मॉडर्न (आधुनिक) होने का मतलब यह नहीं है कि आप खुद और बच्चों को नई टेक्नोलॉजी, फैशन आदि से अपटूडेट रखें, बल्कि इसका मतलब है कि बतौर पैरेंट आप बच्चों को आत्मविश्वासी बनायें और उनमें अच्छी आदतें डेवलप करें।
साथ खाने की आदत
बच्चों को छोटी उम्र से ही पूरे परिवार के साथ खाना सिखायें। इससे उन्हें पता चलेगा कि यह सिर्फ डिनर टाइम नहीं, बल्कि फैमिली टाइम होता है, जहां पूरा परिवार इकट्ठा होता है। दूसरों को हेल्दी चीज़ें खाते देख बच्चे भी वह खाने के लिए प्रेरित होंगे और इस तरह से बचपन से डाली गई हेल्दी ईटिंग की आदत आगे भी बनी रहेगी।
कुछ बच्चे खाने में नखरे ज़्यादा करते हैं, तो ऐसे बच्चों को हमेशा उनकी पसंद का खाना देने की बजाय वही दें जो बाकी लोग खा रहे हैं। इससे धीरे-धीरे उसके नखरे कम हो जायेंगे। यदि आप छोटी उम्र से ही बच्चों को अलग-अलग स्वाद चखायेंगी, तो बड़े होने पर वह खाने में नखरे नहीं दिखायेंगे। एक बात याद रखिये कि बच्चों को हेल्दी खाने के लिये प्रेरित करने के लिये ज़रूरी है कि उनके सामने आप भी हेल्दी चीज़ें खायें क्योंकि वह आपको देखकर ही सीखते हैं।
टाइम पर सोना
जब बच्चे बहुत छोटे होते हैं, तो उनके सोने का कोई टाइम फिक्स नहीं होता और उनके साथ ज़बरदस्ती भी नहीं की जा सकती, लेकिन थोड़ा बड़ा होने पर रात में उनके सोने का समय फिक्स कर दें। यदि बच्चा मोबाइल आदि देखता है, तो सोने से पहले उसे मोबाइल या कोई भी गैजेट न दें, इससे नींद डिस्टर्ब होती है। बच्चे को रात में सोने से पहले स्टोरी बुक पढ़ने के लिए प्रेरित करें। इससे नींद अच्छी आती है।
बड़े होने पर बच्चे अक्सर अपने स्मार्टफोन के साथ ही बिस्तर पर जाते हैं और देर रात तक दोस्तों के साथ चैटिंग या सोशल मीडिया पर बिज़ी रहते हैं। उन पर भी आपको ध्यान देने की ज़रूरत है और बेड पर फोन ले जाने की अनुमति बिल्कुल न दें।
अनुशासन में रखना
बच्चों को अनुशासन सिखाने की ज़िम्मेदारी माता-पिता की ही होती हैं। बड़ों की रिस्पेक्ट करना, तेज़ आवाज़ में बात न करना, अपनी बात मनवाने के लिये नहीं चिल्लाना, दूसरों से प्यार से बात करना, समय पर अपना काम करना जैसी कुछ छोटी-छोटी बातें शुरुआत से ही बच्चों को सिखानी चाहिये ताकि आगे चलकर वह अनुशासित रह सके। बच्चों को अनुशासन छोटी उम्र से ही सिखाना चाहिये क्योंकि इस उम्र में उन्हें आप जैसा चाहे ढाल सकते हैं।
इन बातों का ध्यान रखें-
– बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताना न भूलें।
– बच्चे से बात करें, उसे अपनी मन की बात शेयर करने के लिए प्रेरित करें।
– बच्चे के साथ खेलें, इससे बॉन्डिंग मज़बूत होगी और वह आपकी बात भी सुनेगा।
– बात-बात पर डांटने की बजाय प्यार से समझायें।
– बच्चे कुछ गलत करे, तो थोड़ी सख्ती ठीक है, लेकिन इतने सख्त न बन जाये कि वह आपसे डरने लगे।
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