नेत्रदान को लेकर हमारे समाज में थोड़ी बहुत जागरुकता तो आई है, लेकिन इस दिशा में अभी और काम करने की ज़रूरत है, क्योंकि आज भी इसे लेकर लोग बहुत सजग नहीं है। ऐसे में कन्याकुमारी जिले का एक गांव नेत्रदान के मामले में मिसाल पेश कर रहा है। यहां मरने के बाद हर किसी की आंखें दान कर दी जाती है।
कृत्रिम आंख
कन्याकुमारी जिले के मडठट्टूविलई गांव में जब किसी व्यक्ति की मौत होती है, तो सबसे पहले चर्च के पादरी को इसके बारे में बताया जाता है। फिर चर्चा का घंटा बजाकर मौत का ऐलान किया जाता है। इसके बाद गांव के युवा मरने वाले शख्स के परिवार को नेत्रदान के लिए तैयार करते हैं। जब परिजन मृत्यु की सूचना अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को देने में व्यस्त रहते हैं, इसी बीच डॉक्टरों की एक टीम मृतक की आंखें निकालकर कृत्रिम आंख लगा देती है जो बिल्कुल असली दिखती है।
11 साल से कर रहे नेत्रदान
कन्याकुमारी के इस गांव में नेत्रदान का सिलसिला 11 सालों से चल रहा है और अब तक 229 लोग नेत्रदान कर चुके हैं। नेत्रदान के बारे में जागरूकता फैलाने के मामले में यह गांव बेहतरीन मिसाल बन गया है। जहां शहर के पढ़े-लिखे लोग भी अब तक नेत्रदान से झिझकते हैं, वहीं गांव में ऐसा किया जाना वाकई सराहनीय है। मगर गांववालों को इसके लिए राज़ी करना आसान नहीं था। चर्च के यूथ ग्रुप के प्रेसिडेंट एफएक्स अरुणो जेवियर के मुताबिक, गांव के बड़े-बुजुर्ग को बड़ी मुश्किल से नेत्रदान के लिए मनाया गया, क्योंकि उन्हें लगता था कि आंखों के बिना मरने के बाद इंसान भगवान को नहीं देख सकेगा।
लोग आ रहे आगे
गांव में चर्च की ओर से बनाई गई होली फैमिली फेडरेशन नेत्रदान का पूरा जिम्मा संभालती है। साल 2007 से शुरु हुआ नेत्रदान का सिलसिला लगातार जारी है और फेडरेशन के जागरुकता अभियान की वजह से अब गांव में मरने वाले लोगों में से 95% लोग आंखें दान करते हैं। इस गांव से आसपास के गांववालों को भी प्रेरणा मिल रही है और वह भी नेत्रदान के लिए आगे आ रहे हैं।
हमारे देश में बहुत से लोग कभी हादसे तो कभी किसी बीमारी की वजह से आंखों की रोशनी खो देते हैं। ऐसे में यदि दुनिया से जाने वाले किसी शख्स की आंखों से किसी के अंधेरे जीवन में रोशनी बिखरती है तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। कन्याकुमारी के इस गांव से सभी को सीख लेने की ज़रूरत है।
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