अपने आसपास के लोगों और घटनाओं से हर कोई प्रभावित होता है, लेकिन जब यह प्रभाव आप पर हावी हो जाये और इसके कारण आप अपने मन की बजाय दूसरों के हिसाब से काम करने लगे, तो यह पीयर प्रेशर बन जाता है, जो खासतौर पर टीनेजर्स को सबसे ज़्यादा प्रभावित करता है।
क्या है पीयर प्रेशर?
काव्या कभी जंक फूड के लिये ज़िद्द नहीं करती थी, लेकिन पिछले कुछ समय से वह न सिर्फ घर, बल्कि टिफिन में भी जंकफूड ले जाने की ही ज़िद्द करने लगी थी। ऐसा नहीं है कि उसे जंकफूड बहुत पसंद है, लेकिन उसके ग्रुप के सारे दोस्त लंच में जंकफूड ही लाते हैं। काव्या के दोस्त उसका हेल्दी फूड यानी सिंपल खाना देखकर इसे चिढ़ाने लगते थे, इसलिये न चाहते हुये भी काव्या अब अपनी मां से जंकफूड देने को कहती। काव्या का यह व्यवहार पीयर प्रेशर को दर्शाता है। पीयर प्रेशर अक्सर टीनेजर्स बच्चों में ज़्यादा देखा जाता है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है, जब बच्चे बिना मन के अपने दोस्तों से प्रभावित होकर या उनके दबाव में कोई काम करने लगे तो यह पीयर प्रेशर है।
कैसे करें हैंडल?
बच्चों को इससे बचाने के लिये पैरेंट्स को थोड़ा अलर्ट रहने के साथ ही बच्चों को समझाना होगा कि-
– यदि कोई चीज़ या सिच्युएशन उन्हें सही न लगे तो उसे छोड़ दें, किसी दोस्त के कहने पर ज़बरदस्ती उसे झेलने की ज़रूरत नहीं है।
– कोई और आपके फैसले को प्रभावित नहीं कर सकता, वही करो जो आपको सही लगे। यदि कोई आपसे जबरन काम करने के लिये कहे, तो तुरंत वहां से चले आओ।
– ऐसे दोस्तों के साथ खेलो और समय बिताओं, जो आपकी रिस्पेक्ट करते हैं और कोई चीज़ जबरन नहीं थोपते हैं।
– सही और गलत चीज़ों में फर्क करना सीखो। किसी पर प्रेशर डालना, जबरन कोई काम करना, बेइज़्ज़ती करना या आलोचना सही नहीं है। यदि कोई आपके साथ ऐसा करता है, तो उसके पास दोबारा मत जाओ।
– हर किसी को खुश नहीं रखा जा सकता। इसलिये अपने कुछ दोस्तों को खुश करने के चक्कर में अपनी मर्जी के खिलाफ या उनके दवाब में आकर कुछ न करें।
– यदि किसी हालात में सीधे तौर पर ना नहीं बोल सकते, तो सामने वाले से कहो ‘इस बारे में सोचने के लिये मुझे थोड़ा वक्त चाहिये’ ‘मैं कल तुमसे मिलता हूं।’ इस बीच आप अपने दिल और दिमाग से सोच लें कि क्या सही है और क्या गलत।
– यदि आपके दोस्त किसी और पर दवाब डालते हैं, तो सामने वाली की मदद करें।
– इस बारे में पैरेंट्स से खुलकर बात करें।
पीयर प्रेशर सामान्य चीज़ है, लेकिन उस दौरान पैरेंट्स को अपने बच्चे के बदलते व्यवहार पर नज़र रखनी होगी तभी वह समझ पायेंगे कि स्कूल में बच्चे के साथ क्या हो रहा है और उसकी मदद कर पायेंगे।
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