19वीं शताब्दी के वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने सबसे पहले पेड़ों में जान होने की बात साबित की थी और कहा था कि पौधों का महसूस करने का अपना एक अलग तरीका होता है। एक पत्ती तोड़ते वक्त भी हम नहीं जानते कि वे किस दर्द से गुजर रहे होंगे। जगदीश चंद्र बसु की इस बात को हम आमतौर पर भूल जाते हैं और अपने फायदे के लिये पेड़ों को नुकसान पुहंचाते है, लेकिन पुणे के माधव पाटिल इस बात को समझते हैं। इसी लिये तो वह दो साल से पेड़ों को कील की चुभन से आज़ादी दिला रहे हैं और अब उनकी इस मुहिम में सैंकड़ों लोग जुड़ चुके हैं।
हज़ारों पेड़ों से निकाली कील
माधव पाटिल पेशे से इंजीनियर है लेकिन पेड़ों को लेकर बहुत संवेदनशील है। इसलिए पिछले दो सालों से ‘कील मुक्त पेड़’ अभियान चला रहे हैं। इस अभियान के तहत वह छुट्टी के दिन घर से निकलते हैं और अपने आसपास के पेड़ों पर लगी कील निकालते हैं। अक्सर पोस्टर और बिलबोर्ड्स को बड़ी बेरहमी से पेड़ों पर टांग दिया जाता है, जिसकी वजह से कई पेड़ सूख जाते हैं। माधव को इस बात का एहसास तब हुआ, जब वह कुछ दिनों के लिए घर से बाहर गए थे और वापस आने के बाद देखा कि उनके बगीचे के गई पेड़ सूख चुके हैं। सूखे पेड़ों को देख पाटिल की बेटी ने कहा कि हमने पेड़ों को मार डाला। बेटी के मुंह से यह सुनकर पाटिल की पेड़ों के प्रति संवेदना जाग गई और वह निकल पड़े पेड़ों को दर्द से मुक्ति दिलाने।
जुड़ गये सैंकड़ों लोग
शुरू में तो पाटिल और उनका परिवार ही सिर्फ यह काम करता था, लेकिन धीरे-धीरे उनके इस नेक काम में और भी लोग जुड़ते गए और आज महाराष्ट्र में उनके साथ 500 लोग काम कर रहे हैं। इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों से भी लोग पाटिल के अभियान से जुड़कर अपने इलाके में पेड़ों को बचा रहे हैं। चेन्नई, अहमदाबाद, उदयपुर, बिहार, दिल्ली के कई लोग इस अभियान से जुड़े है।
कीलों की प्रदर्शनी
माधव पाटिल दो सालों में पेड़ों से करीब 30,000 हजार कीलें निकाल चुके हैं और जल्द ही मुंबई के मशहूर जहांगीर आर्ट गैलरी में इन कीलों की प्रदर्शनी लगाने वाले हैं ताकि लोगों यह बात समझ आये कि ये कीलें पेड़ों को कितना दर्द पहुंचाती हैं। वह अब तक 5,000 पेड़ों को कील मुक्त कर चुके हैं।
माधव पाटिल का प्रयास वाकई सराहनीय हैं। पेड़ मानव जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है, ऐसे में पेड़ों को बचाना हर नागरिक का कर्तव्य है।
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