हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद ने न सिर्फ हॉकी को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई, बल्कि भारत के लिये ऑलंपिक जैसा सम्मान भी जीता। उनके बेहतरीन कामों को याद करने के लिये ही उनकी जन्मदिन जयंती को राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित भी किया जाता है।
नेशनल स्पोर्ट्स के मौके पर आज आप मिलिये, कुछ ऐसे ही खिलाड़ियों से जिन्होंने अपनी मेहनत के बल पर सफलता के नए कीर्तिमान रचे हैं।
गीता फोगट (कुश्ती)
पहलवानी एक ऐसा खेल है, जिसमें हमेशा से ही पुरुषों का दबदबा रहा है, मगर कुछ महिला खिलाड़ियों ने न सिर्फ इस खेल में करियर बनाया, बल्कि कई मेडल जीतकर देश का नाम भी रोशन किया है। इन्हीं में से एक ही गीता फोगट। हरियाणा की मिडिल क्लास फैमिली में जन्मी गीता का बचपन संघर्षों में बीता। मगर उनके पिता ने बचपन से ही उन्हें पहलवान बनाने की ठान ली थी और रोज़ाना कठिन प्रशिक्षण देते थे। इसी का नतीजा था कि गीता ने 2009 के राष्ट्रमंडल खेलों में गोल्ड मेडल जीता और जीत के बाद वह कई और मेडल अपने नाम कर चुकी हैं।
मैरी कॉम
इन्हें अगर बॉक्सिंग क्वीन कहा जाये, तो गलत नहीं होगा। मैरी कॉम 6 बार विश्व चैंपियनशिप जीत चुकी हैं। मणिपुर के एक छोटे से गांव के गरीब परिवार में जन्मी मैरी कॉम के लिये बॉक्सिंग का सपना सच करना आसान नहीं था।
घरवाले नहीं चाहते थे कि बेटी लड़कों की तरह बॉक्सिंग करें, लेकिन अपने जूनून और ज़िद्द के आगे मैरी कॉम ने किसी की नहीं सुनी और आखिरकार बॉक्सिंग की दुनिया में नाम कमाने का अपना सपना सच कर लिया। मैरी कॉम ने 2001 में पहली बार नेशनल वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती थी। तीन बच्चों की मां मैरी कॉम को अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार और पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका हैं।
संदीप सिंह
भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रह चुके संदीप सिंह ने जिस तरह मुश्किलों से लड़ते हुये अपना और देश का नाम रोशन किया, काबिले तारीफ है। 2004 में अपने हॉकी करियर की शुरुआत करने वाले संदीप सिंह के लिये 2006 की एक ट्रेन यात्रा किसी बुरे सपने से कम नहीं थी।
दरअसल, वह ट्रेन से दिल्ली जा रहे थे। इस बीच पीछे की सीट पर बैठे सुरक्षा गार्ड से गलती से गोली चल गई और वह संदीप सिंह को रीढ़ की हड्डी के पास जा लगी। इस वाकये के दो दिनों बात ही ओलंपिक टूर्नामेंट था, ज़ाहिर है, संदीप नहीं खेल पायें। सबसे दर्दनाक खबर तो यह थी कि डॉक्टरों ने कह दिया था कि अब वह हमेशा व्हीलचेयर पर ही रहेंगे, मगर संदीप सिंह हार मानने वालों में से नहीं थे। दो साल के इलाज के बाद उन्होंने दोबारा हॉकी स्टिक उठाई और 2008 में टीम में वापसी भी की। 2009 में वह कप्तान बनें और अजलान शाह में भारत जो जीत दिलाकर इतिहास रच दिया। भारत को 13 सालों में मिली यह पहली जीत थी।
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