एक प्लास्टिक की थैली तैयार करने में केवल 0.14 सेकंड लगते हैं लेकिन इसे नष्ट करने में 14,000 साल लग जाते हैं। जब हम प्लास्टिक बैग को इस्तेमाल करके फेंक देते हैं, तो वह ज़मीन में दब जाती है और फिर यही थैली हज़ारों साल तक रेन वॉटर को जमीन में जाने ही नहीं देती। इस तरह ज़मीन का वह हिस्सा बंजर हो जाता है। तो सोचिए, रोज़ाना हम न जाने कितने प्लास्टिक बैग्स का इस्तेमाल करते हुए पर्यावरण और धरती को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
‘लाइफ’ से मिल रही पर्यावरण को नई ज़िंदगी
‘लाइफ’ (लर्निंग इज फन ऐंड एक्सपेरिमेंटल) एक ऐसी संस्था है, जो न सिर्फ प्लास्टिक के नुकसान लोगों को समझा रही हैं बल्कि अपनी लैब में बच्चों को खेल-खेल में ही प्लास्टिक की जगह नई चीजें बनाने की तकनीक बता रही हैं। खास बात यह कि ‘लाइफ’ की इस लैबोरेट्री में छात्र ट्रेडिशनल क्लासरूम की तरह नहीं पढ़ते क्योंकि यहां बच्चों को उनकी इमेजिनेशन के आधार पर कुछ नया करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इससे उन्हें एक अलग अनुभव हासिल होता हैं और नए नए प्रयोग करने की प्रेरणा मिलती है।
बच्चों का साइंटिफिक स्किल डेवलपमेंट
‘लाइफ’ लैब्स के संस्थापक एवं सीईओ एक्स-इंजीनियर लेविट सोमराजन का मिशन बच्चों में साइंटिफिक स्किल डेवलप करते हुए उनमें वैज्ञानिक स्वभाव विकसित करना है, ताकि साइंस के क्षेत्र में नई नॉलेज हासिल करने के लिए उन्हें एक मज़ेदार, आकर्षक और अनुकूल वातावरण उपलब्ध हो सके। इन लैब्स में बच्चों को आसानी से हैंडल करने वाली डीआईवाई एक्टिविटी किट्स और डेमो प्रदान करता है, जो मज़ेदार और आकर्षक तरीके से विज्ञान के कॉन्सेप्ट का समझाता हैं।
खुद की गलतियों से लिया सबक
लाइफ लैब्स ने प्लास्टिक के खिलाफ जो मुहिम शुरू की है, उसके पीछे भी एक कहानी है। दरअसल, लाइफ लैब्स द्वारा बच्चों के बीच बांटे गए ज्यादातर एक्टिविटी एवं एक्सपेरिमेंटल किट्स प्लास्टिक से बने होते थे। ऐसे में एक बार टीम की बैठक में पता चला था कि हर साल संगठनों द्वारा 700 किलोग्राम प्लास्टिक कचरा उत्पन्न किया जा रहा है। ऐसे में टीम ने इससे छुटकारा पाने का प्रयास शुरू किया।
बच्चे कर रहे हैं बुजुर्गों को जागरूक
कंपनी की आर एंड डी प्रमुख अद्विता देसाई ने बताया कि प्लास्टिक कचरे को रोकने के लिए हमने ऐसी चीज़ों से बने उपकरणों का इस्तेमाल शुरू किया, जिन्हें आसानी से रिसाइकल और दोबारा उपयोग किया जा सकता है। हमने छात्रों को उनकी रोज़ाना की ज़िंदगी में प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने से होने वाले लाभों को बताया और उन्हें पर्यावरण के प्रति जागरूक किया। अब बच्चे आज न केवल खुद प्लास्टिक के इस्तेमाल को ‘ना’ कह रहे हैं, बल्कि अपने बुजुर्गों को एक ग्रीनर लाइफस्टाइल अपनाने के लिए भी जागरूक कर रहे हैं।
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