पौष्टिक और स्वस्थ खाने पर सभी का अधिकार है, लेकिन दुनिया में न जाने कितने लोग हैं, जो कड़ी मेहनत करने के बाद भी दिन में एक ही बार खाना खा पाते हैं। दिन के इस खाने में पोषक तत्वों के बारे सोचना तो दूर की बात है, उससे पेट भर जाये यही काफी होता है। लेकिन खाना सिर्फ पेट भरने के लिये नहीं होता, बल्कि खाने में मौजूद पोषक तत्व इंसान की ग्रोथ के लिये बेहद ज़रूरी हैं और खासतौर से बढ़ते बच्चों के लिये। इस बात की गंभीरता को समझते हुये भारत सरकार ने साल 1995 में ‘मिड डे मील’ लॉन्च किया। इस स्कीम के तहत हर सरकारी स्कूल में बच्चों को दोपहर का खाना मुफ्त में खिलाया जाता है। 1995 से अब तक मिड डे मील स्कीम में कई बदलाव आ चुके हैं और इस बार सरकार ने इस दिशा में एक और कदम बढ़ाया है।
सरकार का ‘मिड डे मील’ स्कीम के लिए सुझाव
हाल ही में प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड (पीएबी) की ‘मिड डे मील’ को लेकर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के साथ मीटिंग हुई। इसमें यह सुझाव दिया है कि सभी केंद्र शासित राज्यों के स्कूलों में न्यूट्रिशन गार्डंस बनाने चाहिये।
इन बागीचों से मिलने वाली फल सब्ज़ियों से बच्चों का मिड डे मील तैयार किया जाना चाहिये। मंत्रालय ने सभी केंद्र शासित राज्यों को यह भी सुझाव दिया है कि स्कूल में दिये जाने वाले मिड डे मील के लिये गुरुद्वारों और मंदिरों से भी मदद ली जा सकती है। यह धार्मिक स्थल कुछ स्कूलों को मिड डे मील देने के लिए अडॉप्ट भी कर सकते हैं।
क्या है स्कूल न्यूट्रिशन गार्डन?
स्कूल न्यूट्रिशन गार्डन स्कूल की ऐसी जगह होती है, जहां हर्ब्स, फल और सब्ज़ियां मिड डे मील के लिए उगाई जाती हैं। चंडीगढ़ के कुछ स्कूलों में इसे किचन गार्डन के नाम से चलाया जा रहा है। तारीफ की बात यह है कि चंडीगढ़ के सेक्टर 26 और 47 के जीएमएसएसएस में इसी माध्यम से बड़ी मात्रा में फल और सब्ज़ियां उगाई जाती हैं।
स्कूल न्यूट्रिशन गार्डन इनिशियेटिव से न केवल बच्चों को ऑर्गेनिक फल और सब्ज़ियां खाने को मिलेंगी। इस पौष्टिक खाने से उनका शरीर और दिमाग दोनों ही विकसित होगा। इसके साथ ही बच्चे प्रकृति के एक कदम करीब आयेंगे और गार्डनिंग का नया कौशल सीखेंगे।
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