“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।”
ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुये हैं, उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी। यूं तो देश पर मिटने वालों को याद करने का कोई एक खास दिन नहीं हो सकता क्योंकि उनकी शूरवीरता को किसी एक दिन में नहीं बांधा जा सकता। लेकिन कुछ खास तारीखें दिलों से उमड़ते जज़्बातों को आंखों तक पहुंचा देती हैं और आंखें नम हो जाती है।
ऐसी ही एक तारीख है 26 जुलाई, जिसे हर साल ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। कारगिल युद्ध में भारत की जीत को इस वर्ष बीस साल हो गये हैं और इस बार विजय दिवस तीन दिन 25 से 27 जुलाई तक मनाया गया। इस साल विजय दिवस की थीम रखी गई – ‘रिमेम्बर, रिजॉइस, रिन्यू’ यानी कि अपने जवानों की शहादत को याद करें, देश की जीत का जश्न मनायें और देश की रक्षा के लिये एक बार फिर से जुट जायें।
जलाया गया विक्ट्री फ्लेम
14 जुलाई, 2019 को देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नेशनल वॉर मेमोरियल में ‘विक्ट्री फ्लेम’ जलाई। यह विजय ज्वाला 11 शहरों से गुज़रकर जम्मू कश्मीर में कारगिल सेक्टर के द्रास शहर में पहुंची। जीत के बीस साल बाद एक बार फिर भारतीय सेना के जवानों ने कारगिल के ऊंचे पहाड़ों पर गये और देश की जीत को एक बार फिर से याद दिलाया।
स्थानीय लोग भी उत्साहित
केवल सेना ही नहीं, वहां रह रहे स्थानीय लोगों ने भी खूब उत्साह दिखाया है। उनमें से ज़्यादातर लोगों को आज भी युद्ध के समय याद हैं। जिस तरह से इतने मुश्किल हालातों में, बीहड़ क्षेत्रों में, जहां रहना बेहद मुश्किल है, वहां गर्मियों में भी माइनस 5 से 10 डिग्री सेल्सियस होता है, ऐसी विषम परिस्थितियों में भी भारतीय सेना ने जीत हासिल की। उस शौर्य गाथा पर देश की सेना पर हर भारतीय को गर्व है।
हालांकि इस युद्ध की जीत के लिये देश ने एक बड़ी कीमत चुकाई थी। भारतीय सेना के विभिन्न रैंकों के लगभग 30,000 अधिकारी व जवानों ने ऑपरेशन विजय में भाग लिया था। इस युद्ध में हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज़्यादा घायल हो गये थे। इनमें से ज़्यादातर सैनिक 30 साल से कम उम्र के थे।
इन रणबांकुरों में से कुछ नाम हैं-
– 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्होंने एक के बाद एक कई सामरिक महत्व की चोटियों पर भीषण लड़ाई के बाद फतह हासिल की थी।
– 17 जाट रेजिमेंट के बहादुर कैप्टन अनुज नायर, टाइगर हिल्स सेक्टर की एक महत्वपूर्ण चोटी ‘वन पिंपल’ की लड़ाई में अपने 6 साथियों के शहीद होने के बाद भी मोर्चा सम्भाले रहें,जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना इस चोटी पर वापस कब्जा करने में सफल रही।
– राजपूताना राइफल्स के मेजर पद्मपाणि आचार्य भी कारगिल में दुश्मनों से लड़ते हुये शहीद हो गये थें। उनके भाई भी द्रास सेक्टर में इस युद्ध में शामिल थें।
– 1/11 गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय की बहादुरी की इबारत आज भी बटालिक सेक्टर के ‘जुबार टॉप’ पर लिखी हैं।
– टोलोलिंग की दुर्गम पहाड़ियों में छिपे घुसपैठियों पर हमला करते समय वायुसेना के कई बहादुर अधिकारी इस लड़ाई में दुश्मन से लोहा लेते हुये शहीद हो गये थें। सबसे पहले कुर्बानी देने वालों में से थें, कैप्टन सौरभ कालिया।
– स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा का विमान भी दुश्मन गोलीबारी का शिकार हुआ। अजय का लड़ाकू विमान दुश्मन की गोलीबारी में नष्ट हो गया, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पैराशूट से उतरते समय भी शत्रुओं पर गोलीबारी ज़ारी रखी और लड़ते-लड़ते शहीद हो गये।
कोई भी युद्ध हथियारों के बल पर नहीं लड़ा जाता, यह तो देश के वीरों के साहस, बलिदान और देश प्रेम के बल पर और मां भारती के ऐसे वीर लाल हर कदम पर हैं।
जय हिंद।
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