जब भी आप अपने आसपास पॉलीथिन, प्लास्टिक की बोतल या प्लास्टिक के अन्य सामान देखकर फ्रिकमंद होते हैं, तब कुछ लोग इस पर चिंतन करने की बजाय उसे कम करने की कोशिश में लग जाते हैं। कुछ ऐसे ही लोगों से आप से रुबरु करवाते हैं, जो प्लास्टिक रीसाइकलिंग करके पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरुक कर रहे हैं।
कलिपडा दास, कोलकाता
यह अपने दिन की शुरुआत नदी और घाटों पर जाकर प्लास्टिक का कचरा उठाने से करते हैं। हर दिन 5 से 6 घंटे काम करके वह कम से कम दो क्विंटल प्लास्टिक इकठ्ठा कर लेते हैं और उसे रिसाइकल के लिये देकर आते हैं। इससे न सिर्फ वह नदी और घाटों को साफ करने का काम करते बल्कि रिसाइकलिंग से मिले खर्च से घर भी चलाते हैं।
नदी को साफ रखने के लिए सरकार ने ‘नमामि गंगे‘ परियोजना चलाई है, लेकिन पश्चिम बंगाल के कलिपडा, जिन्होंने इस परियोजना का नाम भी नहीं सुना, फिर भी वह गंगा को मैला होने से बचाने के लिये रोज़ उसमें से प्लास्टिक का कचरा निकालने का काम है। पेशे यह एक मछुआरे थे, लेकिन गंगा को मैली होते देख, मछुआरे का काम छोड़ दिया।
पिता- पुत्र ने रिसाइकलिंग को बनाया रोज़गार, मणिपुर
मणिपुर के इम्फाल में रहने वाले सदोकपम गुणाकांटा और सदोकपम इटोम्बी सिंह की इस पिता-पुत्र की जोड़ी ने जब चारों ओर प्लास्टिक की चीजें देखी, तो इसे कारोबार का रूप देने का ठान लिया। पहले वे प्लास्टिक के कचरे को जमा कर दिल्ली और गुवाहाटी जैसे शहरों में भेजते थे। दरअसल मणिपुर में ही 120 तरह के प्लास्टिक की पहचान हुई है। इसमें से 30 तरह के प्लास्टिक ऐसे हैं, जिन्हें मणिपुर में ही रिसाइकल किया जाता है, बाकी 90 तरह के प्लास्टिक को कंप्रेस कर गुवाहाटी-दिल्ली भेजा जाता है।
जब उन्हें ये जानकारी मिली तो उन्होंने रिसाइक्लिंग की पूरी जानकारी लेने के बाद रिसाइकल प्लांट लगाया। शुरुआत में उन्होंने प्लास्टिक कचरे को कंप्रेस करने की मशीन लगाई और इसके बाद पिता-पुत्र की जोड़ी प्लास्टिक कचरे से रोज़ाना उपयोग में आने वाले चीज़ें पाइप, टब और गमले आदि जैसे कई प्लास्टिक आइटम बनाने लगे।
सतीश कुमार, हैदराबाद
हैदराबाद के एक प्रोफेसर सतीश कुमार ने प्लास्टिक से पेट्रोल बनाने की प्रक्रिया को प्लास्टिक पाइरोलाइसिस का नाम दिया है।
पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर सतीश कुमार ने कंपनी की स्थापना की है, जो रोज़ाना करीब 200 किलो प्लास्टिक से 200 लीटर पेट्रोल तैयार करती है। इस रिसाइकलिंग के लिए तीन-स्तरीय प्रक्रिया अपनाई जाती है, जिसे प्लास्टिक पाइरोलाइसिस कहते हैं।
प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन, मदुरै
सड़क पर हर तरफ प्लास्टिक का कचरा कई बीमारियों का कारण बनता है, लेकिन राजगोपालन ने इस कचरे को ऐसे इस्तेमाल किया कि कचरा अब न सिर्फ पैसे बचा रहा है बल्कि जन-जीवन के काम भी आ रहा है। इंजीनियरिंग कॉलेज (टीसीई), मदुरै में केमिस्ट्री के प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन प्लास्टिक कचरे को रिसाइकल करके सड़के बनवाते हैं। यह सुनने में भले ही थोड़ा अजीब हो, लेकिन यह कचरा सड़क बनाने के काम आ रहा है।
उनके खोजे तरीके से 11 राज्यों में प्लास्टिक के प्रयोग से 5000 किमी तक की सड़कें बनाई जा चुकीं है। उनके इनोवेशन से जहां एक तरफ कम खर्च में मज़बूत सड़क का निर्माण हो रहा है, वहीं पर्यावरण के लिए सबसे खतरनाक माने जाने वाले प्लास्टिक का सदुपयोग भी हो रहा है। राजगोपालन वासुदेवन के इस इनोवेशन के लिये पद्मश्री से सम्मानित भी किया जा चुका है।
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