कर्म शब्द का सबसे आम अनुवाद है- ‘जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा’। संस्कृत शब्द ‘कर्मन’ से उत्पन्न हुए ‘कर्म’ शब्द का अर्थ है कार्य। कर्म एक दर्शन या यूनिवर्सल नियम है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के अच्छे या बुरे कर्म उसके भविष्य को निर्धारित करते हैं।
वास्तव में कर्म क्या है?
आपने लोगों को कहते सुना होगा, ‘ये मेरे कर्म हैं’ या ‘कर्म को अपना काम करने दें’, इसका मतलब है कि किसी व्यक्ति के पिछले या वर्तमान काम का अंततः कोई न कोई परिणाम होगा, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। यह न सिर्फ बाद के जीवन में, बल्कि अगले जन्म में भी हो सकता है, इसलिए यह पुनर्जन्म से भी जुड़ा है।
पश्चिम में इसे थियोडिसी कहते हैं, यह एक सिद्धांत है जो समझाता है कि किसी को दुख क्यों होता है, इसका उत्तर है कि वह व्यक्ति उस योग्य है।
कर्म की उत्पत्ति कहां से हुई?
कर्म का ज़िक्र मुख्य रूप से भारत के तीन धर्मों मिलता है- हिंदू, बौद्ध और जैन। सभी धर्मों में यह धारणा है कि कर्म नैतिक रूप से आरोपित है और ब्रह्मांड में एक ऐसा तंत्र है जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति द्वारा किए गए अच्छे और बुरे कर्म का समान फल उसे अभी या बाद में मिले।
प्राचीन वैदिक शास्त्रों में, कर्म के सिद्धांत को पेड़ के चित्रों में तुलना द्वारा समझाया गया है। जहां कुछ खास तरह के बीज बोए जाते हैं, कुछ देर बाद एक पौधा उगता है जिसे काटा जा सकता है। फसल की तरह ही कर्म का नतीजा भी सीमित और निश्चित होता है।
जैन धर्म के अनुसार कर्म क्या है?
कर्म का सबसे पुराना और विस्तार से बताया गया सिद्धांत, जो आज भी जीवित है, जैन धर्म का है। जैन धर्म को मानने वालों के मुताबिक, सभी पदार्थों में जीवन है और वह जिस शरीर में जिस भी आकार और प्रकार में रहता है उसी के अनुसार ढल जाता है। इसे जीव कहा जाता है जिसका मतलब है जीवन। उनके सिद्धांत के अनुसार, जीव शुद्ध है और ब्रह्मांड में सबसे ऊपर रहता है, जहां वह हमेशा के लिए आनंद में रह सकता है।।
दूसरी तरफ, कर्म शारीरिक है, जो ब्रह्मांड में सब जगह है और जब हम हानिकारक चीज़ें सोचते करते हैं, तो कर्म के कण आत्मा से जुड़े होते हैं। यह एक तरह का प्रदूषण है जो शुद्ध जीव को दूषित करता है, और कोई व्यक्ति अपने कर्म के आधार पर ही स्वर्ग, नर्क या मनुष्य या जानवर के रूप में पुनर्जन्म लेता है।
यह सिद्धांत व्यक्तिगत कार्यों को ज़िम्मेदार मानता है और यह भी कहता है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों को बदल सकता है, उससे बाहर निकल सकता है और अंत में मोक्ष या मुक्ति पा सकता है।
बौद्ध धर्म के अनुसार कर्म क्या है?
बौद्ध धर्म भी कर्म को काम से जोड़कर देख जाता है। उसके मुताबिक, यह व्यक्ति के इरादों से प्रेरित होता है और भविष्य के परिणाम तय करता है। कर्म या कर्मफल ‘काम का फल’, बौद्ध धर्म का मौलिक सिद्धांत है। जो बताते हैं कि व्यक्ति द्वारा जानबूझकर किए गए काम कैसे उन्हें पुनर्जन्म के चक्र में उलझाए रहते हैं।
ऑस्ट्रेलियाई कला इतिहासकार अर्नेस्ट गोम्ब्रिच के अनुसार, बुद्ध ने कर्म को नियत यानी व्यक्ति के इरादे के रूप में परिभाषित किया है, चाहे वह शारीरिक, मौखिक या मानसिक रूप में हो, व्यक्ति की नियत या इरादा ही है जिसका नैतिक चरित्र होता है और जो अच्छा, बुरा या तटस्थ होता है। असली दुनिया में दिलचस्पी चाहे वह लोग हो या वस्तुएं भौतिक क्रिया से मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया में बदल गई है।
हिंदू धर्म के अनुसार कर्म क्या है?
हिंदू धर्म में, कर्म को तीन तरह का माना गया है, प्रारब्ध कर्म, जिसे मौजूदा शरीर के जरिए अनुभव किया जाता है और यह संचित कर्म का केवल एक हिस्सा है। संचित कर्म पिछले कर्मों का योग है और अगामी कर्म, जो हमारे आज के फैसलों और काम का नतीजा है।
यह माना जाता है कि किसी चीज़ का लाभकारी प्रभाव पिछले अच्छे काम का नतीजा है, और हानिकारक प्रभाव बुरे या हानिकारक कार्यों का। यह आत्मा के पुनर्जन्म के जीवन में काम और प्रतिक्रिया का एक सिस्टम बनाता है। कारण और प्रभाव में संबंध का नियम हमारे विचारों, शब्दों, कार्यों और यहां तक कि उन कामों पर भी लागू होता है जो हम दूसरों से निर्देश देकर करवाते हैं।
कहा जाता है कि कर्म का निर्धारण करने वाला ग्रह शनि है।
तो क्या आप कर्म के सिद्धांत पर विश्वास करते हैं?
और भी पढ़िये: शाकाहारी आहार में प्रोटीन स्त्रोत के 10 विकल्प
अब आप हमारे साथ फेसबुक, इंस्टाग्राम और टेलीग्राम पर भी जुड़िये।