौर ऊर्जा का इस्तेमाल हो रहा है। आजकल हर जगह इस अनोखे गांव की ही चर्चा है।
घर-घर हुआ रोशन
देश के दूर-दराज के कई गांव जहां आज भी बिजली का इंतज़ार कर रहे हैं, वहीं मध्यप्रदेश के बैतूल का बांचा गांव पूरी दुनिया के लिये मिसाल बन गया है। क्योंकि यहां बिजली और बिजली से चलने वाली सभी चीज़ें हैं, लेकिन ये बिजली उन्हें किसी इलेक्ट्रिसिटी कंपनी की बदौलत नहीं, बल्कि सूरज की बदौलत मिली है। इस गांव में सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से बिजली और ईंधन की हर ज़रूरत पूरी हो रही है।
आईआईटी मुंबई, ओएनजीसी और विद्या भारतीय शिक्षण संस्थान के मुताबिक, बैतूल जिले का बांचा देश का पहला ऐसा गांव है, जहां किसी घर में लकड़ी का चूल्हा नहीं है और न ही एलपीजी सिलेंडर का उपयोग होता है। देश के बाकी गांव से अलग बांचा में शाम होते ही अंधेरा नहीं छाता, बल्कि बल्ब की रोशनी फैल जाती है। ऐसा कहा जा रहा है कि ये दुनिया का पहला सोलर विलेज हैं।
रंग लाई मेहनत
आईआईटी मुंबई के टेक्नीकल डिपार्टमेंट, ओएनजीसी और विद्या भारती शिक्षण संस्थान ने 2017 में बांचा गांव को चुना था और फिर इसे सोलर विलेज बनाने के लिए काम शुरू किया गया। बिजली बनाने के लिये पूरे गांव में सोलर पैनल लगाये गये और फिर हर घर में ज़रूरत के मुताबिक बिजली पहुंचाई गई। इन संस्थानों की मेहनत का ही नतीजा है कि पूरा बांचा गांव सौ फीसदी सोलर एनर्जी से चल रहा है। यही वजह है कि अब यह मॉडल विलेज बन गया है।
पर्यावरण की सुरक्षा
चूंकि अब गांव वालों को लकड़ी के चूल्हा नहीं जलाना होता, इसलिये लकड़ी के लिए पेड़ों की कटा ई नहीं की जाती और इस तरह से जंगल और पेड़ बच गये। यानी पर्यावरण की सुरक्षा अपने आप हो रही है। गांव की महिलायें सौर ऊर्जा से चलने वाले इंडक्शन पर खाना बनाती हैं। सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से न सिर्फ गांव वालों के जीवन में रोशनी बिखर गई, बल्कि महिलाओं को भी अब चूल्हे के धुएं से छुटकारा मिल गया। ओएनजीसी ने सभी घरों में मुफ्त में चूल्हे पहुंचाये हैं। सोलर एनर्जी से बिजली और ईंधन पैदा करने वाली सौर ऊर्जा की यूनिट को आईआईटी मुंबई के टेक्नीकल एक्सपर्ट्स ने बहुत आधुनिक बनाया है। इसका काम ठीक तरह से चलता रहे, इसके लिए गांव के कुछ शिक्षित युवाओं को ट्रेनिंग भी दी है।
पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने का यह एक नायाब तरीका है। उम्मीद की जानी चाहिये कि इस मॉडल को बाकी जगहों पर भी स्थापित किया जायेगा।
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