अगर कुछ लोग मुसीबत में होते हैं तो बाकी लोग उनकी मदद के लिए आगे आ जाते हैं। हमारे आस पास बहुत से लोग हैं जो निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा कर रहे हैं । पढ़िए ऐसे ही लोगों की कहानी-
‘भूख लगी हो तो फ्री में खा लें केला’, दुकानदार की शानदार पहल
तमिलनाडु के थुटूकुडी जिले के कोविलपट्टी में एक फल की दुकान बंद होने पर बड़ा ही अच्छा मैसेज लिखा होता है और साथ ही टंगे होते हैं केले की कई गुच्छे। मैसेज में लिखा होता है, “अगर आपको भूख लगी है तो इन्हें फ्री में खा सकते हैं, प्लीज बर्बाद न करें”। ऐसा इसलिए ताकि इस लॉकडाउन में अगर कोई शख्स भूखा हो, तो वह अपना पेट भर सके। मुश्किलों के बीच तमिलनाडु के एक फल विक्रेता मुत्थुपांडी की इस अनोखी पहल की सभी खूब तारीफ कर रहे हैं। मुत्थुपांडी पिछले दो साल से कोविलपांडी में यह दुकान चला रहे हैं। लॉकडाउन के चलते वह हर रोज दुकान बंद करने के बाद बाहर केले के कई गुच्छे लटके हुए ही छोड़ देते हैं। इस बीच कोई बेघर शख्स, थका यात्री या बच्चे दुकान पर आकर केले खा लेता है। दुकानदार मुत्थुपांडी कहते हैं कि कोरोना के इस काल में जो कोई भूखा है, यह पहल उसी के लिए है ताकि कोई भूखा न रहे।
मुंबई के छात्र निहाल की तरफ से कोविड योद्धाओं को तोहफा
मुंबई के स्टूडेंट इनोवेटर निहाल सिंह आदर्श के लिए अपनी डॉक्टर मां की ज़रूरत उनके ‘कूल’ पीपीई किट के आविष्कार की प्रेरणास्रोत बनी। ‘कोव-टेक’ नाम के पीपीई किट के लिए एक वेंटिलेशन सिस्टम है, जो कोविड -19 लड़ाई के मोर्चे पर स्वास्थ्य कर्मियों को आवश्यक राहत देता है। निहाल, के.जे. सामैया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्र हैं । कोव-टेक पीपीई किट में इस तरह से वेंटिलेशन सिस्टम किया गया , जिससे पसीना कम आएगा। यह आसपास की हवा लेता है, इसे फिल्टर करता है और पीपीई सूट में पुश करता है।’ 19 वर्षीय निहाल ने इस वेंटिलेशन किट बनाने के बारे में तब सोचा, जब उनकी मां हर दिन घर लौटने के बाद पीपीई सूट से जुड़ी परेशानियां बताती थी। इसके बाद उन्होंने तकनीकी व्यापार इनक्यूबेटर, रिसर्च इनोवेशन इनक्यूबेशन डिजाइन लेबोरेटरी द्वारा आयोजित कोविड से संबंधित उपकरणों के लिए एक डिजाइन चुनौती में भाग लिया। उनका यह अविष्कार डॉक्टरों, नर्सों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा।
स्वास्थ्य सुविधाएं तैयार करने के लिए दान दिया जायेगा सारा सोना
दुनिया के चाहे किसी भी कोने में आपदा आ जाए लेकिन लोग मदद करने से पीछे नहीं हटते हैं। कोरोना काल में लोगों की मदद के लिए सिख समुदाय के लोगों ने कोरोना मरीजों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का ही लंगर ही लगा दिया लगातार मुफ्त में दवा और खाने के इंतज़ाम किए जा रहे हैं। इस बीच महाराष्ट्र के नांदेड़ में गुरुद्वारा तख्त श्री हजूर साहिब ने बड़ा ऐलान किया है। गुरुद्वारे की तरफ से कहा गया है कि वो अपने यहां पिछले 50 साल से जमा हो हुए सारे सोने को दान कर देंगे। इन पैसों से अस्पताल बनाए जाएंगे। तख्त के जत्थेदार संत बाबा कुलवंत सिंह जी ने कहा कि लोगों को नांदेड़ से इलाज कराने के लिए हैदराबाद और मुंबई जैसे बड़े शहर जाना पड़ता है। उनके मुताबिक अगर अस्पताल का निर्माण नांदेड़ में किया गया तो फिर लोगों को दूसरे बड़े शहर नहीं जाना पड़ेगा। यहां के आप-पास के गांव के लोग नांदेड़ में इलाज करा सकेंगे। उनकी यह पहल काफी सरहनीय है।
दिव्यांग न्यूरोसर्जन डॉ. सरोश निस्वार्थ दे रहे हैं सेवा
सूरत के शाहपुर में 55 साल के दिव्यांग न्यूरोसर्जन डॉ. सरोश भाक्का पिछले कुछ वर्षों से लगातार लोगों की सेवा में लगे हैं। फिलहाल कोरोना की इस महामारी में भी दिव्यांगता के बावजूद वह एक डॉक्टर के रूप में अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। उनकी फीस केवल 20 रुपये मात्र है और जो लोग इसे भी देने में सक्षम नहीं होते तो वह इसे भी माफ कर देते हैं। बॉम्बे हॉस्पिटल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में न्यूरोसर्जरी की पढ़ाई के दौरान डॉ. भाक्का को एक बड़ी दुर्घटना का सामना करना पड़ा। इसके बाद वह दिव्यांग हो गए। भाक्का कहते हैं कि मेरे पिता ने एक बार कहा था कि ‘लोगों का इलाज करना पहले एक सेवा थी, अब यह एक पेशा है और यह भविष्य में उद्योग बन जाएगा।’ उनकी बात आज सच हो गई है। लेकिन में लोगों की सेवा करना जारी रखूंगा और अपने परिवार की परम्परा को जारी रखूंगा। सूरत में डॉ. भाक्का डिस्पेंसरी काफी अच्छा काम कर रही है और डॉ. भाक्का ने भी पैसा कमाने से ज़्यादा समाज की सेवा करने का महत्व दिया। उनकी इस सोच और सेवा को हमारा दिल से सलाम 🙏
9 साल के बच्चे का सरहानीय कदम
9 साल की छोटी सी उम्र में कोरोना रोगियों की मदद करके अधिराज सेजवाल ने मिसाल कायम की है। दरअसल अधिराज पिछले दो साल से शतरंज सीख रहे हैं, और उन्होंने अपने कोच के साथ मिलकर एक ऑनलाइन प्रतियोगिता का आयोजन किया। उस प्रतियोगिता से 51 हज़ार की राशि इकट्ठा हुई। हालांकि लोगों के लिए कोई एंट्री फीस नहीं थी लेकिन बताया गया कि लोग जो देना चाहे, वह दे सकते हैं। इस तरह अधिराज ने इस ऑनलाइन आयोजन से 51 हज़ार इकट्ठा कर लिए। इस राशि को उन्होंने एनजीओ हेमकुंठ फांउडेशन को दान कर दिया। यही नहीं पिछले साल अधिराज ने क्लास 10 व 12 के 100 से ज़्यादा छात्रों की जिंदगी संवारने का काम किया था। अधिराज ने सबसे पहले अपना गुल्लक तोड़ा, जिसमें करीब 12,500 रुपये जमा थे। इन पैसों से उसने उस स्कूल के पांच बच्चों की एग्जाम फीस भरने में मदद की थी। उसके बाद लोगों से मदद मांगकर अधिराज ने महज दो सप्ताह में करीब दो लाख रुपये जुटा लिए थेऔर उन पैसों से 100 से ज़्यादा गरीब बच्चों की बोर्ड एग्जाम फीस भरी थी। उसकी सोच और इच्छाशक्ति को दिल से सलाम 🙏
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