अगर व्यक्ति धन, बल और विद्या होने के बावजूद जीवन में कुछ नहीं कर पाता, तो ऐसे लोगों के मेंटल लाइफ का विश्लेषण बताता है कि उनमें विल पॉवर का अभाव होता है। जबकि कुछ लोग बिना साधनों के बावजूद केवल अपने विल पॉवर के दम पर इतिहास लिखने में कामयाब रहे हैं। भारत की दिग्गज खिलाड़ी और तीन बच्चों की मां एमसी मैरी कॉम इसी विल पॉवर की धनी महिला खिलाड़ी हैं, जिन्होंने हाल ही में आईबा वीमेंस वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप के 10वें संस्करण में 48 किलोग्राम भारवर्ग का खिताब अपने नाम करके वर्ल्ड रिकार्ड बना लिया।
सबसे अधिक मेडल जीतने वाली खिलाड़ी
मैरी कॉम ने फाइनल में यूक्रेन की हना ओखोटा को 5-0 से मात देते हुए गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इस मेडल को हासिल करते ही मैरी कॉम छह वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने वाली दुनिया की पहली खिलाड़ी बन गईं हैं। इससे पहले मैरी कॉम ने साल 2002, 2005, 2006, 2008 और साल 2010 में वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया था। मैरी कॉम ने इनमें से एक खिताब 45 किग्रा भार वर्ग, तीन वर्ल्ड खिताब 46 किग्रा भार वर्ग और आखिरी दो खिताब 48 किग्रा वजन वर्ग मे जीता है। इसके अलावा साल 2001 में मैरी इसी भार वर्ग में उपविजेता रही थीं और उन्होंने सिल्वर मेडल जीता था। खास बात यह है कि मैरी कॉम वर्ल्ड चैंपियनशिप दोनों ही वर्गों (पुरूष और महिला) में सबसे अधिक मेडल जीतने वाली खिलाड़ी भी बन गई हैं।
हर मुश्किल भरे सफर को किया पार
मैरी कॉम की यह कामयाबी काबिले तारीफ है, लेकिन जब आप यह देखते हैं कि उन्होंने किन हालातों से गुज़रकर ऐसी सफलता हासिल की है, तो उनके सम्मान में हमारे हाथ खुद ब खुद ही ‘सैल्यूट’ करने के लिए उठ जाते हैं। दरअसल, एक मज़दूर परिवार में जन्म लेने के बाद मैरी कॉम के लिए शिखर तक पहुंचने का सफर कभी आसान नहीं था। पग-पग पर चुनौतियां और हौसलों को तोड़ देने वाली बाधाएं मिली लेकिन चैंपियन बॉक्सर मैरी कॉम ने हर मुश्किल भरे सफर को आसानी से पार कर दिखाया और साबित कर दिया कि वह ‘विल पॉवर’की कितनी बड़ी मिसाल हैं।
बगावत करके चुनी थी बॉक्सिंग
मैरी कॉम जब वह मुक्केबाजी में आई थीं, तो इस खेल का कोई भविष्य नहीं था, जबकि जोखिम बेहिसाब थे। उनके घरवालों ने उन्हें खेलने से मना किया पर वह अपने लक्ष्य से कभी नहीं डिगी। गरीबी और अभावों ने मुश्किलों में डाला, लेकिन क्या मजाल कि इस बुलंद हौसलों की महिला को झुका पाए ! हर जगह उन्होंने खुद को विजेता साबित किया, चाहे ओलंपिक हो या एशियाई खेल या फिर विश्व बॉक्सिंग।
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