स्मार्टफोन का इस्तेमाल आम लोगों के जीवन में ही नहीं मेडिकल क्षेत्र में भी बढ़ा है। स्वास्थ्य सेवाओं में इसकी बदौलत लगातर सुधार की कोशिशे की जा रही है। इसी कड़ी में आईआईटी दिल्ली शोधकर्ताओं ने मोबाइल ऐप आधारित एक ऐसा अनोखा बायोसेंसर बनाया है, जो बैक्टीरिया का पता लगा सकता है।
तस्वीरों का विश्लेषण
बैक्टीरिया का पता लगाने के लिए बायोसेंसर को मोबाइल कैमरे के सामने लगाया जाता है। फिर कैमरे से खिंची तस्वीरों का विश्लेषण शोधकर्ताओं द्वारा बनाए गए “कोलोरीमीट्रिक डिटेक्टर” नामक मोबाइल ऐप के ज़रिए किया जाता है। यदि जीवाणु यानी बैक्टीरिया मौजूद हैं तो बायोसेंसर की सतह काली हो जाती है। मोबाइल ऐप सतह के रंग में होने वाले बदलाव को मापता है। जब यह बदलाव तय सीमा तक पहुंच जाता है, तब मोबाइल में कंपन होने लगता है और एक लाल सिग्नल दिखाई देता है। बैक्टीरिया का पता लगाने का यह बुहत ही आसान और किफायती तरीका है।
छह घंटे में बैक्टीरिया की पहचान
मोबाइल-ऐप पर आधारित बायोसेंसर सिर्फ छह घंटे में ही जिंदा और मरे हुए बैक्टीरिया की पहचान कर लेता है। जबकि जांच के पुराने तरीकों में बैक्टीरिया की पहचान में करीब 16 से 24 घंटे लगते हैं। साफ है कि यदि अस्पताल में ये बायोसेंसर लगाया जाये, तो मरीजों के इंफेक्शन का जल्दी पता चल जाएगा और जिससे इलाज जल्दी शुरू करने में मदद मिलेगी।
ये है खासियत
बैक्टीरिया की पहचान के लिए पारंपरिक प्लेट काउंट (एसपीसी) तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ प्रशिक्षित व्यक्ति ही कर सकता है, जबकि मोबाइल ऐप आधारित बायोसेंसर के इस्तेमाल के लिए किसी भी तरह के प्रशिक्षण की ज़रूरत नहीं है। कोई भी आसानी से इसका इस्तेमाल करके बैक्टीरिया का पता लगा सकता है।
संक्रामक रोगों से बचाव
मोबाइल इस्तेमाल करने वाला सेंसर पर रंग और गीलेपन को देखकर जिंदा और मरे हुए बैक्टीरिया की पहचान कर सकता है। साथ ही एंटीबायोटिक प्रतिरोधी और सामान्य बैक्टीरिया की भी अलग अलग पहचान की जा सकती है। इस बायोसेंसर का उपयोग हर कोई अपने मोबाइल पर सकता है। ऐसा होने पर संक्रामक रोगों को फैलने से बचाया जा सकता है। अधिकांश बीमारियों के लिए बैक्टीरिया ही ज़िम्मेदार होता है, ऐसे में यदि इंसान को पहले ही पता लग जाए कि उसके शरीर में किस तरह के बैक्टीरिया है, तो वह जल्दी इलाज के लिए डॉक्टर के पास पहुंच सकेगा, जिससे गंभीर बीमारियों से बचने की संभावना ज़्यादा है।
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